अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस: रांची के एक परिवार की कहानी
अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस: रांची के एक परिवार की कहानी
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रांची: आज की दौड़ती-भागती जिंदगी में संयुक्त परिवार में रहना एक सपना ही रह गया है, आजकल के नौजवान अपनी सपनों की दुनिया अलग ही बसाना चाहते हैं, जबकि हमारी संस्कृति और बुनियाद हमें एक साथ रहने की प्रेरणा देती है. लेकिन विदेशों में यह स्थिति दशकों पहले से थी, इसिलए परिवार की अवधारणा को मजबूती देने के लिए 1993 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने मई की 15 तारीख को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाने की घोषणा की थी.

भारत के शहरी इलाकों में तो ऐसे परिवार ढूँढना मुश्किल है, लेकिन रांची में एक ऐसा परिवार है, जहाँ 4 पीढ़ियों के 58 सदस्य एक साथ रहते हैं, पूरा परिवार दिन में एक बार साथ खाने पर जरूर बैठता है, सुनिश्चित किया जाता है कि सभी परिवार के सदस्य एक-दूसरे के हर पहलू को यहां साझा कर सकें. इसी परिवार के सदस्य प्रवीण बताते हैं, दिनभर आप अपनों के आसपास आपके अपने रहते हैं, परिवार के सदस्यों से ज्यादा कौन किसकी मदद कर सकता है, सभी एक साथ रहते हैं, सभी एक-दूसरे की मदद करने के लिए आगे आते हैं, बच्चों को भी बाहरी दोस्तों की जरूरत नहीं होती है, एक साथ मिलकर पूरी टीम बना लेते हैं, खेल का रंग जमता है, बच्चे भी खुश रहते हैं.

प्रवीण जैन ने बताया कि दादा स्वर्गीय रूपचंद जैन छाबड़ा और बडे़ दादा मदनलाल जैन के समय से पूरा परिवार एक साथ रह रहा है, चार पीढ़ियां एक साथ रहती हैं,  58 परिवार के सदस्य अभी भी एक साथ रहते हैं. संयुक्त परिवार का ऐसा रूप कम ही देखने को मिलेगा, संयुक्त परिवार में रहने वाले ही संयुक्त परिवार की खासियत के बारे में जान सकेंगे. 

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