इटली की कोर्ट ने कहा, UPA सरकार ने चॉपर डील में बरती लापरवाही
इटली की कोर्ट ने कहा, UPA सरकार ने चॉपर डील में बरती लापरवाही
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नई दिल्ली : इटली की अदालत ने यूपीए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए है। वीवीआइपी चॉपर डील के मामले की सुनवाई करते हुए इटली की कोर्ट ने इसे भ्रष्टाचार पूर्ण बताया है। यूपीए सरकार द्वारा इस मामले को नजरअंदाज किए जाने की भी बात कही है। अदालत का कहना है कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने चॉपर से जुड़े स्कैंडल के पीछे का सच जानने की कोशिश नहीं की। इतना ही नहीं जांच कर्ताओं को उससे संबंधित महत्वपूर्ण कागजात भी उपलब्ध नहीं कराए।

कोर्ट का कहना है कि उस डील के मामले में मुख्य आरोपी ने इटली के तत्कालीन पीएम मारियो मोंटी की ओर से भारत के प्रधानमंत्री मनमोहगन सिंह से बात करने की कोशिश भी की थी। यह डील 3,565 करोड़ रुपए की थी। कोर्ट ने अपने आदेशों की 225 पन्नों की रिपोर्ट में यह भी कहा कि भारत की सुरक्षा मंत्रालय ने तथ्यों को सामने लाने में लापरवाही बरती। इटली की अदालत ने इसके पीछे ऑगस्‍टा वेस्‍टलैंड के पूर्व हेड गिउस्‍प ओर्सी की ओर से जेल से मार्च 2013 में हाथ से लिए गए एक पत्र के जुड़े होने की भी आशंका जताई है।

इसमें लिखा गया था, मेरे नाम मोंटी या टेरासिआनो को कॉल करें और उनसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बात करने को कहें। मोंटी उस समय पीएम थे और टेरासिआनो उनके डिप्लोमेटिक एडवाइजर थे। लेकिन फिलहाल वो ये बताने की स्थिति में नहीं है कि जेल में रहते हुए उन्होने कौन सा संदेश भारत सरकार के प्रमुख को पहुंचाने की कोशिश की थी।

कोर्ट का कहना है कि यदि भारत सरकार न्यायिक सहायता के लिए भेजे गए आवेदनों का परिणाम देखे, तो इसके बारे में पता चल सकता है। अप्रैल 2013 में इटली ने भारत से संबंधित दस्तावेजों की मांग की थी। जिसके बाद भारत ने मार्च 2014 में केवल तीन दस्तावेज उपलब्ध कराए। इस डील में बिचौलिए की भूमिका निभाने वाले क्रिश्चियन माइकल की भूमिका पर भी अदालत ने सवाल उठाए है।

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