राम मंदिर के मुद्दे पर मोदी सरकार ने भले ही चुप्पी साध ली, लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) ने यह मुद्दा अभी भी पकड़ रखा है. खबर है कि आरएसएस ने राम मंदिर के मामले को एक बार फिर से चर्चा में लाने के पीछे उद्देश्य नवीन नीति निर्माण है. रविवार को हुई एक आंतरिक बैठक में संघ पदाधिकारियों ने यह निर्णय लिया है. वाराणसी में आरएसएस, वीएचपी और बीजेपी नेताओं के साथ बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत बोले, '2017 में यूपी में होने वाले विधानसभा चुनावों से पूर्व राम मंदिर के मसले को आंदोलन के तौर पर सशक्त करना है.
यदि ऐसा नहीं हुआ तो लोग लोकसभा चुनावों के दौरान किए गए राम मंदिर निर्माण के दावे को लेकर गंभीर रूप से सवाल उठाये जायेगे.' बता दें कि भागवत, निवेदिता शिक्षा सदन में कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर बैठक का आयोजन किया गया. केंद्रीय मंत्री ने कहा "राम मंदिर हमारी पहचान है' भागवत ने बयान उस समय दिया जब इस मसले पर लोकसभा चुनाव के पश्चात नरेंद्र मोदी ने ख़ामोशी साध ली है. पीएम मोदी राजधानी में योग दिवस के कार्यक्रम के सफल क्रियान्वन में जुटे हुए है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी संघ प्रमुख से मुलाकात के समय राज्यसभा में सदस्यता कम होने की बात कहते हुए इस बात से पल्ला झाड़ लिया. हालांकि मोदी सरकार में मंत्री, कलराज मिश्र वाराणसी में आरएसएस की इस बैठक में उपस्तिथ थे.
एक अखबार से मिली सूचना के अनुसार, कलराज मिश्र ने मीडिया से चर्चा के दौरान राम मंदिर के निर्माण पर विचार विमर्श किया गया. उन्होंने कहा, 'राम मंदिर हमारी पहचान है और हम अपनी पहचान हर हालत में बनाये रखेंगे. पूरी योजना के साथ ये मुद्दा फिर से उठाया जाएगा. सभी लोग इस पर नीति मिर्माण में जुटे हैं.' दिलचस्प बात ये है कि अब तक कलराज मिश्र राम ने मंदिर से जुड़े सवालों पर जवाब कोई जवाब नहीं दिया.
मोदी सरकार से खुश नहीं है संघ सूत्रों के अनुसार, भागवत ने मीटिंग के समय मोदी सरकार के मंत्रियों और सांसदों के उन बयानों पर भी आपत्ति जाहिर की जो संघ परिवार के जरुरी मामलो के विरोध में हैं. भगवत ने कहा कि एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप और गलत बयानबाजी के चलते मंत्री और सांसद संघ के वास्तविक मुद्दे को नहीं उठा पा रहे है. यही नहीं, इससे जनता के बीच भी गलत सन्देश प्रेषित हो रहा है. जानकारी के मुताबिक़ "बैठक में संघ के 22 नेता उपस्तिथ थे. ये नेता 1990 में चलाए गए राम मंदिर अभियान का मुख्य भाग रहे है और दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय अयोध्या में उपस्थित थे.