गाँधी जयंती : इस स्टेशन पर हुई थी गांधी जी के साथ ऐसी घटना जिसने बदल दिया भारत का इतिहास
गाँधी जयंती : इस स्टेशन पर हुई थी गांधी जी के साथ ऐसी घटना जिसने बदल दिया भारत का इतिहास
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भारत आने वाले 2 अक्टूबर को गांधीजी की जंयती मनाने जा रहा है. एक बार देखने पर दक्षिण अफ्रीका का पीटरमारित्ज़बर्ग रेलवे स्टेशन किसी गुज़रे ज़माने का लगता है. ख़ाली प्लेटफॉर्म, 19वीं सदी की विक्टोरियन स्टाइल की लाल ईंटों वाली इमारत, ज़ंग खा रही जालियां और लकड़ी की बनी टिकट खिड़की, सब कुछ बहुत पुराना सा लगता है. इस मामूली से स्टेशन को देखकर लगता ही नहीं कि यहां एक ऐसी घटना घटी जिसने पुरे भारत के अंग्रेजो से गुलामी के इतिहास को बदलकर रख दिया.

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आइए इस खास मौके पर हम आपको इस वाकिये के बारे में बताने वाले है जी हां इस जगह पर ट्रेन के अंग्रेज़ कंडक्टर ने गांधी को निचले दर्जे के मुसाफ़िरों के डब्बे में जाने को कहा,जब गांधी ने कंडक्टर को अपना पहले दर्जे का टिकट दिखाया, तो भी वो माना नहीं और मोहनदास गांधी को बेइज़्ज़त कर के ट्रेन से ज़बरदस्ती उतार दिया. पीटरमारित्ज़बर्ग के प्लेटफॉर्म पर लगी एक तख़्ती ठीक उस जगह को बताती है, जहां पर गांधी को ट्रेन से धक्का देकर उतारा गया था. तख़्ती पर लिखा है कि, 'उस घटना ने महात्मा गांधी की ज़िंदगी का रुख़ मोड़ दिया. महात्मा गांधी ने वो सर्द रात पीटरमारित्ज़बर्ग के वेटिंग रूम में गुज़ारी थी, जहां पर गर्मी से बचने के लिए कोई इंतज़ाम नहीं था. इस घटना का ज़िक्र करते हुए गांधी ने अपनी आत्मकथा, 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' में लिखा है कि, 'मेरे संदूक़ में मेरा ओवरकोट भी रखा था. लेकिन मैंने इस डर से अपना ओवरकोट नहीं मांगा कि कहीं मुझे फिर से बेइज़्ज़त न किया जाए. महात्मा गांधी बम्बई से 1893 में वकालत करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीय मूल के एक कारोबारी की कंपनी के साथ एक साल का क़रार किया था. ये कंपनी ट्रांसवाल इलाक़े में मौजुद थी.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि ट्रांसवाल दक्षिण अफ्रीका का वो इलाक़ा था, जहां 17वीं सदी में डच मूल के लोगों ने आकर क़ब्ज़ा जमा लिया था.असल में ब्रिटेन ने ट्रांसवाल के दक्षिण में स्थित केप कॉलोनी को हॉलैंड के उपनिवेशवादियों से छीन लिया था, जिसके बाद वो मजबूर हो गए कि यहां आकर बस गए. गांधी के वहां पहुंचने से काफ़ी पहले से ट्रांसवाल में भारतीयों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही थी. 1860 में भारत सरकार के साथ हुए करार के तहत ट्रांसवाल की सरकार ने वहां भारतीयों को एक शर्त पर आकर बसने में मदद करने का वादा किया. शर्त ये थी कि भारतीय मूल के लोगों को वहां के गन्ने के खेतों में बंधुआ मज़दूरी करनी होगी. लेकिन, मज़दूरी का वक़्त गुज़ार लेने पर भी भारतीय मूल के लोगों को समाज के अन्य वर्गों से मेल-जोल करने नहीं दिया जाता था. उन्हें बाहरी माना जाता था. गोरों की अल्पसंख्यक सरकार, भारतीयों पर ज़्यादा टैक्स लगाती थी. दक्षिण अफ्रीका पहुंचते ही महात्मा गांधी को नस्लीय भेदभाव का शिकार होना पड़ा. प्रिटोरिया जाने के सफ़र की घटना से पहले गांधी के साथ एक और घटना डरबन में हुई थी. जब एक अदालत में जज ने उनसे पगड़ी उतारने को कहा, तो वो अदालत से बाहर आ गए थे. 

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