ग्लोबल वार्मिंक का हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में बने ग्लेशियर, बढ़ सकती है परेशानी
ग्लोबल वार्मिंक का हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में बने ग्लेशियर, बढ़ सकती है परेशानी
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ग्लोबल वार्मिंक का हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में बने ग्लेशियरों पर भारी असर पड़ रहा है। पर्यावरण विज्ञान एवं तकनीकी विभाग द्वारा किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है। ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (जीएलओएफ) घटनाओं के मद्देनजर किए गए इस शोध में पता चला है कि सतलुज और चिनाब बेसिन में साल 2018 में पांच हेक्टेयर से कम की 132 व 33 और राबी बेसिन में एक वर्ष में 11 नई छोटी झील बन गई।

विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि इन छोटी झीलों के अलावा पांच से दस हेक्टेयर और दस हेक्टेयर से बड़ी झीलों की नियमित निगरानी करनी जरूरी है ताकि उत्तराखंड के केदारनाथ जैसी त्रासदी के होने से पहले बचा जा सके। विभाग के निदेशक डीसी राणा ने बताया कि चिनाब बेसिन में वर्ष 2017 में कुल 220 झील थी जबकि वर्ष 2018 में 254 झीलें दर्ज की गई। इनमें दस हेक्टेयर से अधिक की एक झील टूटकर दो झीलों में बदल गई है। इसी वजह से 5 से 10 हेक्टेयर वाली झीलों की संख्या साल 2017 के 8 से 2018 में 10 हो गई है। इसके अलावा , पांच हेक्टेयर से कम की 207 से बढ़कर 240 झीलें रिकार्ड की गई हैं। इस बेसिन में चंद्र और भागा व मैयाड़ बेसिन शामिल हैं। इसी तरह राबी बेसिन में पांच से दस हेक्टेयर वाली एक और झील बढ़ गई है।

इसके अलावा, पांच हेक्टेयर से कम की झीलों की संख्या 2017 के 50 से 2018 में बढ़कर 61 हो गई है। वहीं, सबसे बड़े सतलुज बेसिन में पांच से दस और दस हेक्टेयर से ज्यादा की बड़ी झीलों की संख्या तो घटी है लेकिन पांच हेक्टेयर से कम वाली 132 नई झीलें बढ़ गई हैं। इसके अलावा , तापमान बढ़ने से जिवा, पार्वती और ब्यास मिलाकर बने ब्यास बेसिन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। हालत यह है कि इस बेसिन में बनी बड़ी छोटी झीलें सूख रही हैं। यही वजह है कि साल 2017 में जहां इस बेसिन में कुल 101 छोटी बड़ी झीलें दर्ज की गई थीं। वहीं 2018 में सिर्फ 65 झीलें रह गई हैं।

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