दिल्ली दंगा: 'हिन्दुओं को मारना ही था भीड़ का मकसद..', पूर्व AAP पार्षद समेत 6 पर आरोप तय
दिल्ली दंगा: 'हिन्दुओं को मारना ही था भीड़ का मकसद..', पूर्व AAP पार्षद समेत 6 पर आरोप तय
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नई दिल्ली: दिल्ली की एक कोर्ट ने 2020 के हिन्दू विरोधी दंगों (Delhi Riots) के एक मामले में आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन (Tahir Hussain), उनके भाई शाह आलम और चार अन्य लोगों के खिलाफ आरोप तय कर दिए हैं। अदालत ने कहा कि भीड़ ने जानबूझकर हिंदुओं की हत्या और उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की साजिश रची थी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने ताहिर हुसैन, शाह आलम, गुलफाम, तनवीर मलिक, नाजिम और कासिम पर IPC की धारा 147, 148, 153ए, 302, 307, 120बी, 153ए और 149 के तहत आरोप तय किए हैं। बता दें कि, दो आरोपियों, गुलफाम और तनवीर मलिक के खिलाफ आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत अतिरिक्त आरोप भी तय किए गए हैं।

अदालत ने कहा है कि, 'दूसरों पर अंधाधुंध गोलीबारी यह बताती है कि यह भीड़ जानबूझकर हिंदुओं को मारना चाहती थी। यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोपी शख्स, इस भीड़ के इस मकसद से बेखबर थे। स्पष्ट है कि, यह एक गैरकानूनी सभा थी, जो इसी उद्देश्य (हिन्दुओं की हत्या) के लिए काम कर रही थी।' बता दें कि, फरवरी 2020 में चांद बाग इलाके में अजय झा को गोली लगने के मामले में शुश्रुत ट्रॉमा सेंटर से सूचना मिलने के बाद दयालपुर पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी क्रमांक 91/2020 दर्ज की गई थी। झा ने पुलिस को जानकारी दी थी कि 25 फरवरी, 2020 को वह ताहिर हुसैन के घर के निकट पहुंचे, उन्होंने छत पर मौजूद कई लोगों को देखा, जो पास के घरों पर गोलियां चला रहे थे, पेट्रोल बम और पत्थर फेंक रहे थे।

झा ने यह भी बताया था कि ताहिर हुसैन और उनके भाई शाह आलम अन्य लोगों के साथ हिंदुओं के घरों पर पत्थरों और पेट्रोल बम से हमला कर रहे थे और कभी-कभी हथियार भी निकाल रहे थे। झा ने बताया था कि, इस दौरान हिंसक भीड़ मजहबी नारे लगा रही थी। झा ने आगे कहा कि उन्हें आरोपी गुलफाम ने गोली मारी, जिससे उनके कंधे और छाती पर चोट लगी। झा ने कहा कि उसने गुलफाम की पहचान इसलिए की थी, क्योंकि वह पहले से उसे जानता था। उन्होंने भीड़ में से अन्य का भी नाम लिया, जो FIR में आरोपी हैं।  

इसके बाद छह आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करते हुए दिल्ली की कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि चश्मदीद गवाहों के बयान देरी से दर्ज किए गए थे, यह अभियोजन पक्ष और गवाहों को कारण बताने का मौक़ा दिए बिना उन्हें अविश्वसनीय घोषित नहीं कर सकता।  जज ने कहा कि, 'किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रासंगिक समय पर राजधानी में कुछ दिनों तक दंगे होते रहे। दिल्ली पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों को दंगों को रोकने के लिए ड्यूटी पर लगाया गया था। इसलिए, दंगों की हर घटना की जांच शुरू करने की जगह पुलिस का ध्यान दंगों को नियंत्रित करने के पहलू पर ज्यादा था। घबराहट के वक़्त, बहुत सुव्यवस्थित तरीके से सब कुछ होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। पीड़ितों और गवाहों में भी किसी के खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत नहीं थी। वे अपनी सुरक्षा के बारे में ज्यादा चिंतित थे।'

अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों पर गौर करते हुए कोर्ट ने पाया कि भीड़ में सभी आरोपियों की मौजूदगी भली-भाँती परिलक्षित होती है। अदालत ने कहा कि, 'यह भी अच्छी तरह से स्पष्ट है कि यह भीड़ निरन्तर हिंदुओं और उनके के घरों पर गोलियां चलाने, पथराव और पेट्रोल बम फेंकने में लिप्त थी। भीड़ के इन कृत्यों से यह संबित होता है कि उनका मकसद हिंदुओं को और उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना था।'कोर्ट ने कहा कि, 'दूसरों पर अंधाधुंध फायरिंग यह स्पष्ट करती है कि यह भीड़ जानबूझकर हिंदुओं को मारना चाहती थी और भीड़ में शामिल सभी लोग इस मकसद से परिचित थे।'

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