हल्द्वानी के पीड़ित मुस्लिमों के लिए 'भीम आर्मी' ने माँगा मुआवज़ा, हिंसा में घायल दलित कर्मचारियों पर चुप्पी !
हल्द्वानी के पीड़ित मुस्लिमों के लिए 'भीम आर्मी' ने माँगा मुआवज़ा, हिंसा में घायल दलित कर्मचारियों पर चुप्पी !
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देहरादून: उत्तराखंड के हल्द्वानी में 8 फरवरी 2024 को दंगाइयों की भीड़ ने अतिक्रमण हटाने पहुंची पुलिस और नगर निगम स्टाफ पर हमला कर दिया था। अब तक 58 दंगाइयों को अरेस्ट किया जा चुका है, जबकि बाकियों की धरपकड़ की कोशिश के साथ कुर्की जैसी कानूनी प्रक्रियाएँ जारी हैं। विगत 10 दिनों में प्रशासन की कोशिशों से हालात तेजी से सामान्य होते जा रहे हैं। हालाँकि इस बीच कुछ समूह और गिरोह माहौल बिगड़ने में लगे हुए हैं।

इस इलाके में 2 दिन पहले एक कथित फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने जाकर भ्रामक रिपोर्ट बनाई, वहीं अब दलितों के हक़ की आवाज़ उठाने का दावा करने वाली ‘भीम आर्मी’ भी पीड़ित मुस्लिमों से न मिलने देने पर प्रशासन के खिलाफ खड़ी हो गई है। गौर करने वाली बात तो ये है कि, भीम आर्मी, जिन दलितों के लिए काम करने का दावा करती है, वो भीम आर्मी,, नगर निगम के उन दलित स्टाफ के घर मिलने नहीं जा रही जिन्हे दंगाइयों ने बेरहमी से मारा है। बल्कि, उनका दावा है कि, उन्हें पीड़ित मुस्लिमों से नहीं मिलने दिया जा रहा। 

रिपोर्ट्स के अनुसार, शनिवार (17 फरवरी, 2024) को ‘भीम आर्मी’ का 60 सदस्यीय प्रतिनिध मंडल वनभूलपुरा के मुस्लिमों से मिलने के लिए पहुंचा था। इस प्रतिनिधि मंडल में राष्ट्रीय अध्यक्ष मनजीत नौटियाल, सोनू लाठी आदि सदस्य शामिल थे। प्रतिनिधि मंडल को उत्तराखंड पुलिस ने वनभूलपुरा क्षेत्र से बहुत पहले ही हाईवे पर रोक दिया। प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्र में कर्फ्यू लागू होने का हवाला दिया और हालत सामान्य करने में उनसे सहयोग का आग्रह किया। हालाँकि भीम आर्मी ने प्रशासन की बात नहीं मानी और आगे बढ़ने लगे। तब प्रशासन ने इस समूह के लोगों को कुछ समय के लिए हिरासत में लिया और फिर वापस लौटा दिया। 

भीम आर्मी के बाकी सदस्य इस बात पर सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। वापस लौटाए जाने से भड़के मनजीत नौटियाल ने अपनी माँगों के न माने जाने पर आंदोलन तक की चेतावनी दे दी है। उनकी माँगों में बेगुनाह मुस्लिमों पर दर्ज केस वापस लेना और वनभूलपुरा के पीड़ितों को मुआवजे के रूप में 60 लाख रुपए प्रदान करना शामिल है। ‘भीम आर्मी’ राष्ट्रीय अध्यक्ष यह भी कहते हैं कि नैनीताल प्रशासन ध्वस्त किए गए अवैध मदरसे और मस्जिद के लिए दूसरी जमीन दे।

हल्द्वानी हिंसा में पीड़ित कौन ?

बता दें कि हल्द्वानी हिंसा में सबसे ज्यादा नुकसान पुलिस और नगर निगम के कर्मचारियों का ही हुआ है। हिंसा के शिकार नगर निगम के ज्यादातर सदस्य अनुसूचित जाति (SC) वर्ग से हैं, यानी दलित हैं। इनमें से मनोज और मिथुन वाल्मीकि के अलावा सागर सोनकर ने खुद मीडिया के सामने दंगाइयों की करतूत भी बताई थी। हमले में मनोज, मिथुन और सागर के हाथों और पैरों में फैक्चर हो गया हैं, जिसका उपचार सरकार करवा रही है। इन सभी ने मीडिया को बताया है कि उस दिन दंगाइयों ने उन्हें मारने और जिन्दा जलाने के लिए रास्ते में कँटीले तार भी बिछा कर रखे हुए थे।

वहीं दलित समुदाय से ही आने वाले कांग्रेस नेता गब्बर वाल्मीकि ने भी माना है कि वनभूलपुरा की दंगाई भीड़ ने कानून को तोडा था। गब्बर वाल्मीकि ने दंगाइयों पर सख्त कार्रवाई किए जाने की भी माँग की थी। इन सभी के अलावा वनभूलपुरा से निकली दंगाइयों की भीड़ जिस रिहायशी बस्ती गांधीनगर में घुसना चाह रही थी, वहाँ भी ज्यादातर परिवार दलित समुदाय के ही रहते हैं। इन परिवारों के कई सदस्य दंगाइयों के हमले में पुलिसकर्मियों, नगर निगम स्टाफ और अपने खुद के परिवार की रक्षा करते हुए जख्मी हुए हैं।

घायलों में दलित समुदाय के अमरदीप सोनकर को गंभीर चोटें आईं हैं और वो अभी तक बिस्तर से नहीं उठ पाए हैं। उनके अलावा दंगाइयों के हमले में मनीष सोनकर का सिर फट गया, ऋतिक सोनकर के चेहरे पर कई जख्म आए और आर्यन सोनकर का हाथ टूट गया। इन सभी के अलावा गाँधीनगर की SC वर्ग की महिलाओं का कहना है कि आज भी उनके मन में दंगाई भीड़ का उन्मादी रूप घूमता है। यह पूरा मोहल्ला पुलिस के साथ अपनी खुद की रक्षा हेतु एकजुट हो गया था। इसी मोहल्ले पर न केवल गोलियाँ चलाई गईं, बल्कि पथराव भी किया गया और पेट्रोल बम भी फेंके थे। कुल मिलकर देखा जाए, तो इस हिंसा में दलित समुदाय के कई लोग घायल हुए हैं, लेकिन भीम आर्मी उनमे से किसी से मिलने नहीं गई है।  

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