डॉ रमन सिंह और संबित पात्रा को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने किया बरी, कांग्रेस ने दर्ज कराया था केस, पुलिस को भी पड़ी फटकार
डॉ रमन सिंह और संबित पात्रा को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने किया बरी, कांग्रेस ने दर्ज कराया था केस, पुलिस को भी पड़ी फटकार
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रायपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने भाजपा नेता और राज्य के पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा के खिलाफ एक आपराधिक मामले को खारिज कर दिया है। बता दें कि, छत्तीसगढ़ पुलिस ने भाजपा नेताओं पर कथित तौर पर COVID-19 महामारी के दौरान कथित 'कांग्रेस टूलकिट' के स्क्रीनशॉट ट्वीट करके फर्जी खबर फैलाने के आरोप में FIR दर्ज की थी, जिसमें दावा किया गया था कि इसने COVID-19 महामारी के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को खराब करने के कांग्रेस के एजेंडे को उजागर किया है। यह FIR  कांग्रेस की छात्र शाखा - नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) के प्रदेश अध्यक्ष आकाश शर्मा द्वारा दायर एक शिकायत पर दर्ज की गई थी।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की पीठ ने कहा कि भाजपा नेताओं द्वारा किए गए दो ट्वीट की सामग्री गलत या असत्य हो सकती है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि इसे उकसाने के इरादे से पोस्ट किया गया था या जिससे किसी को किसी अन्य वर्ग या समुदाय के विरुद्ध अपराध करने के लिए व्यक्तियों का वर्ग या समुदाय उकसाने की संभावना है। हाई कोर्ट ने कहा कि, 'तत्काल मामलों में, एक संदेश पोस्ट करना/ट्वीट करना जो कि राजनीतिक गपशप के रूप में अधिक है, को फर्जी समाचार फैलाने और हिंसा भड़काने के कृत्य का रूप देने की कोशिश की गई है। FIR के अवलोकन से, यह सुरक्षित रूप से माना जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी अपराध नहीं बनता है।'

उच्च न्यायालय ने भाजपा नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामले को रद्द करते हुए कहा कि उनकी खिलाफ शिकायत 19 मई, 2021 को शाम 4.05 बजे पुलिस स्टेशन में प्राप्त हुई थी और तुरंत एक मिनट के भीतर यानी 4:06 बजे FIR दर्ज की गई थी। हाई कोर्ट ने छत्तीसगढ़ पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि, 'पुलिस अधिकारी एक मिनट में इस नतीजे पर कैसे पहुंच गए कि उक्त शिकायत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ संज्ञेय अपराध का मामला बनती है।' उन्होंने कहा कि पुलिस अधिकारियों द्वारा दिखाई गई जल्दबाजी समझ से परे है।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता यानी छत्तीसगढ़ NSUI अध्यक्ष, जिनकी लिखित शिकायत पर FIR दर्ज की गई थी, वो नोटिस की तामील के बावजूद अदालत में पेश नहीं हुए। हाई कोर्ट ने कहा कि, 'प्रतिवादी नंबर 4 (छत्तीसगढ़ NSUI अध्यक्ष) भी कोई आम आदमी नहीं है, बल्कि NSUI, छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष हैं। यदि वह इतने ही चिंतित और सतर्क थे कि सोशल मीडिया पर कोई गलत/गलत संदेश राज्य में अशांति का कारण न बने, तो उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए इस कोर्ट के समक्ष भी उपस्थित होना चाहिए था। ऐसे में, यह इस तथ्य का संकेत है कि संबंधित FIR अपना हिसाब-किताब बराबर करने के लिए शुद्ध राजनीतिक प्रतिशोध का परिणाम है।'

हाई कोर्ट ने आगे कहा कि जब याचिकाकर्ता भाजपा नेताओं द्वारा किया गया ट्वीट पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध था, तो याचिकाकर्ताओं के खिलाफ FIR दर्ज करने का कोई कारण नहीं था, लेकिन अगर ऐसा करना जरूरी भी था, तो पहले उस पर केस किया जाना चाहिए था कि जिस व्यक्ति ने सबसे पहले झूठा संदेश ट्वीट किया। उच्च न्यायालय ने कहा कि, 'याचिकाकर्ताओं (रमन सिंह और पात्रा) ने एक वास्तविक विश्वास के तहत इसे एक वास्तविक संदेश मानते हुए इसे अपने सोशल मीडिया अकाउंट से अग्रेषित/रीट्वीट किया, जो पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में था।'

बता दें कि, याचिकाकर्ता भाजपा नेताओं ने अपने-अपने ट्विटर हैंडल पर 'टीम भारत' नाम के एक हैंडल की एक पोस्ट को '#CongressToolKitExposed' हैशटैग के साथ रीट्वीट किया था, जिसमें "कोविड कुप्रबंधन पर नरेंद्र मोदी और भाजपा को घेरना" शीर्षक से एक दस्तावेज़ साझा किया गया था और उस दस्तावेज़ में कुछ निर्देश दिए गए थे, जिसमे बताया गया था कि केंद्र सरकार और भाजपा की छवि को शर्मसार और धूमिल कैसे करें। उसमे स्टेप बाय स्टेप पूरा प्लान था, जिसे टूलकिट कहा गया था। उसमे कहा गया था कि कथित निर्देश अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के अनुसंधान विभाग के लेटर-हेड के तहत जारी किए गए थे।

युथ कांग्रेस के नेता आकाश शर्मा ने इस संबंध में छत्तीसगढ़ पुलिस से शिकायत की और एक मिनट के अंदर भाजपा नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज कर ली गई। भाजपा नेताओं ने कोर्ट में स्वीकार किया कि उन्होंने 'कांग्रेस टूलकिट' की आलोचना की, क्योंकि वे ईमानदारी से और दृढ़ता से मानते हैं कि केंद्र सरकार भारतीय नागरिकों के सर्वोत्तम हित में काम कर रही है, और वह (कांग्रेस) जानबूझकर केंद्र सरकार की गतिविधियों, कार्यों और नीतियों के बारे में जनता को गुमराह कर रही है। भाजपा नेताओं ने कोर्ट में कहा कि, राजनीतिक लाभ जनहित के विरुद्ध है और देश को बड़े खतरे में डालता है।

भाजपा नेताओं ने बताया कि जन प्रतिनिधियों के रूप में उनका काम भारत के लोगों को यह समझने में सहायता करना है कि क्या सच है और क्या नहीं, साथ ही क्या तथ्यों पर आधारित है और क्या बनाया गया है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि विचाराधीन ट्विटर पोस्ट उनकी व्यक्तिगत राय को दर्शाता है, जिसे बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में उन्हें सभी संबंधित नागरिकों के साथ साझा करने का अधिकार है।  याचिकाकर्ता भाजपा नेताओं ने आगे कहा कि भले ही उन पर सार्वजनिक शरारत और जनता के बीच शत्रुता, घृणा या दुर्भावना को बढ़ावा देने से संबंधित अपराधों के लिए आरोप लगाए गए हैं, लेकिन राजनीतिक पदाधिकारी (कांग्रेस नेता) के अलावा पुलिस में कोई शिकायत नहीं की गई है। कांग्रेस पार्टी और स्पष्ट रूप से, विवादित FIR निहित स्वार्थों के इशारे पर और राजनीतिक लाभ के लिए राज्य मशीनरी का दुरुपयोग करके दर्ज की गई थी।

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