थोड़े से फायदे के लिए आजकल इंसान दूसरों की जान को भी दांव पर लगा देता है. हर चीज में मिलावट होने लगी है और किस चीज को सही माना जाए यह आजकल समझ से बाहर है. खाद्य पदार्थों को भी लोग अपने फायदे के लिए कीटनाशकों और इंजेक्शन की मिलावट से उगाने लगे हैं. आज उगने वाले हर फसल पर कुछ न कुछ कीटनाशक दवाई का प्रयोग करते है । गेहूं का इस्तेमाल सबसे ज्यादा खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है लेकिन इसके ऊपर भी मैलाथिन नामक पाउडर का इस्तेमाल कीड़ों से बचने के लिए करते है और गेहूं खाने वालो को इस पाउडर के दुष्परिणाम भुगतने पड़ते है , चाहे उसकी मात्रा थोड़ी ही क्यूँ न हो, परन्तु लगातार उपयोग करने से आगे जाकर बहुत परेशानी हो सकती है । बाजारों में उपलब्ध मक्खन, घी और दूध के स्थानीय ब्राण्ड के अलावा लोकप्रिय ब्रांडों में भी कीटनाशक के अंश पाए गए है ।
बार बार कीटनाशक का छिड़काव करते रहने से ये प्राकृतिक रूप से विघटित नहीं हो पाते हैं। यही कारण है कि यह हमारे भोजन में शामिल हो जाते हैं। भोजन के साथ मानव रक्त में मिलते हुए अपने विषैले प्रभाव को आंतरिक रूप से शारीरिक दोष के रूप में दिखते हैं। खून में डी.डी.टी. की मात्रा अधिक होने पर कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है ।साथ ही हमारे गुर्दों, होठों,जीभ व यकृत को भी नुकसान पहुंचता है । कीटनाशकों से सिर्फ हमें ही नुकसान नहीं होता है बल्कि कीटनाशक छिडकने वाले किसान अगर इसके छीड़काव के वक्त ध्यान नहीं रखते हैं तो यह उनके लिए भी बहुत जानलेवा साबित होती है. जहरीली दवा शरीर में जाने के बाद सर्दी होना,सांस लेने में तकलीफ होना,नाक बंद होना तथा शरीर अकड़ जाना जैसे लक्षण उभरकर सामने आते हैं और कभी कभी तो किसानों की मौत भी हो जाती है.
बड़े-बड़े काम करता है छोटा सा नींबुड़ा
ना लें वर्कआउट के बारे में यह अधपका ज्ञान - अंतिम भाग