मनरेगा मजदूरी बढ़ाने की जरुरत नहीं, श्रमिकों के खाते में नकद डाले सरकार
मनरेगा मजदूरी बढ़ाने की जरुरत नहीं, श्रमिकों के खाते में नकद डाले सरकार
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नई दिल्‍ली: व्यावहारिक अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों ने कोरोना वायरस संकट के इस समय में मनरेगा मजदूरों को 20 दिन की मजदूरी के बराबर पैसा उनके खातों में सीधे हस्तांतरित करने की अनुशंसा की है. उनका यह भी कहना है कि इस वक़्त राजकोषीय घाटे की अधिक चिंता करने के बजाय सरकार असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को कुछ पैसा और पर्याप्त राशन मुहैया कराने के प्रबंध करे.

उनका कहना है कि इस वक़्त काम-धाम ठप है ऐसे में मनरेगा मजदूरों की मजदूरी की दर बढ़ाने से उन्हें फ़ौरन कोई राहत नहीं मिलने वाली है. उनके खाते में धन होने से पाबंदी हटने के बाद बाजार में मांग पर अनुकूल असर पड़ेगा. बेंगलुरू स्थित इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड एकोनोमिक चेंज के प्रोफेसर और अर्थशास्त्री डा. प्रमोद कुमार ने कहा कि, ‘‘इस समय जरुरत है कि जो भी प्रभावित लोग हैं, सरकार उन तक पर्याप्त राशन पहुंचाये और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के जरिये पैसा उनके अकाउंट में डाले.’’

कुमार ने कहा कि, ‘‘सरकार ने राहत पैकेज में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून) के अंतर्गत पंजीकृत मजदूरों की मजदूरी 20 रुपये बढ़ाकर 202 रुपये की है, किन्तु लॉकडाउन के दौरान कोई काम नहीं हो रहा और आने वाले वक़्त में अनिश्चितता की स्थिति है. इसको देखते हुए मजदूरी बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है. इससे बेहतर होता सरकार उन पंजीकृत मजदूरों के खातों में 15-20 दिन की एकमुश्त मजदूरी डालती जिससे इनके परिवार और अंतत: मांग बढ़ने के रूप में देश को फायदा होता.’’

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