Mamangam Review: अखिल भारतीय सुपरस्टार बनने की कोशिश, ममूटी को मिले इतने स्टार
Mamangam Review: अखिल भारतीय सुपरस्टार बनने की कोशिश, ममूटी को मिले इतने स्टार
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Movie Review: मामगम
कलाकार: ममूटी, अचुतन, उन्नी मुकुंदन, प्राची तहलन, सिद्दीक, तरुण अरोड़ा आदि।
निर्देशक: एम पद्मकुमार
निर्माता: वेणु कुन्नाप्पिली

हिंदी सिनेमा में इन दिनों मुगलों से मुकाबला करने वाले भारतीय राजाओं की कहानियां खूब बन रही हैं। पद्मावत, तानाजी और पृथ्वीराज जैसी फिल्मों के बाद मुगलों का क्रूर चेहरा फिर से आम जनता को दिखाने की ये लहर केरल पहुंची है फिल्म मामगम के तौर पर। दुबई में केरल के लोगों ने खूब पैसा कमाया है। वेणु कुन्नाप्पिली भी ऐसे ही एक कारोबारी हैं जिन्हें फिल्म बाहुबली देखने के बाद ऐसी ही एक देसी कहानी पर फिल्म बनाने का विचार आया। केरल में कुंभ जैसा मेला करने वाला एक हिंदू राजा का जब पूरा खानदान धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बन गया तो वहां की गद्दी पर बैठे मुस्लिम शासक को मारने के लिए कसम खाने वाले आत्मघाती दस्ते की कहानी है मामगम। माममग को जो भी चर्चा अब तक मिली है वह है इसके हीरो मोहम्मद कुट्टी पनिपराम्बिल इस्माल यानी ममूटी के कारण या फिर पंजाबी सिनेमा की अभिनेत्री प्राची तहलन की खुद अपनी कोशिशों के चलते। ममूटी सर्वश्रेष्ठ अभिनय के तीन राष्ट्रीय और दर्जनों दूसरे पुरस्कार जीत चुके हैं। उम्र उनकी 68 वर्ष की हो चुकी है और परदे पर दिखने भी लगी है। ये कहानी है चवेरुकल दस्तों की। ये आत्मघाती दस्ते किसी भी तरह जमोरिन राजा को मारकर अपनी धरती वापस पाना चाहते हैं। ये सारे दस्ते वल्लुवांडु में रहने वाले चंद्रोथ परिवार के हैं और सीनियर चंद्रोथ यानी पेनिकर अपने लक्ष्य को पाने से बस रत्ती भर दूर रह जाता है। वर्ष बीतते हैं। अब उसके दो बेटों पर अपने पिता के अधूरे लक्ष्य को पूरा करने की जिम्मेदारी है।

मामगम को लेकर बना हिंदी पट्टी में वैसे भी कोई खास उत्सुकता नहीं रही है। ऊपर से फिल्म शुरू होते ही ये ऐलान कर देती है कि इससे किसी इतिहास के पाठ की उम्मीद न पालें। फिल्म की शूटिंग के दौरान कोच्चि में मिले ममूटी ने भी ये बात बताई थी लेकिन उनका जोर इस बात पर रहा कि उनका किरदार सच्चा है। इतिहास में उसका नाम है। बस लेखकों ने इस किरदार की वीरता दिखाने को काल्पनिक दृश्य गढ़ लिए हैं। और, ये काल्पनिक दृश्य ही है जिनमें फिल्म शुरू से लेकर आखिर तक पिटती रहती है। ममूटी के भावविहीन चेहरे वाले भाव उनके बेटे बने अचुतन ने भी क्यों पूरी फिल्म में भी अपनाए रखे, निर्देशक एम पद्मकुमार ही बता सकते हैं। एम पद्मकुमार इस फिल्म के दूसरे निर्देशक हैं। पहले जिन संजीव पिल्लई के पास निर्देशन की जिम्मेदारी थी, वह फिल्म के पहले शेड्यूल के बाद ही फिल्म से बाहर हो गए। पद्मकुमार ने बतौर निर्देशक कुछ किया हो फिल्म देखकर लगता नहीं है। नृत्य निर्देशकों ने गाने फिल्मा दिए। विकी कौशल के पिता शाम कौशल ने सारे स्टंट सीन निर्देशित कर दिए तो बाकी कुछ करने को पद्मकुमार के पास है नहीं, जहां मौका मिला भी वहां अपने कलाकारों से कोई उल्लेखनीय अभिनय नहीं करा पाए। 

राष्ट्रीय स्तर की नेटबॉल खिलाड़ी रह चुकीं प्राची तहलन का रोल भी फिल्म के दूसरे दमदार कलाकार सिद्दीक की तरह ज्यादा विस्तार नहीं पा पाया है। परन्तु , प्राची ने अपने छोटे से रोल में बड़ी छाप छोड़ी है। उनमें आने वाले कल की संभावनाएं दिखती हैं और हिंदी सिनेमा में वह जॉन अब्राहम और विद्युत जामवाल जैसे कद्दावर नायकों की जोड़ीदार भी बनने की उम्मीदें जगाती हैं। उन्नी के पास दमदार संवाद हैं नहीं और एक ही जैसा एक्शन बार बार देखने की फिल्म देखते समय रुचि नहीं बचती है। अचुतन के बारे में बताया गया था कि उन्हें हजारों बच्चों के ऑडीशन के बाद चुना गया है परन्तु ऐसी कोई उल्लेखनीय बात उनके एक्शन में भी नजर नहीं आती। फिल्म का सबसे कमजोर पहलू है इसके औसत दर्जे के स्पेशल इफेक्ट्स। मलायलम सिनेमा की सबसे महंगी फिल्म बताई गई मामगम के स्पेशल इफेक्ट्स किसी औसत वेब सीरीज से भी गए बीते हैं। संगीत भी फिल्म को कोई खास सहारा नहीं देता है। ममूटी के बहुत बड़े वाले प्रशंसक हैं तो फिल्म देखने जा सकते हैं, बाकी आम दर्शकों के लिए ये फिल्म कुछ खास मनोरंजन लायक नहीं है। 

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