गोकुल के गोविंदा से सीखें मैनेजमेंट के ये फंडे
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मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर द्वापर युग में जन्म लिया था। मगर कलियुग में भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। जी हाॅं, आखिर भगवान श्रीकृष्ण का जीवन चरित्र और श्रीमद्भगवत् गीता में समाए हुए उनके वचन इतने महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं कि लोग श्रद्धा से उनके आगे सिर झुकाते हैं। यदि हम श्रीमद्भगवत् गीता के प्रत्येक अध्याय पर नज़र डालें और उसे पढ़ें तो हमें आधुनिक दौर के लिए एक बेहतर मैनेजमेंट विज़न मिलता है जिस पर चलकर हम प्रोफेशनल बेनिफिट तो गैन कर ही सकते हैं साथ ही आत्मिक शांति और सुख भी हमें मिल सकता है। श्रीमद्भगवत् गीता का सार कहता है।

क्यों व्यर्थ चिंता करते हो क्यों व्यर्थ किससे डरते हो

यह उक्ति सत्य चरितार्थ होती है। यदि हम चिंता छोड़कर काम पर ध्यान देंगे तो काम बेहतर तरीके से होगा। चिंता में मग्न रहने या उसी के बारे में सोचने पर हम विषाद, दुख में डूब जाऐंगे ऐसे में न तो हमें परेशानी का समाधान मिलेगा और न ही चिंता से निजात साथ ही हमारा काम भी पूरा नहीं हो पाएगा। ऐसे में चिंता छोड ़कर आगे बढ़ना ही उचित होगा।

यथार्थ में जीऐं

श्रीमद्भगवत गीता कहती है कि सदैव यथार्थ में जीना चाहिए। यही बात भगवान श्रीकृष्ण युद्ध भूमि में खड़े अर्जुन को बताते हैं। यथार्थ अर्थात् जो जैसा है वैसा ही उसे समझा जाए। इसका व्यापक अर्थ हुआ कि तत्व की वास्तविकता और सत्य को आत्मसात किया जाए। यदि हम अन्य लोगों को उसी अनुरूप लेंगे और उनके साथ व्यवहार करेंगे जो वे यथार्थ में हैं तो हमें परेशानी नहीं होगी। यदि हम दिखावटी तरह से उनके सामने पेश आऐंगे तो संभवतः उनके सामने हमारा प्रभाव तो होगा मगर वह क्षणिक होगा और फिर बाद में हमें दुख ही होगा। साथ ही सत्य को सामने रखने से हमें बाद में परेशानी नहीं होती। सत्य किसी भी डर से परे होता है।

कर्म करें फल की इच्छा न करें

यदि हम केवल कर्म करें और फल की इच्छा न करें तो फिर हमारा सारा कर्म अच्छा होगा और बेहतर तरह से होगा। उस कर्म का फल तो निश्चित है ही। ऐसा कर हम अपने कार्य पर ही ध्यान दे सकेंगे। जबकि हम फल के बारे में सोचेंगे तो उस कार्य में सामने आने वाली नकारात्मकता और असफलताओं की ओर हमारा अधिक ध्यान जाएगा ऐसे में आपका कोई भी कार्य हो वह असफल हो सकता है। या अधूरा रह सकता है।

अकर्म करना या निष्काम कर्म योग

भगवान श्रीकृष्ण एक बहुत महान योगी थे। उन्होंने जीवन में योग सिद्धांत को महत्व दिया है। उनका कहना था कि सकाम कर्म से निष्काम कर्म बहुत बेहतर है। निष्काम कर्म का आशय है कि स्वयं को अकर्ता मान लेना। अर्थात जो कर्म हम कर रहे हैं उसे ईश्वर को समर्पित कर देना और यह मान लेना कि मैं केवल माध्यम या निमित्त हूॅं, मैं कुछ नहीं करता हूॅं जो करता है वह ईश्वर करता है। तो आपका काम बेहतर होगा। ऐसे में आप अपने काम को तल्लिनता से और श्रद्धा से करेंगे। जब श्रद्धा आपके साथ होगी तो आपमें आत्मबल विकसित होगा जो कि आपके कार्य में आपको सफलता दिलवाएगा।

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