हिंदू, ईसाई-सिख धर्मगुरुओं ने किया उत्तराखंड UCC का समर्थन, बोले- 'देश के लिए इसकी बेहद जरूरत है'
हिंदू, ईसाई-सिख धर्मगुरुओं ने किया उत्तराखंड UCC का समर्थन, बोले- 'देश के लिए इसकी बेहद जरूरत है'
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देहरादून: उत्तराखंड यूसीसी-UCC समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तय करने के लिए गठित 5 सदस्यीय समिति ने शुक्रवार को सीएम पुष्कर सिंह धामी को रिपोर्ट सौंप दी। सूत्रों के मुताबिक, रिपोर्ट में तलाक पर पत्नी को पति जैसे अधिकार दिए जाने के साथ ही बहुविवाह पर पाबंदी की सिफारिश की गई हैं। मुख्यमंत्री ने UCC का विधेयक 5 फरवरी से होने वाले विधानसभा सत्र में पेश करने का ऐलान किया है। संभावना है कि 6 फरवरी को बिल सदन के पटल पर रखा जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में गठित उक्त कमेटी ने देहरादून स्थित मुख्यमंत्री आवास में हुए कार्यक्रम में सीएम को रिपोर्ट सौंपी।

उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, अहम सिफारिशों में विवाह पंजीकरण अनिवार्य करने,सभी धर्मों की लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष करने व लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए स्वघोषणा करना आदि सम्मिलित हैं। विवाह पंजीकरण के अनिवार्य होने से उत्तराधिकार व विरासत जैसे विवादों के स्वयं समाधान की राह खुल जाएगी। कमेटी ने लिव इन रिलेशनशिप को भी नियमित करने की सिफारिश की है। इसके लिए जोड़ों को लिव इन में रहने की स्वघोषणा करनी पड़ेगी, अगर लड़की या लड़का शादी की आयु से पहले लिवइन में रहते हैं तो अभिभावकों को भी इसकी सूचना देनी होगी। जन सुनवाई के चलते युवाओं ने लिव इन रिलेशनशिप को नियमित करने की मांग उठाई थी। विशेष तौर पर लिव इन से पैदा होने वाले बच्चे के अधिकार इससे सुरक्षित रह सकेंगे। साथ ही लिव इन की स्वघोषणा से कानूनी वाद भी कम हो सकेंगे।

कमेटी ने लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु 18 करने और लड़कों के लिए 21 वर्ष यथावत रखने की सिफारिश की है। हालांकि जनसुनवाई के चलते कमेटी के सामने लड़कियों एवं महिला संगठनों ने उच्च शिक्षा की आवश्यकता को देखते हुए लड़कियों की विवाह की आयु बढ़ाकर लड़कों के समान 21 वर्ष करने की मांग की थी। अलबत्ता अब सभी धर्मों की लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष हो जाएगी। अभी मुस्लिम लड़कियों की वयस्कता की आयु तय नहीं है, माहवारी शुरू होने पर लड़की को निकाह योग्य मान लिया जाता है। इस प्रावधान को लागू किए जाने के बाद बाल विवाह समाप्त हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक, कमेटी ने सभी के लिए विवाह पंजीकरण भी अनिवार्य करने पर जोर दिया है, यानि विवाह के निर्धारित वक़्त के अंदर इसका पंजीकरण करवाना होगा। इससे उत्तराधिकार, विरासत जैसे विवादों का स्वयं समाधान का रास्ता खुल जाएगा। विवाह पंजीकरण का प्रावधान हालांकि पहले से ही है, अब इसे अनिवार्य कर दिया जाएगा।

हिंदू,ईसाई और सिख धर्मगुरुओं का समर्थन
‘UCC के प्रावधान पहले से ही लागू हैं’

सेंट फ्रांसिस कैथेलिक चर्च के प्रतिनिधि कमल फ्रांसिस के अनुसार, ईसाई समाज में UCC के कई प्रावधान पहले से लागू हैं। हमारे समाज के लिए यह नई बात नहीं है। पंजीकरण पहली शर्त है। विवाह योग्य आयु में भी कोई परेशानी नहीं। तलाक के लिए समान अधिकार लागू हैं। एक पत्नी के जीवित रहते बहु विवाह इसाई समाज में नहीं है। लड़कियों को भी लड़कों के बराबर अधिकार लागू है। लिव इन पर डिक्लेरेशन का समर्थन है।

‘समान नागरिक संहिता का स्वागत किया जाएगा’
गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा आढ़त बाजार के हेड ग्रंथी ज्ञानी शमशेर सिंह ने बताया कि हमारे यहां गुरुद्वारे में विवाह से पहले आयु व कागजात देखे जाते हैं। परिवार की इच्छा देखी जाती है, फिर सार्टिफिकेट जारी होता है। इसके साथ ही सरकारी पंजीकरण के लिए भी सलाह दी जाती है। मैंने स्वयं भी पंजीकरण करवाया हुआ है। तलाक के पश्चात् सिर्फ पति-पत्नी अलग नहीं होते दो परिवारों पर फर्क पड़ता है। UCC का स्वागत किया जाएगा। सरकार से कई वर्ग को अलग प्रकार की छूट मिली हुई है।

‘हिंदू समाज यूसीसी का समर्थन करता है’
UCC पर विद्वत सभा के अध्यक्ष पं. विजेन्द्र ममगाईं ने बताया कि UCC के प्रावधान पहले से ही हिन्दू समाज की व्यवस्था में लागू हैं। हमें समान नागरिक संहिता को अपनाने में कोई परेशानी नहीं है। देश व समाज हित के लिए UCC की बेहद आवश्यकता है। लड़कियों को हमारे समाज में पूज्य कहा गया है, इसलिए उन्हें अधिकारों में भी बराबर का हिस्सेदार माना गया है। बात अब जनसंख्या नियंत्रण पर भी होनी चाहिए। लिव इन रिलेशनशिव हमारे समाज का दागनुमा चेहरा है।

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