नवरात्र आरम्भ होने में एक दिन से भी कम का समय बचा है। जी हाँ, इस बार नवरात्रि 17 अक्टूबर से यानी कल से आरम्भ हो रही है। आप जानते ही होंगे नवरत्रि के दिन देवी दुर्गा को समर्पित होते हैं और इन नौ दिनों में नौ माताओं का पूनम होता है जो दुर्गा माँ के स्वरूप है। वैसे आज हम आपको बताने जा रहे हैं इनमे पहला दिन किस माता को समर्पित होता है और उनका स्वरूप कैसा है। तथा उनकी कथा क्या है।
नवरात्रि का पहला दिन- जी दरअसल नवरात्रि का पहला दिन माता शैलपुत्री का होता है। कहा जाता है नवरात्रि के पहले दिन मां के इसी स्वरूप का विधि विधान से पूजन किया जाता है जो लाभकारी माना जाता है। जी दरअसल मार्केण्डय पुराण में बताया गया है कि माँ शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था और इसी के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अब आइए जानते हैं मां के स्वरूप के बारे में।
शैलपुत्री का स्वरूप - कहते हैं पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती।।।नवरात्रि में इन्हीं देवियों के स्वरूपोंं की पूजा का विधान है। वहीँ शुरुआत के तीन दिन पार्वती के स्वरूपों की ही पूजा की जाती है। जिनमें सबसे पहले दिन होती है माता शैलपुत्री की पूजा। माता शैलपुत्री का स्वरूप बेहद ही सौम्य है। कहा जाता है वह हमेशा बैल पर विराजमान होती हैं। इसी वजह से इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। शैलपुत्री माँ के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। कहते हैं पिछले जन्म की तरह ही इन देवी का विवाह भी शंकरजी के साथ ही हुआ था।
कथा- एक बार राजा दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया। जिसमें उन्होंने भगवान शिव और उनके परिवार को को आमंत्रित नहीं किया गया। जब यह बात राजा दक्ष की बेटी व भगवान शिव की पत्नी सती ने सुनी तो उनका मन उस यज्ञ में जाने का हुआ। शिव शंकर ने उन्हें काफी समझाया और जाने से मना किया लेकिन फिर भी वो उस यज्ञ में पहुच गईं। जब सती उस यज्ञ में पहुंची तो उनका सभी ने अनादर किया यहां तक कि राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान भी किया। यह सब सती सह ना सकी और जलते कुंड में कूद गई। जब भगवान शिव को इसकी जानकारी मिली तो भयंकर संहार हुआ। कहा जाता है कि सती अपने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं। इसीलिए वो 'शैलपुत्री' के नाम से जानी गईं। साथ ही उन्हें हेमवती के नाम से भी जाना जाता है।
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