अब दिल्ली से पलायन को मजबूर हुए हिन्दू, बोले- घरों में फेंक देते हैं खून, गृह मंत्री को लिखा पत्र
अब दिल्ली से पलायन को मजबूर हुए हिन्दू, बोले- घरों में फेंक देते हैं खून, गृह मंत्री को लिखा पत्र
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नई दिल्ली: हिन्दुओं के पर्व रामनवमी पर देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। बताया गया कि, हिन्दू अपनी शोभायात्रा लेकर मुस्लिम इलाकों में घुस गए और वहां आपत्तिजनक नारे लगाए, जिससे हिंसा हुई। अमूमन, हर साल रामनवमी, हनुमान जन्मोत्सव पर होने वाली हिंसा को लेकर राजनेताओं द्वारा यही कारण बताया जाता रहा है। लेकिन, अब देश की राजधानी दिल्ली से ऐसी खबर सामने आई है, जिसको जानने के बाद आप खुद ये सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि, हिंसा के लिए किसी जुलुस या रथयात्रा निकलने की आवश्यकता है भी, या आपका गैर-मुस्लिम होना ही उनकी आपत्ति के लिए काफी है ? हम सबने देखा कि, अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता आने के बाद किस तरह सिख और हिन्दू अपने धर्म ग्रंथों को सिर पर रखकर भारत आए, पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का हाल किसी से छिपा नहीं है। बांग्लादेश में गत वर्ष दुर्गापूजा के दौरान भारी हिंसा हुई थी, कई हिन्दुओं की हत्या कर दी गई थी। यहां इकबाल हुसैन ने खुद दुर्गा पंडाल में क़ुरान रख दी थी और उसके साथी फयाज ने मुस्लिमों को भड़का दिया कि, पूजा मंडप में क़ुरान रखकर उसका अपमान किया जा रहा है। कोई गलती न होने पर भी हिन्दुओं को अपनी जान देकर इसका परिणाम भुगतना पड़ा। भारत में भी हम मोपला नरसंहार, कोलकाता का डायरेक्ट एक्शन डे, कश्मीरी हिन्दुओं का नरसंहार जैसे वीभत्स कत्लेआम देख चुके हैं। अब देश की राजधानी दिल्ली तक भी कट्टरपंथ की आग पहुँच चुकी है। 

 

दरअसल, दिल्ली में वर्ष 2020 के हिन्दू विरोधी दंगों का दंश झेलने वाले ब्रह्मपुरी के हिन्दुओं ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने नमाज़ और मदरसे के नाम पर गली में बाहरी मुस्लिमों के जमावड़े को लेकर शिकायत की है। पीड़ितों ने खुद को घरों से बाहर निकलने में भी समस्या होने की बात कहते हुए पलायन के लिए विवश होने की आशंका जताई है। बुधवार (5 अप्रैल) को भेजे गए इस पत्र में आरोपित के तौर पर खासतौर पर अब्दुल रफीक का नाम लिखा गया है। इस पत्र में मुख्य शिकायतकर्ता शीशपाल तिवारी हैं। उनके साथ इस चिट्ठी पर ब्रह्मपुरी के ही कई अन्य लोगों ने भी हस्ताक्षर किए हैं। चिट्ठी में विषय के तौर पर हिन्दुओं को भगाने के लिए गैरकानूनी मस्जिद और मदरसों को बनाने का उल्लेख है। साथ ही रफीक पर वर्ष 2018 में दिल्ली पुलिस के DCP द्वारा कराए गए समझौते को तोड़ने का भी इल्जाम लगाया गया है। इस समझौते के तहत केवल,  गली के लोगों को नमाज़ पढ़ने की इजाजत दी गई थी, मगर शिकायत के मुताबिक, अब वहाँ बाहरी लोग नमाज़ पढ़ने के लिए पहुँच रहे हैं, जिससे अन्य लोगों को काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

शिकायतकर्ताओ ने इसे जानबूझ कर की जा रही हरकत करार दिया है। उनका कहना है कि हिन्दू परिवारों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है, जिस से वो घर छोड़ने के लिए मजबूर होते जा रहे हैं। शिकायत में बताया गया है कि गली नंबर 8 के मकान C-76/4, में वर्ष 2017-2018 में हिन्दुओ को भगाने के लिए मस्जिद व मदरसों का निर्माण आरंभ किया गया था। इस निर्माण पर हिन्दू समाज ने विरोध जताया था। उस समय स्थानीय प्रशासन ने वर्ष 2018 में दोनों समुदायों को बुला कर आपसी लिखित समझौता करवा दिया था। शिकायतकर्ताओं ने इस समझौते की कॉपी भी अपनी चिट्ठी में संलग्न की है। सुदर्शन न्यूज़ के पत्रकार सागर कुमार ने अपने ट्विटर हैंडल पर इस पत्र को साझा किया है।

शीशपाल तिवारी व अन्य लोगों के अनुसार, उनके घरों में मुस्लिम आरोपितों द्वारा खून तक डाल दिया जाता है। इसकी शिकायत न्यू उस्मानपुर थाने में की भी गई है। चिट्ठी में लगाए गए आरोप में गली के निवासियों ने कहा है कि मास्टरमइंड अब्दुल रफीक 2018 में पुलिस द्वारा कराए समझौते का उल्लंघन कर रहा है। रफीक पर बाहर से मुस्लिमों को बुला कर गली में नमाज़ पढ़वाने का भी इल्जाम लगाया गया है। शिकायतकर्ताओं ने रफीक की इस करतूत के पीछे हिन्दुओं को पलायन करवाने की साजिश की आशंका जाहिर की है। साथ ही नमाज़ के नाम पर इकठ्ठा होने वाले बाहरी लोगों में कई असामाजिक तत्व होने की भी बात कही गई है। 

चिट्ठी में गली में एक नए मदरसे के निर्माण की तैयारी की ओर भी इशारा किया गया है। आखिर में निवासियों ने अब्दुल रफीक और उसके साथियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की माँग की ही। इस कार्रवाई को स्थानीय निवासियों ने अपने पलायन रोकने के लिए अत्यंत आवश्यक बताया गया है। पत्र की प्रतियाँ केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ दिल्ली के उपराज्यपाल (LG), पुलिस आयुक्त, इलाके के SHO, ACP और DCP को भी भेजी गईं हैं। पत्र में ACP सीलमपुर की मुहर भी लगी है और तारीख 5 अप्रैल 2023 दर्ज है।

 

बता दें कि, कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के कैराना से भी हिन्दुओं के पलायन का मामला सामने आया था। यहाँ तक कि, हिन्दुओं को डरा-धमकाकर पलायन करवाने का आरोप भी समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक नाहिद हसन पर लगा था। हरियाणा के मुस्लिम बहुल इलाके मेवात से भी हिन्दुओं के पलायन की खबरें सामने आती रहीं हैं। 2022 में राजस्थान के करौली में दंगे होने के बाद वहां से भी हिन्दुओं ने पलायन किया था। लेकिन सवाल यह है कि, पूरे भारत से पलायन करने के बाद हिन्दू आखिर जाएंगे कहाँ ? तमिलनाडु के पेराम्बलूर जिले के वी कालाथुर में एक मुस्लिम बहुल इलाके में हिन्दू मंदिरों की रैली पर रोक लगा दी गई थी। एक रिपोर्ट के अनुसार, समुदाय विशेष ने हिन्दू त्योहारों को पाप करार दिया था। बाद में मद्रास हाई कोर्ट ने इस मामले में दखल दिया था।  ऐसे में समझा जा सकता है कि, जिन त्योहारों को समुदाय विशेष पाप समझता है, उन त्योहारों पर निकलने वाली शोभायात्राओं और जुलूसों को वो कैसे बर्दाश्त करेगा ? वहीं, बिहार में भी कुछ इलाकों में स्कूल की छुट्टियां रविवार की जगह शुक्रवार की कर दी गई थी, तर्क दिया गया था कि, यहाँ मुस्लिमों की आबादी अधिक है, इसलिए  रविवार की जगह जुम्मे (शुक्रवार) को स्कूल बंद रखे जाएं। 2020 के दिल्ली दंगों की सुनवाई में कोर्ट भी कह चुकी है कि, भीड़ का मकसद केवल और केवल हिन्दुओं को नुकसान पहुँचाना ही था। इस मामले में AAP का पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन मुख्य आरोपी है। जिसके घर को भीड़ ने बेस की तरह इस्तेमाल करते हुए हिन्दुओं पर हमला किया था। इन तमाम घटनाओं को देखने के बाद आप खुद दंगों और दंगाइयों की सोच का अनुमान लगा सकते हैं। 

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