कुछ ऐसा है मातृ दिवस का इतिहास
कुछ ऐसा है मातृ दिवस का इतिहास
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माँ को कई नामों से पुकारा जाता हैं, जैसे मम्मी, मॉम, मम्मा, माता अम्मी, माते; लेकिन हमारे जीवन में हर माँ की एक ही भूमिका होती है। वह हर परिवार की अहम् नीव होती है। वह देख भाल करने वाली होती है और सभी को बिना शर्त के प्रेम बांटती है। माँ की परिभाषा हर व्यक्ति के लिए कुछ हद तक अलग भी हो सकती है, किसी के लिए वह एक देख भाल करने वाली, किसी के लिए वह सबसे अच्छी दोस्त भी कही जाती है और किसी के लिए वह सबसे अच्छी रसोइया हो सकती है। हम इस विष्व में हर मां को कृतज्ञता और प्रशंसा देने के लिए मातृ दिवस सेलिब्रेट करते हैं। एक माँ हम सब के लिए इतनी बड़ी प्रेरणा होती है कि माँ के प्रयासों की सराहना करने के लिए केवल एक दिन में काफी नहीं होती है।

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी  मातृ दिवस 8 मई को मनाया जा रहा है। बता दें कि प्रथम मातृ दिवस वर्ष 1908 में अन्ना जार्विस द्वारा अपनी मां के लिए एक स्मारक के रूप में सेलिब्रेट किया था। हर मां अपने बच्चों और परिवार द्वारा उसे समर्पित एक दिन की हकदार है। वह सभी को एक साथ रखने के लिए लगन से काम करती है और सभी को प्रोत्साहित करती है। मां को लेकर उत्सव मनाने के लिए सिर्फ़ एक दिन बहुत नहीं होता है। मातृ दिवस विश्वभर में अपनी मां के लिए अपने प्यार का इजहार करके सेलिब्रेट जाता है।

मातृ दिवस का इतिहास: पहला मातृ दिवस 1908 में फिलाडेल्फिया के अन्ना जार्विस द्वारा सेलिब्रेट किया जाता है। 12 मई 1998 को, उन्होंने वेस्ट वर्जीनिया के ग्राफ्टन चर्च में अपनी दिवंगत मां के लिए एक स्मारक रखा था। एना जार्विस ने सभी सफेद कार्नेशन पहने थे, लेकिन जैसे-जैसे यह रिवाज के साथ पूरा हुआ, लोगों ने जीवित मां का प्रतिनिधित्व करने के लिए लाल या गुलाबी रंग के कार्नेशन्स पहनना शुरू किया। लोगों ने अपनी मृत मां की स्मृति लिए सफेद कार्नेशन्स पहनना शुरू कर चुके है। जिसके उपरांत  इसे हर राज्य में एक रस्म बना दिया गया।

साल  1914 में अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मातृ दिवस को राष्ट्रीय अवकाश का एलान कर दिया गया। यह सिलसिला वर्षों तक चला, लेकिन कुछ समय वक़्त लोगों ने मातृ भूमिका निभाने वाली दादी और चाची जैसे अन्य लोगों को इस उत्सव शामिल करना शुरू किया गया, जिन्होंने मातृ भूमिका को बखूबी अदा किया है। एना जार्विस ने उस छुट्टी को ख़त्म करने की कोशिश की जो उनकी वजह से शुरू हुई थी। वह चाहती थी कि यह माताओं के लिए ख़ासकर एक दिन हो हालांकि लोगों ने इसे अन्य लोगों के लिए भी मनाना शुरू कर दिया।

शब्द भी कम है तेरी परवरिश के आगे
ऐ माँ तू न हो तो ये जिंदगी अधूरी लागे।। 

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