'काशी-मथुरा भी हिन्दुओं को सौंप दें मुसलमान..', ऐसा क्यों बोले बाबरी की खुदाई करने वाले पुरातत्वविद केके मुहम्मद ?
'काशी-मथुरा भी हिन्दुओं को सौंप दें मुसलमान..', ऐसा क्यों बोले बाबरी की खुदाई करने वाले पुरातत्वविद केके मुहम्मद ?
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नई दिल्ली: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के सेवानिवृत्त क्षेत्रीय निदेशक केके मोहम्मद ने कहा है कि मुसलमानों को विवादित ज्ञानवापी और शाही ईदगाह की जमीन हिंदुओं को सौंप देनी चाहिए। एक इंटरव्यू में वरिष्ठ पुरातत्वविद् ने कहा कि उक्त जमीन को हिंदुओं को सौंपना ही इस विवाद का सही और एकमात्र समाधान है। केके मोहम्मद ने राम जन्मभूमि के संबंध में महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले थे। वह राम मंदिर के प्रबल समर्थक थे और बाबरी मस्जिद के ध्वस्त विवादित ढांचे के नीचे राम मंदिर के अस्तित्व का समर्थन करते थे।  

 

केके मोहम्मद बीबी लाल की उस टीम का भी हिस्सा थे जिसने 1976 में बाबरी मस्जिद की खुदाई की थी और वहां से सबूत जुटाए थे। अब पुरातत्वविद् ने ज्ञानवापी-शाही ईदगाह विवाद पर बात की है। यह विवाद 5 महिला याचिकाकर्ताओं की आस्था से संबंधित है, जो तथाकथित ज्ञानवापी विवादित मस्जिद के अंदर मौजूद मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, श्री हनुमान और नंदी की मूर्तियों की पूजा करने की अनुमति मांग रही हैं।  2022 में वाराणसी में ढांचे के अंदर स्वास्तिक के चिन्हों के साथ एक 'शिवलिंग' भी पाया गया था। केके मोहम्मद ने कहा है कि सभी धार्मिक नेताओं को एकजुट होकर ज्ञानवापी और कृष्ण जन्मभूमि ढांचे को हिंदू समुदाय को सौंप देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि, “काशी, मथुरा और अयोध्या हिंदुओं के लिए बहुत खास हैं, क्योंकि वे भगवान शिव, भगवान कृष्ण और भगवान राम के जीवन से जुड़े हैं। मुसलमानों के मन में यहां बनी मस्जिदों के लिए ऐसी कोई भावना नहीं है।'' उन्होंने ये भी कहा कि, इसके कई सबूत मौजूद हैं कि एक समय पर मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं, बस उन सबूतों को देखने और स्वीकार करने की जरूरत है। 

राम जन्मभूमि खुदाई पर क्या बोले केके मोहम्मद:-

मोहम्मद ने कहा कि बीबी लाल के नेतृत्व वाली टीम, जिसका वह भी हिस्सा था, को हिंदू मंदिरों के शिलालेखों वाले कई खंभे मिले थे। उन्होंने कहा कि, 'यहां तक कि इमारत की दीवारों में भी हिंदू देवी-देवताओं के कई चित्रण थे, जिन्हें कई जगहों पर काटा-पीटा गया था। मोहम्मद की टीम के सदस्यों में से एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश की पत्नी जयश्री रामनाथन थीं। मोहम्मद ने उन रिपोर्टों की पुष्टि की है कि डॉ. बीबी लाल नहीं चाहते थे कि निष्कर्ष जनता के सामने उजागर हों। मोहम्मद बताते हैं कि, उस समय JNU प्रोफेसर इरफान हबीब के नेतृत्व में कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने प्रेस बयान जारी किया था कि डॉ. लाल और उनकी टीम को खुदाई से कुछ भी नहीं मिला। हालाँकि, इरफ़ान हबीब अब भी स्वीकार करते हैं कि, काशी और मथुरा के मंदिर औरंगज़ेब ने ही तुड़वाए थे, वो कहते हैं कि इसके सबूत, मंदिर तोड़ने के फरमान भी मौजूद हैं, तारीखें भी दर्ज हैं, लेकिन अब इतने सालों बाद ये क्यों किया जाए ? यानी इरफ़ान हबीब सबकुछ जानने के बावजूद भी उन स्थलों के विवाद का समाधान नहीं चाहते, अगर समाधान चाहते भी हों, तो उनकी ये इच्छा नहीं है की फैसला हिन्दू पक्ष में आए वे सच सामने नहीं आने देना चाहते

 

केके मोहम्मद ने कहा कि, 'तब प्रोफेसर लाल को जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ा था और निष्कर्षों को जनता के सामने रखा गया। प्रोफ़ेसर इरफ़ान हबीब कोई पुरातत्वविद् नहीं थे और सिर्फ इतिहासकार थे और उनके विचार वामपंथी थे, जिसके कारण लोगों के बीच एक बड़ा ध्रुवीकरण हुआ। हालाँकि, महत्वपूर्ण सबूत 1992 में मस्जिद ध्वस्त होने के बाद प्राप्त हुए थे, न कि 1976 में की गई खुदाई के दौरान। उन्होंने आगे कहा कि, 'वहां 12वीं शताब्दी का विष्णुहरिशिला शिलालेख मिला था, जो संरचना (बाबरी ढांचे) के नीचे था। आलोचकों ने पहले कहा था कि यह 18वीं सदी का शिलालेख है, लेकिन बाद में वे पीछे हट गये और तर्क नहीं दे सके। शिलालेख में स्पष्ट रूप से उस महाविष्णु के बारे में लिखा था, जिसने बाली को मारा था और दस सिर वाले व्यक्ति को भी मारा था। इसका मतलब भगवान राम है और इसलिए यह स्पष्ट है कि यह स्थान किसका है।”

 

राम मंदिर के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, ''वास्तव में मैं एक पेशेवर पुरातत्वविद् के रूप में खुश हूं और भगवान राम के लिए एक भव्य मंदिर अयोध्या में बन गया है। पुरातत्ववेत्ता हिंदू या मुसलमान नहीं होता। मैं एक पेशेवर पुरातत्वविद् हूं और मैं पेशेवर रूप से बहुत खुश हूं कि कई वर्षों की खुदाई और वैज्ञानिक निष्कर्षों ने सही परिणाम दिया है और एक भव्य मंदिर बन रहा है। मैं इस बात से खुश हूं।”

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