स्कूल - विद्यादान या श्मशान
स्कूल - विद्यादान या श्मशान
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स्कुल, विद्यादान या श्मशान

हरियाणा के गुरूग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूूल में प्रद्युम्न ठाकुर की निर्मम हत्या, हरियाणा के ही फरीदाबाद में सीकरी गाॅव के सीनियर सेकंड्री स्कूूल में सातवी के छात्र को स्कूूल से अगवा कर दुष्कर्म के बाद हत्या। उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के अशोक पब्लिक स्कूूल में फीस नही लाने पर चार साल की बच्ची को बंधक बनाया गया। कुछ दिनो पूर्व इन्दौर मे लाॅ सजेसेस स्कूल मे छात्र अंशुल की स्विमिंग पूल मे डुबने से मौत ।

ये तो पाठको के लिये मैंने कुछ उदाहरण दिया परंतु सोचने की बात यह है कि बड़ी-बड़ी सुविधाओं,आधुनिक कोर्सेस, विशाल क्लासेस और भी न जाने क्या-क्या सहूलियतों के नाम पर मोटी रकम वसूलने वाले स्कूूल प्रबंधनो को ज़रा भी दुख है इन मौतो का या सीधे कहे हत्याओं का? जिनके लिये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार वो ही है। एक बच्चा जब युनिफार्म पहन कर घर से निकलता है तो अपनी माॅ के लिये किसी राजकुमार से कम नही होता। जब पिता,अपनी गोद मे उसे स्कूल छोड़कर आता है तो उसके नन्हे से कदमो में,वो अपना सुनहरा भविष्य देखता है कि कैसे वो पढ लिखकर पिता का नाम रौशन करेगा। स्कूल जाने से लेकर वापस आने तक,उस बच्चे का परिवार कभी घड़ी,तो कभी दरवाजे पर नजर गढ़ाये रहता है कि कब समय का कांटा और स्कूल की घंटी उनके लाल को घर वापस ले आयेगीं। पर जब वही नटखट शरारते करने वाला,माॅ के आॅचल में सोने वाला,स्कूल से कफन में लिपटा हुआ घर वापस आता है, तो उसे लाश के रूप मे देखकर एक माॅ के दिल पर क्या गुजरती होगी, इसका अंदाजा मेरी कलम नही लगा सकती। पर सोचने वाली बात ये है कि सर्व शिक्षा अभियान,स्कूल चले हम,आओ मिले बांचे और न जाने कितनी योजनायें बनाकर, अपनी पीठ थपथपाने और अपना गुणगान करने वाली सरकारें स्कूल मे बाल सुरक्षा अभियान कब चलायेगी? इसके लिये बहस होना चाहिये।

सस्ती सैलरी देने के लालच में बिना प्रशिक्षित ड्राइवर रखना, प्यून और आया जैसे पदो पर बिना जांच पड़ताल किये किसी भी अपराधिक मानसिकता वाले इंसान को रख लेना ये आजकल ज्यादातार स्कूल के प्रंबधन का, पहला दायित्व सा बन गया है । कमीशन के लालच में किताबे और ड्रेस हमारी बताई दुकान से लो, नही तो क्लास मे बैठने नही दिया जायेगा, ऐसे कठोर अनुशासन से चलने वाले स्कूल में, बस एक ही बात से समझौता हो जाता हैं और वो हैं बच्चो की सुरक्षा! पिछले दिनो इन्दौर में पुलिस चेकिंग अभियान में, जब एक स्कूल बस को जांच के लिए रोका गया तो नज़ारा भयानक था,उसमे बच्चे ठीक वैसे ही भरे थे जैसे हाट बाज़ार मे कटने वाले पशुओ कोबड़ी बेरहमी से, ले जाया जाता है हद तो तब हो गई जब वाहन चालक और क्लीनर के नशे में होने की बात सामने आई। लेकिन बच्चो को सत्य की राह पर चलने की, शिक्षा देने वाले स्कूल के प्रंबधन ने रूपयो के मार्फत, चेकिंग करने वालो से गठबंधन की सरकार बना ली और खुद को बचा लिया। ऐसी ना जाने कितनी घटनायें होगी, ये आप और मैं सोच भी नही सकते। आज हर गली,मोहल्ले में सड़क हो या ना हो पर स्कूल जरूर मिल जाते हैं। परंतु सोचना ये चाहिये कि क्या स्कूल में बच्चा, काम करने वाली आया से लेकर टीचर तक,सबके बीच सुरक्षित है ये सलाह, मेरी पालको के लिये है क्यो की स्कुल प्रबंधन मे बदलाव आयेगा ऐसी मुझे तो उम्मीद नही हैं। बच्चे के जीवन में अज्ञान खत्म करने के लिये,उसे स्कूल भेजा जाता है पर जब वही स्कूल, उसके जीवन को ही, खत्म कर दे,तो इसकी व्याख्या कैसे की जाये मुझे समझ नही आ रहा। आज बात एक रेयान स्कूल या एक प्रद्युम्न की नही बल्कि भारत के आने वाले कल की है इसलिये नियम-कायदे कानून से हटकर हमे इसके भावनात्मक पक्ष को समझना होगा। मंहगी फीस लेने वालो को ये सोचना होगा कि पढने वाला बच्चा सिर्फ एक स्टूडेन्ट नही,किसी का लाल किसी के घर का उजाला है उसे केवल पढ़ाना ही नही सहेजना और सुरक्षा देना भी हमारा दायित्व है ।

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