देश भर में गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन यापन कर रहे इतने लोग
देश भर में गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन यापन कर रहे इतने लोग
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नई दिल्ली: भारत में आजादी के उपरांत भी गरीबी सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है. देश में फिलहाल लगभग 23 करोड़ लोग गरीबी में जीवन यापन करते हुए देखे गए है. जिन्हें अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए मजदूरी जैसे काम करना पड़ता है. हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान गरीबी रेखा से नीचे स्तर के लोगों के बारे में सवाल पूछे गए जिसका जवाब देते हुए कैबिनेट मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने इंडिया में गरीबी की स्थिति बताई है.

देश में गरीबी की स्थिति को बताने के लिए 2011-12 में इसे लेकर सर्वे भी करवाया गया था. जिसके उपरांत से अब तक इसे लेकर कोई आंकलन अब तक जारी नहीं हुआ है. इस सर्वे में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का आंकड़ा 27 करोड़ आंकी गई थी. सरकार का बोलना है कि देश में 21.9 करोड़ आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे रहती है. 

कैसे तय होता है गरीबी रेखा का स्तर?: सरकार का कहना है कि देश की 21.9 प्रतिशत आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन को बिता रहे है. सरकार मानती है कि गांवों में रहने वाला व्यक्ति हर दिन 26 रुपए और शहर में रहने वाला व्यक्ति 32 रुपए खर्च करने में असमर्थ है तो वो व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे माना जा रहा है.

गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाला परिवार उनके बच्चों की मूलभूत सुविधाएं भी पूरी नहीं हो पाई है. न ही वो परिवार अपने बच्चों को सही शिक्षा दिलवाने में समर्थ होता है और न ही स्वास्थ्य और पर्याप्त भोजन देने में. कोरोना काल में लॉकडाउन गरीबी में जीवन यापन कर रहे लोगों के लिए भारी संकट का वक़्त. जब उन्हें अधिक ब्याज पर कर्ज लेकर अपना परिवार चलाना पड़ा. 

ऐसे में इस बीच न सिर्फ उनके बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई बल्कि सही से भोजन मिलने में भी परेशानी का सामना भी करना पड़ा है. इस वक़्त  हाशिए पर जो समुदाय थे उन्हें और उनके परिवार को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा और कोविड खत्म होने के कुछ वक़्त बाद तक उन्हें रोजगार संबंधी परेशानियां भी आ गई है.

सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के द्वारा लॉकडाउन के उपरांत जारी आंकड़ों से ये पता चलता है कि बेरोजगारी दर मई 2022 में 7.1 प्रतिशत से बढ़कर जून 2022 में 7.8 प्रतिशत हो गई, जिसमें ग्रामीण भारत में बेरोजगारी दर में 1.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज भी देखने के लिए मिली है.

क्या कहती है नीति आयोग की रिपोर्ट?: खबरों का कहना है कि सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों की माने तो, नीति आयोग ने 'राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023' नाम से एक रिपोर्ट भी पेश कर दी गई थी. जिसके मुताबिक वर्ष 2015-16 से 2019-21 के दौरान 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए हैं. नीति आयोग ने राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) का ये दूसरा संस्करण पेश किया है. इसका पहला संस्करण नवंबर 2021 में पेश कर दिया गया था.

देश में क्या है बहुआयामी गरीबों की संख्या?: इंडिया में वर्ष 2015-16 में 24.85 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीब थी. जो 2019-21 में घटकर 14.96 फीसद पर आ गई. हालांकि इससे मुंह नहीं फेरा जा सकता कि देश की 15 प्रतिशत आबादी अभी भी बहुआयामी गरीबी में जीवन यापन भी करने में लगी हुई है. जो चिंताजनक आंकड़े हैं. इतनी बड़ी आबादी को गरीबी के इस स्तर से बाहर निकालने के लिए गवर्नमेंट का और मजबूत कदम उठाने के जरुरत है.

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