नेहरू पर शेर सुनाने के कारण मजरुह सुल्तानपुरी को जाना पड़ा था जेल
नेहरू पर शेर सुनाने के कारण मजरुह सुल्तानपुरी को जाना पड़ा था जेल
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 नई दिल्ली: हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार और प्रगतिशील आंदोलन के उर्दू के सबसे बड़े शायरों में से एक गिने जाने वाले मजरुह सुल्तानपुरी जिनका आज जन्मदिवस है. प्रसिद्ध गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी जिनका जन्म 1 अक्टूबर 1919, को निज़ामाबाद में हुआ था. मजरूह सुल्तानपुरी जो कि देखा जाए तो अपनी रचनाओं के जरिए देश, समाज और साहित्य को नयी दिशा देने का काम किया. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा सुल्तानपुर जिले के गनपत सहाय कालेज में मजरुह सुल्तानपुरी ग़ज़ल के आइने में शीर्षक से मजरूह सुल्तानपुरी पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया. देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों ने इस सेमिनार में हिस्सा लिया और कहा कि वे ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने उर्दू को एक नयी ऊंचाई दी है. मजरूह सुल्तानपुरी जो कि इस देश के ऐसे तरक्की पसंद शायर थे जिनकी वजह से उर्दू को नया मुकाम हासिल हुआ.

उनकी मशहूर पंक्तियों में 'मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर लोग पास आते गये और कारवां बनता गया' का जिक्र भी वक्ताओं ने किया. लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो॰मलिक जादा मंजूर अहमद ने कहा कि यूजीसी ने मजरूह पर राष्ट्रीय सेमिनार उनकी जन्मस्थली सुल्तानपुर में आयोजित करके एक नयी दिशा दी है. मजरूह सुल्तानपुरी ने पचास से ज्यादा सालों तक हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखे. आजादी मिलने से दो साल पहले वे एक मुशायरे में हिस्सा लेने बम्बई गए थे और तब उस समय के मशहूर फिल्म-निर्माता कारदार ने उन्हें अपनी नई फिल्म शाहजहां के लिए गीत लिखने का अवसर दिया था. मजरूह सुल्तानपुरी ने जिन फिल्मों के लिए आपने गीत लिखे उनमें से कुछ के नाम हैं-सी.आई.डी., चलती का नाम गाड़ी, नौ-दो ग्यारह, तीसरी मंज़िल, पेइंग गेस्ट, काला पानी, तुम सा नहीं देखा, दिल देके देखो, दिल्ली का ठग, इत्यादि. 

पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीतियों के खिलाफ एक जोशीली कविता लिखने के कारण मजरूह सुल्तानपुरी को सवा साल जेल में रहना पड़ा. 1994 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इससे पूर्व 1980 में उन्हें ग़ालिब एवार्ड और 1992 में इकबाल एवार्ड प्राप्त हुए थे.  

ये जश्न-ए-आजादी के दौर की बात है. शहर-शहर, गांव-गांव आजादी का जश्न मनाया जा रहा था. खुद मजरूह सुल्तानपुरी ने सन् 1947 में प्रगतिशील लेखकों के साथ मिलकर आजादी का जश्न मनाने के लिए सड़कों पर नाचते हुए बहुत ऊंचा बांस का कलम बनाया. क्योंकि, उनके अनुसार आजाद मुल्क में कलम की आजादी जरूरी थी. शोषितों के लिए धड़कने वाला मजरूह का दिल इस नए आजाद मुल्क में समानता के अधिकार के लिए जंग चाहता था.

और, एक दिन मजदूरों की एक सभा में मजरूह सुल्तानपुरी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू पर एक शेर सुना दिया. नेहरू और खादी के खिलाफ लिखे गए इस गीत ने उस दौर की सियासतदानों को आगबबूला कर दिया. मोरारजी देसाई (मुंबई के तत्कालीन गर्वनर) ने उन्हें ऑर्थर रोड जेल में डाल दिया और गीत के लिए माफी मांगने को कहा. लेकिन, अपने इरादों में यकीं रखने वाले मजरूह ने माफी मांगने से इनकार कर दिया था. वे जीवन के अंत तक फिल्मों से जुड़े रहे. 24 मई 2000 को मुंबई में उनका देहांत हो गया.

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