आजीवन कारावास भुगतेंगे जेल में बंद कैदी को यातनाएँ देने वाला पूर्व IPS संजीव भट्ट, हाईकोर्ट ने ख़ारिज की अपील
आजीवन कारावास भुगतेंगे जेल में बंद कैदी को यातनाएँ देने वाला पूर्व IPS संजीव भट्ट, हाईकोर्ट ने ख़ारिज की अपील
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अहमदाबाद: भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अफसर (IPS) संजीव भट्ट को गुजरात उच्च न्यायालय से करारा झटका लगा है। ‘पुलिस हिरासत में मौत’ मामले में जामनगर सत्र अदालत द्वारा उन्हें दोषी ठहराए जाने तथा आजीवन कारावास की सजा को बरकार रखा है। उच्च न्यायालय ने मंगलवार (9 जनवरी 2024) को इस मामले में सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ की गई अपील को खारिज कर दिया है। इस मामले में न्यायमूर्ति आशुतोष शास्त्री एवं न्यायमूर्ति संदीप भट्ट की खंडपीठ ने कहा, “ट्रायल अदालत ने अपीलकर्ताओं को तर्क के आधार पर दोषी ठहराया है। इसलिए सजा के आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई वजह नहीं है। हम उक्त फैसले को बरकरार रखते हैं तथा अपील खारिज करते हैं।” दरअसल, यह मामला 1990 में हुई एक घटना से संबंधित है।

दरअसल, रथ यात्रा के चलते बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया था। तत्पश्चात, 30 अक्टूबर 1990 को बीजेपी एवं विश्व हिंदू परिषद ने भारत बंद का आह्वान किया था। उसी के चलते जामनगर जिले के एक शहर में सांप्रदायिक दंगा भड़क गया था। उस वक़्त संजीव भट्ट जामनगर जिले में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP) थे। इस मामले में संजीव भट्ट ने 133 लोगों को आतंकवादी एवं विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (TADA) के तहत गिरफ्त में लिया था। हिरासत में लिए गए लोगों में से एक प्रभुदास माधवजी वैश्नानी भी थे। हिरासत से रिहा होने के पश्चात् वैश्नानी की मृत्यु हो गई। उनके परिवार ने आरोप लगाया था कि भट्ट और उनके सहयोगियों ने वैश्नानी को हिरासत में बहुत यातनाएँ दी थीं।

परिवार ने आरोप लगाया था कि हिरासत में लिए गए लोगों को लाठियों से पीटा गया था तथा उन्हें कोहनी के बल रेंगने के लिए विवश किया गया। उन्हें पानी तक पीने की इजाजत नहीं दी गई थी। इसकी वजह से प्रभुदास वैश्नानी की किडनी खराब हो गई तथा आखिरकार उनकी मौत हो गई। वैश्नानी 9 दिनों तक पुलिस हिरासत में थे। वैश्नानी की मौत के लिए परिजनों ने संजीव भट्ट तथा अन्य अफसरों को जिम्मेदार ठहराया तथा उनके खिलाफ FIR दर्ज कराई। इस मामले में IPS संजीव कुमार भट्ट, सब इंस्पेक्टर दीपक कुमार भगवानदास शाह, सब इंस्पेक्टर शैलेश कुमार लाभशंकर पंड्या, कॉन्स्टेबल प्रवीण सिंह बवुभा झाला, कॉन्स्टेबल प्रवीण सिंह जोरूभा जाडेजा, कॉन्स्टेबल अनूप सिंह मोहब्बतसिंह जेठवा और कॉन्स्टेबल केसुभा दोलुभा जाडेजा को दोषी बनाया गया।

मामले का संज्ञान 1995 में मजिस्ट्रेट द्वारा लिया गया। हालाँकि, गुजरात उच्च न्यायालय की रोक की वजह से मुकदमा 2011 तक रुका रहा। बाद में रोक हटा ली गई तथा मुकदमा पर सुनवाई शुरू हुई। तत्पश्चात, जून 2019 में जामनगर सत्र अदालत ने भट्ट एवं कॉन्स्टेबल प्रवीण झाला को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302, 323 और 506(1) के तहत आरोपी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा दी। इनके अतिरिक्त, कोर्ट ने पुलिस कॉन्स्टेबल प्रवीण सिंह जाडेजा, अनोप सिंह जेठवा, केसुभा दोलुभा जाडेजा और पुलिस उप-निरीक्षक शैलेश पांड्या एवं दीपककुमार भगवानदास शाह को भी हिरासत में यातना का दोषी पाया। इन सभी को भारतीय दंड संहित (IPC) की धारा 323 तथा 506 (1) के तहत दोषी ठहराया गया।

जामनगर सत्र न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ IPS संजीव भट्ट, पुलिस सब-इंस्पेक्टर शैलेश पांड्या एवं कॉन्स्टेबल प्रवीण झाला वर्ष 2019 में गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया। हालाँकि, उच्च न्यायालय में भी इन्हें कोई राहत नहीं मिली। अब इनके पास सर्वोच्च न्यायालय जाने का विकल्प है। बता कि संजीव भट्ट एक विवादास्पद पुलिस अफसर रहे हैं। वर्ष 1996 में उन्हें एक वकील को ड्रग्स से संबंधित एक फर्जी मामले में फँसाने का आरोप लगा था। उस समय वे बनासकांठा जिले के एसपी थे। तत्पश्चात, वर्ष 1998 में भी संजीव भट्ट पर हिरासत में लिए गए एक व्यक्ति को टॉर्चर करने का आरोप लगा था। जून 2011 में गुजरात सरकार ने ड्यूटी से गैर हाजिर रहने, ड्यूटी पर नहीं रहते हुए भी ऑफिशियल कार का उपयोग करने तथा जाँच कमिटी के समक्ष पेश नहीं होने पर संजीव भट्ट को निलंबित कर दिया। उस वक़्त गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी थे तथा वहाँ बीजेपी की सरकार थी।

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