अचानक हुआ ऐसा धमाका कि शमशान बन गया शहर, हिरोशिमा की वो घटना जिसमे 70 हजार लोगों की गई जान
अचानक हुआ ऐसा धमाका कि शमशान बन गया शहर, हिरोशिमा की वो घटना जिसमे 70 हजार लोगों की गई जान
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फुमियाकी सिर्फ 6 वर्ष के थे तथा पहली कक्षा में पढ़ते थे। आम दिनों की भांति 6 अगस्त को भी वह विद्यालय के लिए रवाना हुए थे। साथ में बड़ी बहन भी थी। वह कहते हैं, 'पढ़ाई से पहले हम प्रतिदिन विद्यालय को साफ किया करते थे। उस दिन भी हम यही कर रहे थे। तभी मैंने कमरे से बाहर देखा।' फुमियाकी ने उस हादसे को याद करते हुए बताया, 'मुझे एक जोरदार धमाके की आवाज सुनाई दी। मुझे लगा कि कोई विमान गुजरा है। मैंने खिड़की से बाहर देखा। अचानक आसमान से एक तेज सफेद रोशनी बिजली की गति से भूमि की ओर बढ़ रही थी। फिर एक तेज धमाका हुआ। मेरे समक्ष हरे वृक्ष, जलकर काले हो गए।'

साथ ही धूल का गुबार तेजी से बढ़ता जा रहा था। हर तरफ से कुछ जलने की स्मेल आ रही थी। विद्यालय की दीवारें ढह चुकी थीं। मैं जोर-जोर से सहायता के लिए चिल्ला रहा था। मैं जैसे-तैसे मलबे के नीचे से निकला तथा छत की तरफ बढ़ा। मेरे सामने जो दृश्य था, उसे भुला पाना कठिन है। धूल के गुबार के बीच चारों तरफ लाशें बिखरी पड़ी थीं। धरती-आसमान सब जल रहा था। उस दिन मैंने जूते नहीं पहने हुए थे। मैं जितनी तेज हो सकता था, उतनी तेज नंगे पैर दौड़ा। पैरों से बेहद अधिक खून निकल रहा था। शाम में जब चारों ओर भड़की आग शांत होने लगी, तो मैं शहर की तरफ आया। 

धमाके के पश्चात् से ही लोग जान बचाने को इधर-उधर दौड़ रहे थे। कोई पहाड़ की तरफ जा रहा था, तो कोई नदी की तरफ। मैंने भी अपने से बड़ों के पीछे चलने का निर्णय लिया तथा फुटाबायामा पहाड़ की तरफ बढ़ गया। मेरा चेहरा पूर्ण रूप से खून में सना हुआ था। इसलिए मुझे पता ही नहीं चला कि मेरी आंख पर एक बड़ा कट लगा हुआ है। मेरी शर्ट खून से लाल हो चुकी थी। पूरो हिरोशिमा प्रातः से लेकर शाम तक झुलसता रहा। गर्मी बहुत ही अधिक थी। फुमियाकी आगे कहते हैं, मुझे लगा कि मेरे माता-पिता मर चुके हैं। मगर वो ज़िंदा थे। कुछ लोग मुझे पहाड़ से नीचे लेकर आए तथा उन्होंने मेरे माता-पिता को खोजना आरम्भ किया। उन्हें देखकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। लेकिन इस दुर्घटना में मेरी बड़ी बहन हमेशा के लिए हमें छोड़कर चली गई। मेरी बहन मां के पास ही थी। उसके चेहरे को देख प्रतीत हो रहा था कि वह शांति से सो रही है। आज भी मुझे उसका चेहरा नहीं भूलता है। मेरे पिता को भी चोट लगी थी, फिर भी वह दूसरे घायलों की सहायता करने में लगे हुए थे।

वही फुमियाकी काजिया अब 81 वर्ष के हो चुके हैं तथा स्कूल अध्यापक के पद से सेवानिवृत हो चुके हैं। वह पेटिंग के माध्यम से उस भीषण त्रासदी की दास्तां लोगों को बताने का प्रयास करते हैं। टोक्यो ओलंपिक से पहले अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष थॉमस बाच उनके साथ हिरोशिमा पीस मेमोरियल भी गए थे। हिरोशिमा पर गिरे परमाणु बम से एक झटके में 80 हजार से अधिक व्यक्ति मारे गए। तत्पश्चात, 70 हजार से अधिक लोग रेडिएशन के कारण जान गंवा बैठे। फुमियाकी बोलते हैं-हिरोशिमा एवं नागासाकी के साथ ही परमाणु बम का उपयोग बंद हो जाना चाहिए। किसी भी कीमत पर तीसरी बार इसका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। 

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