भारतीय बच्चों में लगातार बढ़ रहा 'स्क्रीन एडिक्शन' का खतरा
भारतीय बच्चों में लगातार बढ़ रहा 'स्क्रीन एडिक्शन' का खतरा
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प्रौद्योगिकी में दिन-प्रतिदिन हो रही तरक्की का असर आज हर किसी के जीवन पर साफ दिख रहा है। इससे बच्चे भी अछूते नहीं हैं और मात्र दो साल की उम्र में वह मोबाइल फोन, टैबलेट व कंप्यूटर में इस कदर खो जाते हैं कि खुद को आसपास के माहौल से अलग कर लेते हैं (स्क्रीन एडिक्शन), जिसका उनके मनोमस्तिष्क पर दीर्घकालिक असर पड़ता है। चार साल की अरुणिमा ने एक साल पहले मोबाइल फोन पहली बार अपने हाथ में लिया था। इसके बाद उसके रंग बिरंगे डिस्प्ले में वह इस कदर खोई कि स्कूल के बाद तथा छुट्टियों के दौरान उसका एकमात्र हमसफर वह मोबाइल ही रह गया।

मुंबई में रहने वाली चार वर्षीय अक्षिणी दीक्षित दो साल पहले टैबलेट से उस वक्त पहली बार रूबरू हुई जब उसके पापा घर में नया टैबलेट खरीदकर लाए थे। आज की तारीख में वह यूट्यूब पर कविताएं सुनती है और विभिन्न प्रकार के गाने व गेम्स डाउनलोड करती है। स्क्रीन ने धीरे-धीरे न सिर्फ उसके आउटडोर खेलों की जगह ले ली, बल्कि परिवार और दोस्तों के साथ बिताने वाले वक्त पर भी अधिकार कर लिया। अरुणिमा और अक्षिणी अकेली नहीं हैं। विशेषज्ञ चेतावनी देते हुए कहते हैं कि भारतीय बच्चों में स्मार्टफोन, टैबलेट, आईपैड व लैपटॉप के रूप में 'स्क्रीन एडिक्शन' लगातार बढ़ रहा है और भविष्य में इसका उनके जीवन पर बुरा असर पड़ने वाला है।

मुंबई के नानावती सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में बाल व युवा साइकियाट्रिस्ट डॉ.शिल्पा अग्रवाल ने कहा, "मुझे इस बात की चिंता है कि आज बच्चे मानव संबंधों की कीमत पर डिजिटल प्रौद्योगिकी का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका उनके मस्तिष्क पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।" डॉ.अग्रवाल ने बताया कि, "इसका असर बच्चों को अपने भावों को नियंत्रित करने की क्षमता पर पड़ सकता है और यह स्वस्थ संचार, सामाजिक संबंधों तथा रचनात्मक खेलों को प्रभावित कर सकता है।" अमेरिकन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स दो साल तक के बच्चों द्वारा किसी भी प्रकार के स्क्रीन मीडिया और स्क्रीन पर बिताए गए समय को हतोत्साहित करता है और दो साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए एक या दो घंटे से अधिक समय के स्क्रीन समय का वकालत नहीं करता।

नई दिल्ली स्थित मैक्स सुपर स्पेशियलिटी में मानसिक स्वास्थ्य व व्यवहार विज्ञान के निदेशक डॉ.समीर मल्होत्रा ने जोर देते हुए कहा, "मानवीय संबंधों की कीमत पर धड़ल्ले से स्क्रीन का इस्तेमाल बच्चों में सामाजिक-संचार कौशल तथा पारिवारिक कर्तव्यों को प्रभावित कर सकता है।" हाल में हुए न्यूरो-इमेजिंग अध्ययनों में इस बात का खुलासा हुआ है कि बच्चों में स्क्रीन एडिक्शन से बच्चों में विभिन्न प्रकार के संज्ञानात्मक दोष हो सकते हैं। स्क्रीन एडिक्शन से बच्चों में ऑस्टिन स्पेक्ट्रम विकार (एएसडी) होने का भी खतरा होता है। बीएलके सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में बाल मनोचिकित्सक सतिंदर के वाली ने कहा, "एक मामला मुझे याद है, जिसमें एक बच्चे में एएसडी के लक्षण थे।

वह केवल आईपैड पर प्रतिबिंबों पर ही प्रतिक्रिया व्यक्त करता था और वह स्क्रीन एडिक्शन से बुरी तरह पीड़ित था। एक प्ले स्कूल में भर्ती कराने के बाद वह धीरे-धीरे ठीक हो गया, क्योंकि वह स्क्रीन एडिक्शन के बदले अन्य बच्चों के साथ सामाजिक-भावनात्मक कौशल विकसित करने में कामयाब रहा।" स्क्रीन एडिक्शन से बच्चों में भाषा तथा बोलने की प्रक्रिया के विकास में भी बाधा आ सकती है। गुड़गांव स्थित पारस अस्पताल में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट की डॉ.प्रीति सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा, "स्क्रीन एडिक्शन के कारण कई बच्चों में हमने बोलने में हुई परेशानी को देखा है। मैं चेतावनी देते हुए यह कहना चाहूंगी कि बच्चों के आसपास जितने गैजेट होंगे, उनके ऑटिज्म, बोलने में देरी व सामाजिक कौशल में कमी का उतना ही खतरा होगा।"

(आईएएनएस)

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