छठ पूजा: ऐसे करें छठी मैया को खुश
छठ पूजा: ऐसे करें छठी मैया को खुश
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छठ पूजा हिन्दू धर्म में श्रद्धा, आस्था और पवित्रता का महापर्व है. बिहार और पूर्वांचल में छठ पूजा बहुत उत्साह, आस्था और परंपरा के साथ मनाया जाता है. छठ व्रत दीपावली के छठे दिन मनाया जाता है.  यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक मास में.

कैसे कि जाती है पूजा
छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है. इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है. इस दौरान व्रत करने वाले लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं. इस दौरान वे अन्न तो क्या पानी भी नहीं ग्रहण करते है.
 
नहाय खाय
पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है. इस दौरान पुरे घर की सफाई कर उसे पवित्र बना लिया जाता है. इसके बाद छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं. घर के सभी सदस्य व्रत करने वाले के खाने के बाद ही खाना खाते हैं. भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है. यह दाल चने की होती है.
 
खरना

दूसरे दिन यानी कि कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना के रूप में जाना जाता है. इस दिन व्रत करने वाले लोग दिनभर उपवास रखते है. शाम को में गुड़ से बने हुए चावल की खीर जिसे बखीर कहते है , चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है. इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है. इस दौरान पूरे घर की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है. खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है.

संध्या अर्घ्य (डूबते सूरज की पूजा)

तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को अर्घ्य देने के लिए जल और दूध का इस्तेमाल किया जाता है. छोटे पात्र में जल अथवा दूध लेकर सूर्य भगवान की अस्तुति इन मंत्रो
ऊं एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्य नमोअस्तुते॥

करते हुवे जाप करे और 2 -5 बार सूप की छोर पर जल छोडे और धूप बत्ती दिखाते हुवे अपने और अपनों के सुख और स्वास्थ्य के लिए माँ छठ और भगवान सूर्य से मनोकामना करे.  इसके साथ चढ़ावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ के प्रसाद के रूप में शामिल होता है. सभी छठ का व्रत रखने वाले एक तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं.

सूर्योदय के समय अर्घ्य (उगले सूरज की पूजा)

कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रत रखने वाले फिर वहीं इकट्ठा होते हैं, जहां शाम को अर्घ्य दिया था। फिर पिछले शाम का प्रक्रिया दोहराई जाती है। अंत में कच्चे दूध का शर्बत और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूरा किया जाता है.

व्रत के दौरान सुविधाजनक जीवन का भी त्याग किया जाता है. व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर लेकर ही सोता है. उन्सव में शामिल होने वाले नए कपड़े पहनते हैं, लेकिन व्रत करने वाला बिना सिले कपड़े ही पहनता है. एक बार व्रत शुरू कर लिया तो फिर तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो. घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है.

 

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