सोच के मायाझाल में फँसी वैज्ञानिक जिंदगी व उसके आविष्कार Part-III
सोच के मायाझाल में फँसी वैज्ञानिक जिंदगी व उसके आविष्कार Part-III
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आविष्कारक के पास अब आविष्कार को आगे जनता तक पहुँचाने के दो रास्ते शेष रहते है | पहला सरकारी सहयोग जहां कंपनी खोलने को प्रधान मानती है और किसी भी तरह के लिए पहले गारंटी मागती है | जब गारंटी के लिए धनी लोगो के पास जाओ तो उन्हे चाहिए पहले मोनोपोली | दूसरा रास्ता बैंक व आर्थिक संस्थाओं का है जहां दुनिया के अब तक के सभी रिकॉर्ड से जाँचने के बाद आविष्कार की पुस्टि का सरकारी प्रमाण पत्र या पेटेंट शुन्य माना जाता है | यह गणितीय आकलन है जहां संविधान पेटेंट धारकों को विशेष अधिकार देता है, बाज़ार करोड़ों की कीमत और मुद्रा की व्यवस्था करने वाली संस्थाये खोटा पैसा भी नहीं अर्थात यहा से भी आविष्कारक को आविष्कार बेचने का मार्ग दिखा दिया जाता है | यह आधुनिक भारतीय शिक्षा की सबसे बड़ी विडंबना है जहां ज्यादा उच्चाई पर जाने पर व्यक्ति असाहय हो जाता है | पहले व्यक्ति प्राथमिक शिक्षा लेता है, फिर मिडिल से होता हुआ सेकंडरी उसके पश्चात हायर सेकंडरी की शिक्षा लेता है | इसके आगे स्नातक (ग्रेजुएट) फिर स्तानकोतर (पोस्ट ग्रेजुएट) करता है, उसके बाद अनुसंधान कार्य करता है, फिर पी. एच. डी. की उपाधि लेता है और अंत में कुछ नया करके कानूनी मान्यता पेटेंट या एकस्व के रूप में परन्तु सारी सुविधाये व मुफ्त सरकारी छूट उप्पर जाते-जाते खत्म हो जाती है या जाति विशेष में विभाजित होती हुइ दम तोड़ देती है | 

कॉलेज, रिसर्च संस्थानों के माध्यम से कई योजनाये दीं जाती है वो सिर्फ़ रिसर्च वर्क के लिए न की रिसर्च के बाद सफलता पर, यदि सफलता के बाद दिया भी जाता है तो वहा गाइडलाइन के रूप में शर्ते विध्यमान रहतीं है | अंग्रेजो की गुलामी से आने वाली शिक्षा पद्धति की गाइडलाइन वाली शर्तें कितनी स्वतन्त्र होगी उसका अनुभव तो आप लोगो को हमसे ज्यादा है | आवश्यकता आविष्कार की जननी है, इसी सार्वभौमिक सत्य के कारण भारत जैसे संस्कृति एवं कर्म प्रधान देश में कई आविष्कार अनुभव और कार्य के प्रति ईमानदारी की निष्ठा व समर्पण के दम पर आते है जिसमें अधिकांश आगे अज्ञानता के कारण सरकारी बाबुओं की वैज्ञानिक जमात और व्यवसाहिक के चक्रव्युह में दम तोड़ देते है | विश्वविधालय में चयनित विध्वान लोगो के रिसर्च की स्वकृति पर पी.एच.डी. या उपाधि मिलती है यदि सरकार के चयनित विध्वान लोग दुनिया के सभी रिसर्च को जाँच कर दुनिया में पूर्णतया नया होने का प्रमाण-पत्र दे देवे तो फिर कुछ नहीं मिलता है | देश में कई सरकारी व निजी संस्थाये है जहां लाखों की संख्या में वैज्ञानिक कार्य कर रहे है वे आये दिन रोज़ कई तकनीकें और आविष्कार राष्ट्र को दे रहे है परन्तु ये सभी निजी संस्था व सरकार के दायरे में आते है जो पहले पैसा लेकर और देकर कार्य करते है | यहा पेटेंट के प्रतिफल का मालिक व्यक्ति नहीं कहलाता है | यह पैसे के आधार का कार्य करवाने का तरीका व आविष्कार के पहले सीमाएँ वैज्ञानिकों को विदेश की ओर ले जाती है या कम्पनियों व संस्थानों के लिए काम करने का मार्ग प्रशस्त करती है | 

इस कदम से फिर कुछ नया करने की मूल सोच आदेश के तहत कार्य करने की श्रृंखला में पीस जाती है | जहां सोचने व करने की आजादी ओर वैज्ञानिकों की सोच में विश्वास होता है वहा संस्थाये अवश्य नया करके दिखाती है | अब अंतिम रास्ता सामाजिक संस्थाओं का व दरियादिल वाले धनी लोगो का बचता है | इसमें पैसा दान में दिया जाता है जो आविष्कारक की आत्मा को ही मार डालता है तो फिर आत्मविश्वाश को बची राख में ढूढना बेईमानी लगता है | यह दान उसके आविष्कार करने के कार्य को गाली देता है ओर चिढ़ाता है की तुम कमाने लायक नहीं हो या शारीरिक ओर मानसिक तौर पर विकलांग हो | दान की व्यवस्था व तन्त्र वैज्ञानिक को मानवता व इंसानीयत की दुआई देकर उसके आविष्कार को दान में देने की बात करता है | यहा पर भी दोनो मार्ग आगे जाकर वैज्ञानिक के जीवन को अवरुद्ध कर देते है | पहला वैज्ञानिक ने दान दे दिया तो वह् आगे अनुसंधान के कार्यक्षेत्र में नहीं रह सकता क्यूँकि इसके लिए धन चाहिए ओर पहले में लगाया धन ही नहीं मिला तो परिवार के सदस्यों के साथ कोई भी ईंसान मदद नहीं करता | 

दूसरा मार्ग वैज्ञानिक जिंदगी भर मेहनत करे ओर कभी सफल हो जाये तो उसे दान कर दे ऐसी व्यवस्था बनाकर वो अपने ही अनुसंधान क्षेत्र के साथ गद्दारी करता है या जिस थाली में खाता है उसी में छेद करता है जो नई पीढ़ी को इसमे आने से रोकता है व उसके मानवीय समाज में जिने के अधिकार को | मुझे पता है इतनी सारी सच्चाई ओर भूतकाल का विश्लेषण जानकर अधिकांश लोग मुझे ही नकारात्मकता से ग्रसित बताकर फिर अपनी पुरानी सोच के दायरे में चले जायेगे | आविष्कार ओर नवीन करने की पहली सीढ़ी को पार करके लौट जाना आपके स्वाभिमान से मेल नहीं करेगा व उज्जवल भविष्य निर्माण के प्रारम्भ के पगडण्डी तक आकर लौट जाना किसी भी द्रष्टीकोण से उचित नहीं होता | इसके लिए कुछ नया करना पड़ेगा जो इन सभी प्रश्नो का उपाय हो | चार वर्ष से अधिक समय से कनुनन एवं सवेधनिक तौर पर अधिकृत राष्ट्रपति महोदय के पास हमारे आविष्कार असली स्वतः टूटने वाली सिरिंज की फाइल पर अन्तिम निर्णय होने दो सारे उपाय आपके सामने आ जायेगे | इस उपाय के माध्यम से लक्ष्य तक पहुँचने का रस्ता व प्रक्रिया बनेगी जिसके लगातार किर्यान्यवन के लिए कई कानून बनेगे वो वास्तविकता में व्यवस्था परिवर्तन कहलायेगा ओर प्रत्येक आविष्कार या एकस्व कम समय एवं न्यूनतम मूल्य में प्रत्येक ईंसान तक पहुँच पायेगा |

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