'विज्ञापन पर 1100 करोड़ खर्च किए, रेल प्रोजेक्ट के लिए 415 करोड़ नहीं..', सुप्रीम कोर्ट को 'वचन' देकर भूली केजरीवाल सरकार, अब आदेश जारी !
'विज्ञापन पर 1100 करोड़ खर्च किए, रेल प्रोजेक्ट के लिए 415 करोड़ नहीं..', सुप्रीम कोर्ट को 'वचन' देकर भूली केजरीवाल सरकार, अब आदेश जारी !
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज मंगलवार (21 नवंबर) को क्षेत्रीय रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम परियोजना के लिए धन आवंटित करने के अपने आश्वासन को पूरा नहीं करने के लिए दिल्ली सरकार की खिंचाई की। कोर्ट ने दिल्ली सरकार के रुख पर गहरी निराशा व्यक्त करते हुए परियोजना के लिए सरकार के विज्ञापन फंड को ट्रांसफर करने का आदेश पारित किया। हालाँकि, न्यायालय ने यह कहते हुए आदेश को एक सप्ताह के लिए स्थगित रखा कि यदि सरकार एक सप्ताह के भीतर स्वेच्छा से परियोजना के लिए पैसे नहीं देती है, तो पैसा दिल्ली सरकार के विज्ञापन खर्च में से निकाला जाएगा।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा दिए गए आश्वासनों का "घोर उल्लंघन" हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अप्रैल 2023 में, उन्होंने (कोर्ट ने) विशेष रूप से दिल्ली सरकार द्वारा देय शेष राशि (415 करोड़ रुपये) का उल्लेख किया था और सरकार को राशि का शीघ्र भुगतान करने का निर्देश दिया था। पीठ ने RRTS परियोजना के महत्व को भी रेखांकित करते हुए कहा कि इसका प्रदूषण कम करने पर प्रभाव पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि पिछले तीन वर्षों में दिल्ली सरकार ने विज्ञापनों के लिए बजटीय आवंटन लगभग 1100 करोड़ रुपये रखा था और इस वित्तीय वर्ष के लिए सरकार का विज्ञापनों पर खर्च 550 करोड़ रुपये है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, "बजटीय प्रावधान सरकार करती है। लेकिन अगर ऐसी राष्ट्रीय परियोजनाओं को प्रभावित करना है, और इसके विपरीत, विज्ञापन पर पैसा खर्च किया जा रहा है, तो हम उन निधियों (विज्ञापन खर्च) को इस परियोजना में स्थानांतरित करने का निर्देश देने के इच्छुक होंगे।" दिल्ली सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने एक सप्ताह का समय मांगा। जस्टिस कौल ने कहा कि मामले को एक हफ्ते के बाद सूचीबद्ध किया जाएगा और यदि इस बीच फंड आवंटन नहीं हुआ तो आदेश लागू हो जाएगा। 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि, 'ऐसे में हमारे पास यह निर्देश देने के अलावा बहुत कम विकल्प हैं कि विज्ञापन उद्देश्यों के लिए आवंटित धनराशि को रेल परियोजना में स्थानांतरित कर दिया जाए। विद्वान वकील के अनुरोध पर, हम इस आदेश को एक सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित रखेंगे। यदि सरकार द्वारा प्रोजेक्ट के लिए धनराशि आवंटित नहीं होती है तो, विज्ञापनों से पैसा निकालकर इसमें स्थानांतरित कर दिया जाएगा और कोर्ट का आदेश लागू हो जाएगा।'' सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (NCRTC) द्वारा दायर एक आवेदन पर पारित किया, जिसमें दिल्ली सरकार द्वारा वचनबद्धता के उल्लंघन को उजागर किया गया था। बता दें कि, जुलाई में, अरविंद केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वचन दिया था कि वह RRTS परियोजना के लिए बजटीय प्रावधान करेगी, जब कोर्ट ने उसे सरकारी विज्ञापनों के लिए किए गए बजटीय आवंटन को दिखाने के लिए कहा था।

जस्टिस कौल की अगुवाई वाली पीठ ने तब कहा था कि, 'यदि पिछले 3 वित्तीय वर्षों में विज्ञापन के लिए 1100 करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं, तो निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में योगदान दिया जा सकता है।' इससे पहले, यह अवगत कराए जाने पर कि दिल्ली सरकार बजटीय बाधाओं के कारण RRTS परियोजना (रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) में योगदान नहीं दे रही है, शीर्ष अदालत ने उसे पिछले तीन वित्तीय वर्षों में विज्ञापनों के लिए इस्तेमाल किए गए धन का खुलासा करते हुए एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था। 

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