दूसरों की आज़ादी का ख़याल रखना ही है सबसे बड़ी 'आज़ादी'
दूसरों की आज़ादी का ख़याल रखना ही है सबसे बड़ी 'आज़ादी'
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वैसे तो हम 15 अगस्त 1947 को ऑफिशियली आज़ाद हो चुके है, लेकिन क्या वास्तव में आज हम आज़ाद है? हालाँकि ये प्रश्न पूछने वालो की बड़ी संख्या देश में ही मौजूद है. क्योकि एक गरीब की आज़ादी, एक अमीर की आज़ादी, एक दलित की आज़ादी, एक औरत की आज़ादी अलग-अलग हो सकती है.

हालाँकि जब हमारे देश में स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ तो हमारी प्राथमिकता सिर्फ अग्रेजों से आज़ादी हासिल करना था, लेकिन आज हम 70 सालों से आज़ाद है तो कहने का मतलब यही है की हर दौर में आज़ादी के मायने बदले है. लेकिन आप कितने आज़ाद हो ये तभी पता चलेगा जब कोई आपकी आज़ादी छीन रहा हो.

पिछले कुछ सालों से सोशल मीडिया ने देश में कुछ ऐसे लोगों को भी प्लेटफार्म दिया है जो अपनी बात खुल कर रख रहे है और जमकर नफरत का ज़हर फैला रहे है. लेकिन उन लोगों को समय रहते संभल जाना चाहिए की देश देश में नफ़रत का बीज बोकर आप चैन की नींद नहीं सो सकते.

बेशक देश में कुछ लोग है जो घटिया राजनीति करके अपनी रोटियां सेक रहे है लेकिन उनको भी जान लेना चाहिए की आपको सत्ता पर बिठाने वाली भी जनता है और उतारने वाली भी जनता ही होगी. आज के समय में आज़ादी का मतलब यही है कि आपके रहते...आपके साथ कोई आज़ाद महसूस कर पाए वही सबसे बड़ी आज़ादी है.

 

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