'सरकार बच्चों की मौत जैसे संवेदनशील मामले में भी लापरवाह', MP में खुले बोरवेल पर HC की कड़ी टिप्पणी
'सरकार बच्चों की मौत जैसे संवेदनशील मामले में भी लापरवाह', MP में खुले बोरवेल पर HC की कड़ी टिप्पणी
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भोपाल: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने खुले बोरवेल को साइलेंट किलर बताते हुए प्रदेश सरकार की ड्राफ्ट पालिसी को लेकर जमकर खिंचाई की है। इससे सबंधित एक याचिका पर सुनवाई के चलते अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार साइलेंट किलर बोरवेल में गिरने से बच्चों की मौत जैसे संवेदनशील मामले में भी लापरवाही बरत रही है। इतने गंभीर मामले में इससे पहले इस प्रकार की असंतोषजनक ड्राफ्ट पॉलिसी पहले कभी नहीं देखी गई। यह बर्ताव बेहद चिंताजनक एवं शर्मनाक है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस रवि मलिमठ एवं जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने शुक्रवार (26 अप्रैल) को सुनवाई के चलते ड्राफ्ट तैयार करने वाले अफसर का नाम 24 घंटे के अंदर बताने के निर्देश दिए। महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने सरकार की तरफ से उपस्थित होकर खेद जताया। साथ ही नई ड्राफ्ट पॉलिसी पेश करने के लिए दो हफ्ते की मोहलत देने का आग्रह किया।

उच्च न्यायालय ने सुनवाई के चलते पाया कि यह ड्राफ्ट पॉलिसी मुख्य सचिव के हस्ताक्षर से जारी हुई है। इस बीच मामले में न्यायालय के सहयोग के लिए नियुक्त कोर्ट मित्र अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने सुझाव दिया कि अगर अदालत अनुमति दे तो वह अपने स्तर पर अपेक्षाकृत बेहतर ड्राफ्ट पॉलिसी पेश कर सकते हैं। यह सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने राज्य शासन और कोर्ट मित्र को दो हफ्ते के अंदर अपनी-अपनी ड्राफ्ट पॉलिसी पेश करने की जिम्मेदारी सौंप दी। इसी प्रकार मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त सहित सूचना आयुक्त के सभी पद रिक्त होने के लेकर दायर याचिका पर भी शुक्रवार को सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस रवि मलिमठ व जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार को नियुक्ति के सिलसिले में जवाब पेश करने के लिए 4 हफ्ते की मोहलत दी है। लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता विशाल बघेल ने जनहित याचिका दायर कर बताया कि मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त समेत कुल 10 पद स्वीकृत हैं।

याचिका में बताया गया कि सितंबर 2023 में सिर्फ 3 पद भरे थे, जो मार्च 2024 में खाली हो गए। दलील दी गई कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत द्वितीय अपीलों का निपटारा करने हेतु 180 दिन की समयसीमा निर्धारित है। सूचना आयुक्तों की कमी के चलते राज्य सूचना आयोग में 10,000 से अधिक अपील एवं शिकायतें लंबे वक़्त से लंबित हैं। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि मार्च 2024 में मुख्य सूचना आयुक्त के साथ शेष बचे सूचना आयुक्त के सेवानिवृत्त हो जाने के पश्चात् आयोग का काम ठप हो गया है। वहीं राज्य शासन की तरफ से उप महाधिवक्ता ब्रह्म दत्त सिंह ने उच्च न्यायालय को बताया कि सरकार द्वारा सूचना आयोग में आयुक्तों की नियुक्ति हेतु विज्ञापन जारी किया गया था। सरकार को 185 आवेदन प्राप्त हुए हैं जिन पर आगे की कार्रवाई की जा रही है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को चार सप्ताह का वक़्त देते हुए पूरे मामले में जवाब पेश करने के निर्देश दिये हैं।

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