'संविधान हराम है, काफिरों को मारो, शरिया लागू होगा..', इस्लामिक स्टेट के आतंकियों के खिलाफ चार्जशीट में NIA के हैरतअंगेज़ खुलासे
'संविधान हराम है, काफिरों को मारो, शरिया लागू होगा..', इस्लामिक स्टेट के आतंकियों के खिलाफ चार्जशीट में NIA के हैरतअंगेज़ खुलासे
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पुणे: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने पुणे इस्लामिक स्टेट (ISIS) मॉड्यूल से जुड़े 7 गिरफ्तार आतंकवादियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर कर दिया है। चार्जशीट में ISIS मॉड्यूल के कामकाज के बारे में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं और बताया गया है कि यह कैसे मुस्लिम युवाओं को ISIS के प्रति निष्ठा की शपथ दिला रहा था। चार्जशीट से पता चलता है कि आरोपी गैर-मुसलमानों पर जानलेवा हमलों की योजना बना रहे थे, 'काफिरों' को मारने की बात करते थे और उन्हें खत्म करने के लिए विभिन्न तरीकों पर चर्चा करते थे। चार्जशीट के मुताबिक, इस्लामिक स्टेट (ISIS) आतंकियों ने भारत में शरिया स्थापित करने की योजना बनाई थी। 

NIA की जांच में उन्हें कई गवाहों से पूछताछ करनी पड़ी, जिनके बयान NIA द्वारा दायर आरोपपत्र में शामिल किए गए हैं। एक गवाह, जिसकी पहचान गुप्त रखी गई है, ने विस्तार से बताया कि कैसे गिरफ्तार आरोपियों ने उसे एक व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ा था, जहां वे इस्लामिक स्टेट की जहरीली विचारधारा का प्रचार कर रहे थे और मुसलमानों से अपनी निष्ठा की प्रतिज्ञा करने का आग्रह कर रहे थे। चार्जशीट में कहा गया है कि पडघा गांव निवासी जुल्फिकार अली बड़ौदावाला और पुणे निवासी जुबैर शेख ने 2015 में युवाओं को कट्टरपंथी बनाना शुरू कर दिया था और व्हाट्सएप पर समूह बनाया था, जहां उन्होंने खूंखार आतंकी संगठन ISIS के समर्थन में संदेश पोस्ट किए थे।

 

NIA ने जिस संरक्षित गवाह का हवाला दिया है, उसका कहना है कि वह 2011-2012 में जुबैर शेख के संपर्क में आया था, जिसे एजेंसी ने एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया है। गवाह ने दावा किया कि 2014 में शेख ने उसे 'यूनिटी इन मुस्लिम उम्माह' और 'उम्माह न्यूज' नाम के व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ा था। गवाह ने कहा कि जुबैर शेख फिलिस्तीन, सीरिया और ISIS विचारधारा से संबंधित लेख पोस्ट करता था। गवाह ने दावा किया कि जुबैर के अलावा, तल्हा खान, अब्दुल्ला शेख (एक वांछित आरोपी जो ओमान में बताया जाता है), बड़ौदावाला, अब्दुल कादिर और सिमाब काजी उस व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्य थे, जो ISIS का समर्थन करते थे और उसकी विचारधारा का प्रचार करते थे। गवाह ने दावा किया कि उसने समूह छोड़ दिया था, मगर 2017 में उसे फिर से जोड़ लिया गया।

संरक्षित गवाह, जिसका बयान NIA की चार्जशीट में जोड़ा गया है, ने कहा कि वह बड़ौदावाला का करीबी था। बड़ौदावाला 2022 में पुणे से बाहर भिवंडी तालुका के पडघा गांव में चला गया। जब गवाह ने उससे कारण पूछा, तो बड़ौदावाला ने उसे बताया कि पडघा एक मुक्त क्षेत्र था, जहां शरिया का पालन किया जाता था, महामारी के दौरान भी मस्जिदें खुली थीं और गांव का माहौल 'अल-शाम' (ग्रेटर सीरिया का एक क्षेत्र जहां ISIS का शासन था) जैसा था। उस व्हाट्सएप समूह में मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के लिए मुसलमानों के खिलाफ पौराणिक अत्याचारों पर व्यापक चर्चा की जाती थी।

गवाह ने बताया कि कैसे उसकी मुलाकात आरोपी सिमाब काजी से हुई, जो कोविड लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन 'ई-दर्शन' आयोजित कर रहा था। 2021 में, उसका परिचय आरोपी जुल्फिकार अली बड़ौदावाला और अब्दुल कादिर पठान से हुआ और वह उनसे अक्सर मिलने लगा क्योंकि उस समय वह बेरोजगार था। NIA द्वारा उद्धृत गवाह ने इस बारे में भी विस्तार से बताया कि आरोपी ISIS आतंकवादियों द्वारा व्हाट्सएप ग्रुप में किस तरह के संदेश साझा किए जा रहे थे। एक रिपोर्ट के अनुसार, गवाह ने अपने बयान में कहा, 'हमारी शुरुआती मुलाकातों में हमारी दोस्ताना और कैजुअल बातचीत हुई। हालाँकि, धीरे-धीरे जुल्फिकार उर्फ लालाभाई, सिमाब काजी और तल्हा खान ने शिर्क, खलीफा, जिहाद, इस्लामिक स्टेट ऑफ सीरिया एंड इराक (ISIS), बियाह आदि विषयों पर चर्चा शुरू कर दी। कई बार, उन्होंने मेरे सहित अन्य सदस्यों को भी ISIS और ISIS के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा लेने के लिए शामिल होने के लिए मनाने की कोशिश की।'
 
बयान में आगे कहा गया है कि, 'वे कहते थे कि किसी भी प्रकार के चुनाव में मतदान करना इस्लाम में हराम है। वे हमें इसके ख़िलाफ़ कुछ हिंसक करने के लिए उकसाने के लिए हमेशा भारत में मुसलमानों की मॉब लिंचिंग का उदाहरण देते थे। उनका कहना था कि इस्लाम महिलाओं को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं देता. इसलिए, वे CAA/NRC आंदोलनों में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी के खिलाफ थे।' आरोपियों का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि भारत में इस्लामिक राज्य की स्थापना के लिए बड़ी संख्या में मुसलमान ISIS में शामिल हों। इसके अलावा, 'वे यह भी कहते थे कि संविधान हराम है और मुसलमानों के लिए एकमात्र कानून अल्लाह का कानून (शरिया) है।'

गवाह ने बताया है कि, गैर-मुसलमानों को मारना भी एक एजेंडा था, जिस पर समूह में व्यापक चर्चा होती थी। गवाह ने कहा कि आरोपी ISIS आतंकवादी कहते थे कि, 'हमें काफिरों को मारना है और उसे अंजाम देने के लिए हमारे पास सारी चीजें हैं। और सही समय आएगा तब तुम्हें सब बता देंगे।' 

एक मीडिया रिपोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण बयानों का उल्लेख किया गया है, जिसके बारे में गवाह का कहना है कि ये बयान आरोपी ISIS आतंकवादी व्हाट्सएप ग्रुप में देते थे। वे कहते थे कि, ''भारत का संविधान अपने लिए नहीं है, अपना कानून सिर्फ कुरान है। जिहाद करना हर मुसलमान का फ़र्ज़ है। कोई भी मुस्लिम जमात या तंजीम सही नहीं है, सिर्फ ISIS सही है, क्योंकि वह खलीफा के लिए लड़ता है, खलीफा कायम करने के लिए मेहनत करता है। खलीफा याने पूरी दुनिया पर शरीयत का अमल होना। और खिलाफत का मतलब पूरी दुनिया को शरिया कानून के तहत लाना है। तिरंगे झंडे को सलामी देना या राष्ट्रगान के लिए खड़े रहना हराम है, क्योंकि वह इस्लाम से बड़ा नहीं है।
शिया और दरगाह जाने वाले मुसलमान काफिर हैं और उनके खिलाफ भी जिहाद कर सकते हैं।'' 

पुणे ISIS मॉड्यूल और दिल्ली हिंदू विरोधी दंगों के बीच संबंध:-

बता दें कि, पुणे ISIS मॉड्यूल का लिंक दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों (2020) से भी है। अक्टूबर में पहले गिरफ्तार किए गए ISIS आतंकवादियों में से एक, अरशद वारसी, दिसंबर 2019 में हिंसा की प्रारंभिक योजना चरणों के दौरान दिल्ली दंगों के मास्टरमाइंड शरजील इमाम में से एक के साथ नियमित संपर्क में था। अरशद वारसी ने दिल्ली में CAA-NRC विरोध प्रदर्शन के दौरान सांप्रदायिक हिंसा के पीछे की साजिश रचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके अलावा, शाहीन बाग में विरोध स्थल स्थापित करने में उसकी सक्रिय भागीदारी भी जांच में सामने आई है। 

आरोपपत्र, जो 2,700 पृष्ठों में फैला है और FIR 59/2020 से संबंधित है, उसमे विशेष रूप से दंगों की साजिश कैसे रची गई ? इसका विवरण देने के लिए ही लगभग 700 पृष्ठ आवंटित किए गए हैं। दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र के अनुसार, 4 दिसंबर को संसद के दोनों सदनों में CAB पेश किए जाने के बाद, 5 दिसंबर को शरजील इमाम द्वारा मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑफ जेएनयू (MSJ) नामक एक समूह का गठन किया गया था। समूह के सदस्य और इसका निर्माण भी उन्हीं के दिमाग की उपज थी। शरजील और अन्य आरोपियों से जब्त किए गए फोन की जांच के बाद दिल्ली पुलिस ने जो चैट हासिल की, उससे पता चला कि शरजील इमाम और अरशद वारसी (जामिया का छात्र) लगातार संपर्क में थे और शरजील भी कट्टरपंथी सांप्रदायिक समूह” जामिया के छात्र (SOJ) के संपर्क में था। 

6 दिसंबर को MSJ ग्रुप की ओर से जामा मस्जिद इलाके में पर्चे बांटे गए थे, जो खुद शरजील इमाम ने लिखे थे। इस बात का खुलासा शरजील इमाम और मोहम्मद अरशद वारसी के बीच रिकवर हुई चैट से हुआ है। ये पर्चे सांप्रदायिक प्रकृति के थे और इनका मुख्य उद्देश्य राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर मुस्लिम समुदाय में नफरत फैलाना था। कुछ पर्चों में लिखा था कि, "अल्लाह का कानून सब से ऊपर है" और "अल्लाह का आदेश हर कानून से ऊपर है"। 6 दिसंबर को मस्जिदों में जो पर्चे बांटे गए, उनमें बड़ी संख्या में जंतर-मंतर पर 'यूनाइटेड अगेंस्ट हेट' द्वारा बुलाए गए विरोध प्रदर्शन में शामिल होने और "भीड़ जुटाने" का आह्वान भी किया गया था।

आरोप पत्र में कहा गया है, “शारजील इमाम ने SOJ के अरशद वारसी से अपनी चैट में 7 दिसंबर 2019 को जंतर मंतर पर यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के अपने इरादे का खुलासा किया।” आरोपपत्र में इस बातचीत के स्क्रीनशॉट शामिल हैं, जिससे पता चलता है कि इमाम दिल्ली दंगों के सिलसिले में "जन लामबंदी" के उद्देश्य से मोहम्मद अरशद वारसी तक पहुंचा था। बता दें कि, इसी दौरान शरजील इमाम का भी एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमे वो मुस्लिम भीड़ के सामने असम को भारत से पूरी तरह काटकर अलग करने की साजिश रचता नज़र आ रहा था। वो खुलेआम कह रहा था कि, 'हमें चिकन नेक (असम और पूर्वोत्तर राज्य) को परमानेंटली काटकर अलग करना है, इसके लिए सड़कें ब्लॉक कर दो, रेल की पटरियों पर इतना मवाद डालो कि वहां से ट्रेन न गुजर सके।' हालाँकि, शरजील इमाम के सामने खड़ी भीड़ भारत के टुकड़े करने की साजिश पूरे ध्यान से सुन रही थी और बीच-बीच में उसका हौसला भी बढ़ा रही थी। शरजील का वीडियो आज भी यूट्यूब पर उपलब्ध है, लेकिन फिर भी कुछ नेतागण और वामपंथी उसे बेकसूर बताकर उसकी रिहाई की मांग कर रहे हैं। 

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