जनसंघ से भाजपा तक किया दमदार नेतृत्व
जनसंघ से भाजपा तक किया दमदार नेतृत्व
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नई दिल्ली : बचपन में जिस गली में खेल कर बड़े हुए और जहां का आंगन उसकी किलकारियों से गूंजता हो। बड़े होने पर जब उसे पता चले कि अब वह शायद ही उस जगह कभी जा पाएगा। अब तो उसके बचपन का वह आंगन परदेश हो गया है। तब उस व्यक्ति पर क्या बीतेगी और जब वह ऐसे देश के प्रमुख राजनीतिक दलों का प्रमुख नेता हो जाए और फिर उस जगह जाए। मगर जिस देश से वह आया है और जिस देश अर्थात् अपने बचपन के गलियारे में वह पहुंचा है तो चाहकर भी वह उसे अपना नहीं कह पा रहा है तब वह व्यक्ति कैसा अनुभव करेगा।

कुछ इसी दर्द को भोगा है भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने। दरअसल भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री अपने राजनीतिक जीवनकाल में जब पाकिस्तान में स्थित मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर पुष्प अर्पित करने पहुंचे और उन्होंने कथित तौर पर जिन्ना को सेक्युलर कह दिया बस तभी से उनकी लौह पुरूष आभा पर सवाल उठने लगे। अब तक हिंदूत्व का प्रखर शंखनाद करने वाले नेता आडवाणी को हिंदू वोटर्स सर आंखों पर बैठाते थे लेकिन अब उन्हें नकारा जाने लगा। तथाकथित विपक्ष की कैंपेनिंग से आडवाणी संभवतः घिर गए होंगे जिसका परिणाम प्रतिकूल रहा लेकिन संघर्षों के दौर में भी समभाव रखने वाले आडवाणी कहां टूटने वाले थे।

वे फिर अखंड भारत और सशक्त भाजपा के स्वप्न के साथ उठ खड़े हुए और जवान भारत के बीच लोकसभा के लिए चुने गए। ऐसे उर्जावान नेता को भाजपा ने कभी नकार नहीं और भाजपा उनके योगदान को कभी भूला भी नहीं पाएगी। कुछ इसी तरह की बात देश के संदर्भ में भी सामने आती है। भले ही विपक्ष और विरोधी उन पर कितने ही शब्द बाण चला लें।

आरोपों से आहत हुए ये भीष्मपितामह भारत की सेवा के संकल्प के साथ हर बार युवाओं को संदेश देते रहेंगे। यह संदेश हर बार नया और प्रासंगिक होगा। भाजपा के प्रमुख नेता का जन्म 8 नवंबर 1927 को पाकिस्तान के कराची में हुआ था। उनके पिता डी आडवाणी और माता ज्ञानी आडवाणी थीं। इस परिवार को भारत विभाजन की त्रासदी झेलना पड़ी और परिवार विभाजन के बाद भारत आ गया। 25 फरवरी 1965 को उनका विवाह कमला आडवाणी से हुआ।

लालकृष्ण आडवाणी की दो संतानें हुईं। आडवाणी ने लाहौर में अपनी शिक्षा पूरी की। इसके बाद उन्होंने मुंबई के लाॅ काॅलेज से विधि में स्नातक उपाधि प्राप्त की। उनके जीवन पर डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का प्रभाव था। वे वर्ष 1951 मेें जनसंघ की स्थापना से ही पार्टी से जुड़ेे रहे। वे प्रारंभ से 1957 तक जनसंघ के सचिव भी रहे। वर्ष 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद से 1986 तक वे भाजपा के महासचिव रहे।

अयोध्या की श्री राम मंदिर यात्रा को लेकर उन्होेंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली। वे भाजपा के अध्यक्ष पद पर 3 बार काबिज हुए। वे 4 बार राज्यसभा सदस्य और 5 बार लोकसभा सदस्य रहे। लालकृष्ण आडवाणी 1977 से 1979 तक केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल रहे। इसके बाद एनडीए के कार्यकाल में उपप्रधानमंत्री बने। आज भी वे गांधीनगर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के सांसद हैं।

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