पीवी नरसिंह राव देश में लाए आर्थिक उदारीकरण की नीति
पीवी नरसिंह राव देश में लाए आर्थिक उदारीकरण की नीति
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भारतीय राजनीति में तब एक उम्मीद बन कर एक ऐसी शख्सियत का पदार्पण हुआ जब देश की राजनीति देश का आर्थिक विकास चाहती थी। विदेशों में भारत की साख को निर्मित किए जाने की जरूरत थी। एक दक्षिण भारतीय नेता के तौर पर उन्होंने मिथक तोड़ा और पहले दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री बने। उन्होंने देश मे लाइसेंस राज को समाप्त कर उदारीकरण और वैश्विक अर्थव्यवस्था की नई शुरूआत भी की। उन्हें आर्थिक सुधार का पिता कहा जाता है। हालांकि उनके कार्यकाल में कई तरह की घटनाऐं हुई लेकिन उन्होंने 5 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण किया। उन्हें करीब 17 भाषाओं को ज्ञान था।

पीवी नरसिंहराव का जन्म 28 जून 1921 को करीमनगर जो कि आंध्रप्रदेश में है वहां उसका जन्म हुआ था। उसके पिता पी. रंगा राव और माता रूक्मिनिअम्मा किसार थे। दरअस उन्होंने अपनी पढ़ाई किसी रिश्तेदार के यहां निवास कर पूर्ण की। इसके बाद वे ओस्मानिया विश्वविद्यालय में अध्ययन करने गए। जहां से लौटने के बाद वे लाॅ में अध्ययन करने पहुंच गए। करीमनगर जिले के भमदेवरापल्ली मडल के कत्कुरू गांव में एक रिश्तेदार के घर पर प्राप्त की। इतना ही नहीं उन्होंने कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।

वे अंग्रेजी, मराठी, फ्रांसीसी, जर्मन, स्पैनिश आदि भाषाओं के ज्ञाता थे। भारत की स्वाधीनता के बाद वे कांग्रेस में शालिम हो गए। उन्होंने आंध्रप्रदेश में 1962 से 1964 तक कानून ओर सूचना मंत्री वर्ष 1964 से 67 तक कानून और विधि मंत्री से स्वास्थ्य मंत्री, सूचना प्रसारण मंत्री का कार्यकाल भी संभाला। भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद वे भारतीय राजनीति के केंद्र बिंदु बन गएं डाॅ. मनमोहन सिंह को आगे लाकर वित्त मंत्री बनाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। उन्होंने एक गैर राजीतिक व्यक्ति को वित्तमंत्री बनाया।

इस तरह का यह पहला कदम था। उनहोंने देश की प्रगति और उन्नति के लिए मुक्त बाजार और वैश्विकरण को प्रोत्साहित कियां इसके परिणामस्वरूप निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिला। उन्होंने भारत के मिसाईल और परमाणु कार्यक्रम को गति देने की बात भी कही। उन्होने भारत और चीन के संबंध सुधारने पर भी जोर दिया। उन्होंने अमेरिका से संबंध सुधारने के साथ पश्चिमी योरप के साथ भारत का जुड़ाव बढ़ाया।

6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया यह घटना उनके कार्यकाल में ही हुई। न्यायालय ने वर्ष 2003 में उन्हें बरी कर दिया। 9 दिसंबर वर्ष 2004 को दिल का दौरा पड़ने के कारण वे बीमार हो गए और फिर उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञाान संस्थान में भर्ती करवा दिया गया।

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