आखिर क्यों समुचित शारीरिक दूरी का नियम तोड़ रहे लोग ? अमेरिका की स्थिति से ले सबक
आखिर क्यों समुचित शारीरिक दूरी का नियम तोड़ रहे लोग ? अमेरिका की स्थिति से ले सबक
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पीएम मोदी ने अपने संबोधन में देशवासियों से शारीरिक दूरी बनाने के लिए कहा था. ताकि ​लोगों को कोरोना से संक्रमित होने से किसी तरह बचाया जा सके. लेकिन फिर भी क्यों कुछ लोग तमाम कोशिशों के बाद भी लॉकडाउन और समुचित शारीरिक दूरी के नियम नहीं मान रहे? क्या लॉकडाउन की समयावधि बढ़ने से उनके सब्र का बांध टूट रहा है? क्यों ग्रीन जोन में  थोड़ी-सी छूट को हर कोई अपने लिए छूट मानने लग रहा है? कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच ऐसी लापरवाहियां निश्चित रूप से डरावनी हैं.

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इस विकट स्थिति में क्या आपने गौर किया कि अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में जहां कोरोना से तबाही मची है, वे शुरुआती दिनों में इस खतरे को लेकर कितने बेपरवाह थे. विशेषज्ञों की मानें तो ये घटनाएं इंसान की ‘पूर्वाग्रहयुक्त आशावाद’ की देन हैं. बेशक आशावादी होना अच्छा है, पर 'पूर्वाग्रहयुक्त आशावाद' सेहत व जिंदगी दोनों को खतरे में डाल सकता है. 

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि वायरस के प्रकोप के बीच संशय से भरे मन पर आशा से भरी कोई भी खबर मरहम की तरह लग रही है इन दिनों. असुरक्षित होने का एहसास सामान्य नहीं होने देता, पर सबकी मनोदशा एक-सी हो जरूरी नहीं. यहां कुछ ऐसे भी हैं जो यह मानते हैं कि वे औरों से ज्यादा सुरक्षित हैं या उन्हें संक्रमण का खतरा कम है. अति आत्मविश्वास के चलते वे भले  आश्वस्त हों पर उन्हें संभालने में प्रशासन  की नींद हराम हो जा रही है.

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