बचपन से की गुरू की सेवा, आदेश पर संभाली गुरू गादी
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सिखों के 4 थे गुरू श्री रामदास जी की आज जन्मजयंती मनाई जा रही है। सिखों में अपने गुरू श्री रामदास जी का विशेष प्रभाव था। उनका जन्म 9 अक्टूबर 1534 को लाहौर में हुआ था। वे जेठा कहे गए दरअसल वे घर में सबसे बड़े थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को ईर्ष्या से दूर रहने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि जो भी ईर्ष्या को अपने अंदर रखता है उसका कभी भी भला नहीं होता है। उनकी प्रेरणा में नीर - क्षीर विवेक की बात शामिल थी।

यहां नीर - क्षीर विवेक शब्द कुछ समझ से परे लगता है लेकिन हम इसका अर्थ समझाना चाहेंगे। जैसे एक हंस दूध और पानी में से दूध पीकर पानी छोड़ देता है और वह दूध और पानी को अलग-अलग कर देता है उसी तरह अच्छे लोग अपने विवेक से अहंकार और ईर्ष्या को दूर कर देते हैं।

गुूरू जी ने सिखों को बताया था कि सभी एक ही मिट्टी के बने हैं सभी एक ही हवा का सेवन करते हैं और सभी में परमेश्वर की एक ज्योत है। 7 वर्ष की आयु में गुरूजी के माता - पिता उन्हें छोड़कर चले गए। उनके नाना माता पिता की मृत्यु के बाद अपने साथ बासरके ले गए। यह रामदास जी का ननिहाल था।

जब अमरसिंह जी ने 3 रे गुरू के दर्शन किए तो वे बहुत प्रभावित हुए और फिर उन्होंने गुरू चरणों में रहने का निर्णय ले लिया। वे गुरू की सेवा करते। इसके साथ में घुणघुणियां बेचते थे। गुरू रामदास का विवाह 3 रे गुरू की पुत्री बीबी भानी से हुआ। इसके बाद वर्ष 1574 में 3 रे गुरू ने श्री रामदास जी को अपनी गद्दी सौंप दी और वे 4 थे गुरू कहलाए। अपने गुरू के आदेश पर श्री रामदास जी ने गोइंदवाल साहिब में अमृत सरोवर और बावली का निर्माण भी करवाया।

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