महात्मा गांधी के इस आंदोलन ने, कर दिए थे अंग्रेजों के दाॅंत खट्टे!
महात्मा गांधी के इस आंदोलन ने, कर दिए थे अंग्रेजों के दाॅंत खट्टे!
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कहा जाता है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। ठीक उसी तरह से परिवर्तन की चाहत क्रांति की जन्मदात्री होती है। जी हाॅं, इतिहास में कई क्रांतियाॅं वर्णित हैं। इन क्रांतियों के चलते बड़े परिवर्तन हुए। भारत जब ब्रिटिश राज के अधीन था। भारत को ब्रिटेन का उपनिवेश कहा जाता था।

ऐसे समय में भारत में कुछ महान विभूतियाॅं हुई थीं। इन लोगों ने अपना जीवन और दमखम राष्ट्र को ब्रिटिश दासता से मुक्त करने में लगा दिया। ऐसे ही लोगों में एक थे मोहनदास करमचंद गांधी। जिन्हें बाद में महात्मा गांधी और देश का राष्ट्रपिता कहा गया। यूॅं तो महात्मा गांधी आधुनिक जीवन में भी लोगों को हर पड़ाव पर याद आते हैं। दरअसल महात्मा गांधी के संदेश इतने प्रासंगिक थे जो आमजन के लिए तक बेहद महत्वपूर्ण हैं। इन संदेशों को विस्तार से महात्मा गांधी की पुस्तक हिंद स्वराज में देखा जा सकता है।

हालांकि अगस्त माह में महात्मा गांधी को याद करने का कुछ और प्रयोजन है। दरअसल उन्हें अगस्त क्रांति को लेकर याद किया जाता है। अगस्त क्रांति वह क्रांति है जिसने विश्व युद्ध के बाद भी भारत को अपनी दासता से मुक्त न रखने की चाहत रखने वाले ब्रिटेन के प्रशासकों को बता दिया था कि अब भारत पर महारानी विक्टोरिया का शासन अधिक दिन चलने वाला नहीं है।

अंग्रेजी सत्ता की जड़ें इस आंदोलन ने कमजोर कर दी थीं। यह आंदोलन इतिहास का एक महत्वपूर्ण और बड़ा आंदोलन बन गया। भारत से द्वितीय विश्व युद्ध में समर्थन लेने के बाद भी ब्रिटिश रूलर्स भारत को स्वाधीन करने के लिए तैयार नहीं हुए। ऐसे में महात्मा गांधी ने जनजन के मन में वैचारिक मशाल जला दी। देश के हर कोने से आवाज़ आने लगी। महात्मा गांधी की जय, अंग्रेजों भारत छोड़ो। इन्कलाब ज़िन्दाबाद। अंग्रेजों भारत छोड़ो। आखिर यह अंग्रेजों भारत छोड़ो क्या था।

4 जुलाई 1942 के दिन एक प्रस्ताव सामने आया जिसमें यह बताया गया कि भारत से अंग्रेजों को जाना होगा। अंग्रेज भारत को स्वाधीन करें। यदि ऐसा नहीं किया गया तो फिर एक व्यापक आंदोलन होगा। 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव को पारित किया। इसके बाद 9 अगस्त 1942 को मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान में एक आंदोलन का प्रारंभ हुआ। यह आंदोलन जनआंदोलन बन गया। देश के कोने कोने से अंग्रेजों भारत छोड़ो की आवाज़ आने लगी थी।

हालांकि कांग्रेस में इस तरह के आंदोलन के प्रस्ताव को लेकर विवाद हो गया और कई अहम नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। जिसमें चक्रवर्ती राजगोपालाचारी तक शामिल थे। मगर महात्मा गांधी के प्रभाव के आगे नेताओं को इस आंदोलन से जुड़ना पड़ा। बड़े पैमाने पर लोग महात्मा गांधी के साथ और उनके पीछे पीछे चले आए। इस आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने को लेकर अंग्रेज नाराज हो गए और उन्होंने महात्मा गांधी को पुणे के आगा खान पैलेस में बंद कर दिया।  कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को अहमदनगर के किले में बंद कर दिया गया।

बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाॅं हुईं। महात्मा गांधी के गिरफ्तार हो जाने के बाद देशभर में कई लोगों को पकड़ा गया। भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव बहुत रहा। लोग इस आंदोलन से बड़े प्रभावित हुए और इससे जुड़ गए। महात्मा गांधी ने इस आंदोलन के दौरान 21 दिन की भूख हड़ताल की। मगर 1944 में महात्मा गांधी का स्वास्थ्य खराब हो गया और अंग्रेजों ने उन्हें छोड़ दिया। हालांकि 1944 में प्रारंभिक समय में ही अंग्रेजों ने विपरीत स्थितियों को नियंत्रित कर लिया था। मगर आंदोलन का प्रभाव जनजन में हो गया।

हालांकि अहिंसा के मार्ग से आंदोलन करने वाले महात्मा गांधी इसमें होने वाली हिंसा को नहीं रोक सके। बड़े पैमाने पर सरकारी इमारतें जलाई गईं, विद्युत प्रदाय प्रभावित हुआ और कई बार अंग्रेजों की संचार सुविधाओं को रोक दिया गया। इस आंदोलन में रेल और परिवहन के अन्य साधनों को रोका गया।

आंदोलन के कारण पूरी तरह से अंग्रेज परेशान हो गए। ब्रिटिश राज की जड़ें भारत में कमजोर हो गईं और वे जनआंदोलन से डर गए। भारतीय अवाम के जागृत होने का उन्हें अहसास हुआ। इस आंदोलन को लेकर यदि कहा जाए कि साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। अगस्त क्रांति से मजबूत हुई आजादी की मशाल।। तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

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