आज है आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती, जानिए उनके जन्म की कथा
आज है आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती, जानिए उनके जन्म की कथा
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हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को गुरु शंकराचार्य का जन्म हुआ था। इसी के चलते आज आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती है। आप सभी को हम यह भी बता दें कि शंकराचार्य को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। जी दरअसल हिंदू धर्म की पुर्नस्थापना करने वाले आदि शंकराचार्य का जन्म लगभग 1200 वर्ष पूर्व कोचीन से 5-6 मील दूर कालटी नामक गांव में नंबूदरी ब्राह्राण परिवार में हुआ था। इस समय इसी कुल के ब्राह्मण बद्रीनाथ मंदिर के रावल होते हैं। इसी के साथ ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं। आप सभी जानते ही होंगे आदि शंकराचार्य बचपन में ही बहुत प्रतिभाशाली बालक थे। जी दरअसल उनके जन्म के कुछ सालों बाद ही उनके पिता का निधन हो गया था। ऐसा कहा जाता है गुरु शंकराचार्य ने बहुत ही कम उम्र में वेदों को कंठस्थ कर इसमें महारथ हासिल कर लिया था।

आदि शंकराचार्य के जन्म से जुड़ी कथा - ब्राह्राण दंपति के विवाह होने के कई साल बाद भी कोई संतान नहीं हुई। संतान प्राप्ति के लिए ब्राह्राण दंपति ने भगवान शंकर की आराधना की। उनकी कठिन तपस्या से खुश होकर भगवान शंकर ने सपने में उनको दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। इसके बाद ब्राह्राण दंपति ने भगवान शंकर से ऐसी संतान की कामना की जो दीर्घायु भी हो और उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैले। तब भगवान शिव ने कहा कि या तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो सकती है या फिर सर्वज्ञ। जो दीर्घायु होगा वो सर्वज्ञ नहीं होगा और अगर सर्वज्ञ संतान चाहते हो तो वह दीर्घायु नहीं होगी। तब ब्राह्राण दंपति ने वरदान के रूप में दीर्घायु की बजाय सर्वज्ञ संतान की कामना की। वरदान देने के बाद भगवान शिव ने ब्राह्राण दंपति के यहां संतान रूप में जन्म लिया। वरदान के कारण ब्राह्राण दंपति ने पुत्र का नाम शंकर रखा। शंकराचार्य बचपन से प्रतिभा सम्पन्न बालक थे।

जब वह मात्र तीन साल के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया। तीन साल की उम्र में ही उन्हें मलयालम भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। कम उम्र में उन्हें वेदों का पूरा ज्ञान हो गया था और 12 वर्ष की उम्र में शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था। 16 वर्ष की उम्र में वह 100 से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे। बाद में माता की आज्ञा से वैराग्य धारण कर लिया था। मात्र 32 साल की उम्र में केदारनाथ में उन्होंने समाधि ले ली। आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार के लिए देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की थी जिसे आज शंकराचार्य पीठ कहा जाता है।

source:news18

 

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