नई दिल्ली : राजधानी में वायु प्रदुषण में हो रही वृद्धि के बावजूद दिल्ली सरकार के 10,000 नई बसे लाने की योजना पर नैशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने प्रश्नचिन्ह लगाया है. ग्रीन बेंच ने सरकार को इस संबंध में उचित स्टडी के साथ आने का आदेश दिया है. डीटीसी बसों से होने वाले ध्वनि प्रदुषण पर ट्राइब्यूनल ने कहा कि उसे दिल्ली की जनता को बहरा बनाने का कोई अधिकार नहीं है.
इस संबंध में एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने कहा, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूती प्रदान करना एक सकारात्मक पहल है लेकिन ऐसा करने के पीछे कोई ठोस अध्ययन होना चाहिए. इन बसों की पार्किंग के लिए जगह कहां है? क्या दिल्ली सरकार बिना किसी शोध के इस तरह की बातें कर रही है. दिल्ली सरकार ने एनजीटी में अर्जी दायर कर डीडीए से 10,000 बसों के लिए 500 एकड़ जमीन उपलब्ध कराने के आदेश की मांग की थी.
इस योजना के बारे में ट्राइब्यूनल ने कहा कि क्या आप जानते हैं कि आपकी बसो से कितना ज्यादा ध्वनि प्रदुषण होता है. चूंकि आप सरकारी एजेंसी है, इसका मतलब यह नहीं कि आपको दिल्ली की जनता को बहरा बनाने का अधिकार दे दिया गया है. ट्राइब्यूनल ने कहा, पिछले तीन महीनों के अंदर करवाये गए सर्वेक्षण की जांच हमारे समक्ष प्रस्तुत की जाए. ग्रीन बेंच ने सेंट्रल पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और दिल्ली पल्यूशन कंट्रोल कमिटी द्वारा गठित टीम की डीटीसी बसों की सर्वे रिपोर्ट नहीं प्रदान करने पर सवालो के घेरे में लिया.
ट्राइब्यूनल ने कहा, एमिशन की निश्चित सीमा होनी चाहिए. ग्रीन बेंच ने कहा, अपनी बसों की जांच के लिए आपको एक वर्ष का समय भी पर्याप्त नहीं है क्या. आपकी बसे जब्त होने पर भी आपने कोई कार्रवाई नहीं की. वायु प्रदुषण से जुड़े मसले पर दायर डीटीसी की उस अर्जी पर सुनवाई करते हुए ग्रीन बेंच ने यह टिप्पणी की, जिसमें उसने मांग उठायी की डीजल और पेट्रोल की गाड़ियो पर प्रतिबन्ध लगाया जाए.
वर्तमान में यहां डीटीसी बसों के लिए 42 डिपो हैं, जिनमें से कुछ में ऑरेंज कलर की क्लस्टर बसें भी पार्क की जाती है. पिछली सुनवाई के दौरान सीपीसीबी ने एनजीटी को कहा था कि उसने यहां सड़कों पर दौड़ रही 15 पुरानी और 12 नई डीटीसी बसों का सर्वेक्षण किया है. नई बसों में एमिशन से जुड़े तय नियमों के विरुद्ध समस्याये देखने को मिली है. जबकि पुरानी बसों में से छह में सीपीसीबी के स्टैंडर्ड्स के नियमों की अनदेखी की गयी है.