शिवपुरी: मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले से धर्मांतरण की घटना सामने आई है। करैरा के ग्राम बहगवां में जाटव समाज के लोगों ने सनातन धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया है। बौद्ध धर्म अपनाने वालों ने अपने साथ छुआछूत का आरोप लगाया है। सनातन धर्म में गांव के लोग उनके साथ पक्षपात करते थे। इसलिए एक साथ 40 घरों के जाटव समाज ने बौद्ध धर्म अपना लिया है। वहीं, इस मामले पर गांव के सरपंच ने कहा कि सभी आरोप निराधार हैं। गांव के लोगों को बहला-फुसला कर उनसे बौद्ध धर्म स्वीकार करवाया गया है।
प्राप्त खबर के मुताबिक, बहगवां में गांव के लोगों ने एक साथ मिलकर भागवत कथा का आयोजन करवाया था। गांव में 25 वर्ष पश्चात् सम्मिलित रूप से हुई भागवत कथा के लिए सभी समाज के लोगों ने चंदा एकत्रित किया। एक साथ मिलकर भागवत कथा का आयोजन किया गया। भागवत कथा के भंडारे से एक दिन पहले 31 जनवरी को जाटव समाज के 40 घरों ने अचानक से बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। साथ ही सनातन धर्म का परित्याग करने की शपथ ली। महेंद्र बौद्ध ने बताया कि भंडारे में सभी समाजों को काम बांटे गए थे। इसी क्रम में जाटव समाज को पत्तल परसने एवं झूठी पत्तल उठाने का काम सौंपा गया था, मगर बाद में किसी व्यक्ति ने यह कह दिया कि अगर जाटव समाज के लोग पत्तल परसेंगे तो पत्तल तो वैसे ही खराब हो जाएगी। ऐसे में इनसे सिर्फ झूठी पत्तल उठवाने का काम करवाया जाए। अंत में ग्रामीणों ने कह दिया कि यदि आपको झूठी पत्तल उठाना है तो उठाओ नहीं तो खाना खाकर अपने घर जाओ। महेंद्र बौद्ध ने कहा इसी छुआछूत के चलते हम लोगों ने सनातन धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया है।
वही इस मामले पर गांव के सरपंच गजेंद्र रावत ने बताया कि जाटव समाज के आरोप पूरी तरह से निराधार हैं। उनके अनुसार उक्त समाज के लोगों ने एक दिन पहले ही अपने हाथ से केले का प्रसाद वितरित किया था। जो पूरे गांव से लिया और खाया भी गया। उनके मुताबिक, गांव में बौद्ध भिक्षु आए थे, उन्होंने समाज के लोगों को बहला-फुसला कर धर्म परिवर्तन करवाया है। उन्होंने कहा कि पूरे गांव में किसी भी प्रकार का काम किसी समाज विशेष को नहीं बांटा गया था। सभी ने मिलजुल कर सारे काम किए हैं। अन्य हरिजन समाज के लोगों ने भी भंडारे में प्रसाद परोसने एवं झूठी पत्तल उठाने का काम किया है। उन लोगों के साथ छुआछूत क्यों नहीं की गई? गजेंद्र ने कहा कि जाटव समाज द्वारा दिया गया चंदा वापिस लेने की वजह से ग्रामीणों ने उसकी पूर्ति के लिए दुबारा से चंदा भी किया है।
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