गुरू गोविंद सिंह की 350वीं जयंती : खालसा पंथ के संस्थापक
गुरू गोविंद सिंह की 350वीं जयंती : खालसा पंथ के संस्थापक
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गुरू गोबिन्द सिंह जिनका नाम सिख संप्रदाय के अनुयायी बड़े आदर के साथ लेते हैं। जो यह मानते थे कि भले ही बाज जैसे शक्तिसंपन्न अत्याचारी दुश्मन सामने क्यों न हो चिडिया उसके साथ लड़ने का प्रयास करती है। इससे हमें सीख लेना चाहिए। खालसा पंथ की स्थापना करने वाले श्री गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रंथ गुरू ग्रंथ साहिब को पूर्ण किया। उन्होंने इसे पूर्ण स्वरूप देने के ही साथ श्री गुरू ग्रंथ साहिब को गुरू स्वरूप में सुशोभित किया।

उनके नाटक को उनकी आत्मकथा की तरह माना जाता है। इस नाटक से उनके जीवन के विभिन्न पहलूओं पर चर्चा की जाती है। इसे दशम ग्रंथ का एक अंग माना जाता है। सिखों के 10 वें गुरू का जन्म 22 दिसंबर 1666 को बिहार राज्य में इसकी राजधानी पटना में हुआ था।

गुरू गोविंद सिंह के गुरू तेग बहादुर सिंह की मृत्यु के बाद 11 नवंबर 1675 को वे गुरू बनाए गए। गुरू गोबिंद सिंह गुरू होने के ही साथ, कवि, भक्त और आध्यात्मिक नेता थे। वे एक महान योद्धा थे। वर्ष 1699 में वैशाखी के दिवस ही उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। सिखों के इतिहास की यह सबसे बड़ी घटना मानी जाती है। 

श्री गुरू गोबिंद सिंह ने मुगलों व उनके सहयोगियों के विरूद्ध 14 युद्ध भी लड़े। सरबंसदानी द्वारा कहा गया कि जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बजांवाले आदि नामों से जाने गए हैं। गुरू गोविंद सिंह का जन्म 9 वें सिख गुरू तेगबहादुर व माता गुजरी के घर पटना में हुआ। फारसी, संस्कृत, उर्दु की शिक्षा भी उन्होंने ली उन्होंने योद्धा बनने का कौशल भी सीखा।

11 वर्ष की आयु में वे सुंदरी जी के साथ वैवाहिक सूत्र में बंध गए। उन्हें उनके बलिदान के लिए जाना जाता है। अपने परिवार और पुत्रों के साथ उन्होंने स्वयं का बलिदान धर्म के लिए तक कर दिया।

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