बचपन से ही उनका झुकाव समाज सेवा की ओर था, जिस कारण उन्होंने बहुत कम उम्र में रोमन कैथोलिक नन बनने का फैसला कर लिया. मात्रा 18 साल की उम्र में ही उन्होंने कैथोलिक चर्च ज्वाइन कर लिया था जिसके बाद से वे कभी अपने घर नहीं लौटी.
इटली में जन्मी मदर टेरेसा ने भारत को अपनी कर्मभूमि चुना और 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की. इस संस्था को सुरु करने का उनका मकसद यही था कि इसक्वे जरिये वो गरीबों, बीमार और अनाथ लोगों की मदद कर सके. उन्होंने कुष्ठ रोगियों को भी शरण दी जिन्हें समाज ठुकरा चुका था. इसके साथ ही उन्होंने टीबी के मरीजों की भी बहुत सेवा की थी.
मदर टेरेसा को सामाजिक कार्यों की वजह से उन्हें 1979 में नोबल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चूका है. उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चूका है. मदर टेरेसा का नाम कुछ विवादों से भी जुड़ा था. उनके विरोधियों ने उनपर यह आरोप लगाए थे कि उनकी मानव सेवा के पीछे धर्मांतरण का उद्देश्य छिपा है. हालांकि उन्होंने इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा. मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक की वजह से हुई थी.
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