इन दवाओं को बनाने में दुनिया में बेस्ट है भारत
इन दवाओं को बनाने में दुनिया में बेस्ट है भारत
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दुनिया में जेनरिक दवाओं और टीकों के मामले में भारत का कोई सानी नहीं है. कोविड-19 संकट के दौरान हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की मांग ने यह साबित कर दिया है कि दवाओं की दुनिया में भारत विश्व की बड़ी उम्मीद बन कर उभरा है. भारत दुनिया के कई देशों को जेनरिक दवाओं का निर्यात कर रहा है, हालांकि भारत की अपनी सीमाएं हैं. दवाओं के निर्माण के लिए कच्चा माल हासिल करने के लिए उसे चीन की ओर निहारना पड़ता है. यह विडंबना ही है कि जब चीन से दुनिया कन्नी काट रही है और भारत की ओर देख रही है, ऐसे में भारत को चीन की ओर ताकना पड़ रहा है.

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भारतीय कंपनियों ने नामचीन दवाओं की रिवर्स इंजीनियरिंग के जरिये कानूनी रूप से मान्य इनके दूसरे संस्करण लॉन्च किए. 1995 में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने दवा पेटेंट को 20 साल की सुरक्षा देने का समझौता पेश किया और कंपनियों को इसके पालन के लिए 10 साल दिए गए. हालांकि जब एचआइवी संकट आया तो स्पष्ट था कि गरीब देशों को सस्ती दवाओं की जरूरत थी. 

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि डब्ल्यूटीओ ने माना कि सदस्य देश सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आवश्यक दवाओं के सामान्य संस्करण बनाने के लिए निर्माताओं को लाइसेंस दे सकते हैं. 2001 में, भारतीय दवा कंपनी सिप्ला ने कई ब्रांड नाम वाली दवाओं की रिवर्स इंजीनियरिंग की. अफ्रीकी देशों और सहायता समूहों के लिए एक डॉलर एक दिन के लिए दवा की पेशकश की गई, ब्रांड-नाम वाले संस्करणों से यह 96 फीसद से अधिक सस्ती दवाएं थी.

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