नई दिल्ली : भारत की स्वाधीनता के लिए 15 अगस्त 1947 का दिन तय किया गया। दरअसल इस दिन को तय करने और आधी रात का समय चुनने में नेता जी सुभाषचंद्र बोस के संघर्ष का बेहद अहम योगदान है। दरअसल नेता जी ने जिस तरह से आजादी के लिए संघर्ष प्रारंभ किया और वर्ष 1940 से ही गांधी और बोस की गतिविधियों से आवाम जागा वह आंदोलित हो गया था। यही नहीं ब्रिटिश सत्ता के लिए एक चिंता की बात थी कि वर्ष 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के समय ब्रिटिश आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हो चुके थे।
अंग्रेजों को इंग्लैंड का शासन भी संचालित करना था और वह दिवालिया होने की कगार पर थी। ऐसे में ब्रिटेन में हुए चुनावों में लेबर पार्टी विजयी हुई और उसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों द्वारा समर्थन दिया गया। दरअसल लेबर पार्टी द्वारा ब्रिटेन के उपनिवेशों और भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने का वादा किया गया। लार्ड पावेल द्वारा भारतीय नेताओं से देश की आजादी की वार्ता करने की पहल की गई और गतिरोधों के बाद इस तरह की वार्ताओं ने जोर पकड़ लिया।
वर्ष 1947 में लाॅर्ड माउंटबेटन को देश का अंतिम वायसराय नियुक्त किया गया। इस दौरान जिन्ना ने एक अलग राष्ट्र की मांग कर भारत विभाजन पर जोर दिया। मिली जानकारी के अनुसार भारत में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। इसके बाद विभाजन के बारे में आयोजित की गई बैठक में ही अन्य बातें तय की गईं। लार्ड माउंटबेटन द्वारा भारत की स्वतंत्रता हेतु 15 अगस्त का दिन चुने जाने की वकालत की गई।
दरअसल वे इस दिन को अपने कार्यकाल का सबसे अच्छा और शुभ दिन मानते थे। दरअसल 15 अगस्त 1945 को ही जापान की सेना ने लाॅर्ड माउंट बेटन के नेतृत्व में ब्रिटिशों के सामने आत्मसमर्पण किया था। हालांकि ज्योतिषीय मान्यताओं में 15 अगस्त 1947 के दिन को अशुभ माना गया और इसे अमंगलकारी करार दिया गया। इस मामले में 14 अगस्त और 15 अगस्त की मध्यरात्रि का समय बताया गया।
यहां भी ज्योतिषीय मान्यता और ब्रिटिश मान्यता में मतभेद सामने आए जिसमें कहा गया कि मध्यरात्रि से दूसरे दिन की शुरूआत होती है जबकि ज्योतिषी सूर्योदय से नए दिन की शुरूआत कहते रहे। प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को अपना भाषण 48 मिनट में ही पूरा करना था और इस अवधि में उसे संपन्न किया गया।
अभिजीत मुहूर्त में स्वतंत्रता का शंख बजाया जाना था इसलिए पं. नेहरू का भाषण तय समय में पूरा होने की बात कही गई और इस तरह से भारत की आजादी की नींव रखी गई, जो आज इसकी दास्तान के रूप में जानी जाती है।