जब आधार ने मूक बधिर बच्चे को परिवार से मिलवाया
जब आधार ने मूक बधिर बच्चे को परिवार से मिलवाया
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उत्तर प्रदेश : आधार कार्ड केवल अपना पहचान पत्र और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने का माध्यम ही नहीं है, बल्कि मुसीबत में पड़े इंसान के लिए मददगार भी साबित होता है.ऐसा ही एक मामला यूपी का सामने आया है, जहाँ चार माह से गुम हुए एक 15 वर्षीय मूक बधिर किशोर को आधार ने उसके परिवार तक पहुंचा दिया.

दरअसल हुआ यूँ कि हरदोई के बेनीगंज इलाक़े में चार महीने पहले द्रोण शुक्ला नामक व्यक्ति को पंद्रह साल का एक मूक बधिर बालक रोता हुआ मिला था.उसके पास पहचान का कोई दस्तावेज़ भी नहीं था जिससे उसकी पहचान हो सके.यह देखकर द्रोण शुक्ला उसे अपने घर ले आए और वह घर के अन्य सदस्यों के साथ वहां रहने लगा.

बता दें कि संयोग देखिए की एक दिन द्रोण शुक्ला अपने परिवार के कुछ सदस्यों का आधार कार्ड बनवाने के लिए पास के केंद्र पर गए तो उस मूक बधिर बालक को भी साथ ले गए. यहीं से उस बच्चे के बिछड़े माँ-बाप से मिलने की कहानी शुरू हो गई. आधार कार्ड केंद्र की संचालिका नेहा मंसूरी ने बताया कि बच्चे की जानकारी तो कुछ थीं नहीं. इसलिए द्रोण शुक्ला के ही पते पर आधार कार्ड बनाने के लिए इसका फिंगर प्रिंट लिया, ताकि यह पता लग सके कि कहीं इसका आधार कार्ड किसी दूसरी जगह पर तो नहीं बना है. तीन-चार दिन बाद पता चला कि इस बच्चे का आधार कार्ड नितेश के नाम से बना हुआ है. लेकिन उसमें कोई मोबाइल नंबर नहीं लिखा था. फिर उस पते पर एक चिट्ठी भेजी और साथ में अपना नंबर दिया कि यदि यह बच्चा उनका हो तो संपर्क करें.

उधर, जब यह चिट्ठी बिहार के पश्चिमी चंपारण के रहने वाले झगड़ू यादव को मिली तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. वे पिछले चार माह से अपने खोए बेटे नितेश की तलाश कर रहे थे. झगड़ू यादव ने नेहा मंसूरी को फ़ोन किया और जब दोनों लोगों को इत्मिनान हो गया कि ये बालक नितेश ही है और ये झगड़ू का ही बेटा है तो उन लोगों ने झगड़ू यादव को हरदोई बुलाया और स्थानीय पुलिस की मौजूदगी में नितेश को सौंप दिया.

उस दिन को याद करते हुए दिहाड़ी मजदूर झगड़ू ने बताया कि वो मजदूरी करने शाहजहांपुर गए थे जहाँ से 6 -7 दिन बाद नितेश किसी काम से बाहर गया और फिर शायद वो अपना घर भूल गया. हमने भी बहुत ढूंढ़ा लेकिन नहीं मिला तो थक हार कर वापस बिहार चले गए. वे अपने बेटे के मिलने की उम्मीद खो चुके थे.अब बच्चा मिलने के बाद वे बहुत खुश हैं. आधार कार्ड ने उनके खोए बेटे से मिलवा दिया.

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