महिला आरक्षण: संसद में किया पूरा समर्थन, अब 21 महिलाओं को आगे कर इसकी खामियां गिनाएगी कांग्रेस, दोहरे  रवैये पर सवाल?
महिला आरक्षण: संसद में किया पूरा समर्थन, अब 21 महिलाओं को आगे कर इसकी खामियां गिनाएगी कांग्रेस, दोहरे रवैये पर सवाल?
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नई दिल्ली: देश की सबसे पुरानी और सबसे अधिक समय तक शासन करने वाली पार्टी कांग्रेस ने ऐलान किया है कि वह आज यानी सोमवार (25 सितंबर) को 21 शहरों में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी, जिसमें पार्टी की 21 महिला नेता महिला आरक्षण के मुद्दे पर "मोदी सरकार को बेनकाब" करेंगी। कांग्रेस ने जानकारी दी है कि, सांसद रजनी पाटिल अहमदाबाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगी, वहीं महिला कांग्रेस इकाई की प्रमुख नेट्टा डिसूजा हैदराबाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगी।

रंजीत रंजन भुवनेश्वर में मीडियकर्मियों को सम्बोधित करेंगी, वहीं आम आदमी पार्टी (AAP) से कांग्रेस में आईं अलका लांबा जयपुर में पार्टी के लिए बोलेंगी। अमी याग्निक मुंबई में प्रेस वार्ता करेंगी, रागिनी नायक रांची में और शमा मोहम्मद श्रीनगर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगी। कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा कि 21 महिला नेताओं द्वारा 21 शहरों में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जाएंगी। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि, "एजेंडा- महिला आरक्षण के नाम पर मोदी सरकार के विश्वासघात को उजागर करना।"

महिला आरक्षण में कब-क्या हुआ ?

इस विधेयक को पहली बार सितंबर 1996 में तत्कालीन प्रधान मंत्री देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार द्वारा 81वें संशोधन विधेयक के रूप में लोकसभा में पेश किया गया था। विधेयक सदन की मंजूरी पाने में विफल रहा और इसे एक संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया जिसने दिसंबर 1996 में लोकसभा को अपनी रिपोर्ट सौंपी। हालांकि, लोकसभा के विघटन के साथ विधेयक समाप्त हो गया। 1998 में, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने 12 वीं लोकसभा में विधेयक को फिर से पेश किया। तत्कालीन कानून मंत्री एम थंबीदुरई द्वारा इसे पेश करने के बाद, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के एक सांसद सदन के वेल में चले गए, बिल के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। विधेयक को समर्थन नहीं मिला और यह फिर से निरस्त हो गया। इसे अटल सरकार के दौरान 1999, 2002 और 2003 में फिर से पेश किया गया था। हालांकि कांग्रेस, भाजपा और वामपंथी दलों के भीतर इसका समर्थन था, लेकिन बिल बहुमत वोट प्राप्त करने में नाकाम रहा। 

2008 में, तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने विधेयक को राज्यसभा में पेश किया। इसे 9 मार्च, 2010 को 186-1 वोटों के साथ पारित किया गया था। लेकिन, इस बिल को लोकसभा में कभी विचार के लिए नहीं रखा गया और 15वीं लोकसभा के विघटन के साथ यह समाप्त हो गया। उस समय, लालू यादव की RJD, जनता दल (यूनाइटेड) और समाजवादी पार्टी (सपा) इसके सबसे मुखर विरोधी थे। उन्होंने महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत कोटा के भीतर पिछड़े समूहों के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग की। इस तरह यह बिल बीते 27 वर्षों से लंबित था। 

मोदी सरकार ने क्या किया और कांग्रेस का क्या रुख रहा ?

18 से 22 सितंबर तक बुलाए गए संसद के विशेष सत्र से एक दिन पहले यानी 17 सितंबर को मोदी सरकार ने कैबिनेट मीटिंग बुलाई और इस विधेयक को मंजूरी दे दी। इसके बाद महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने वाले इस विधेयक को संसद में पेश किया गया। लोकसभा में 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' पक्ष में 454 वोट और विरोध में दो वोट पड़े। आरक्षण का विरोध करने वाले दो सांसद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) से थे, असदुद्दीन ओवैसी और इम्तियाज़ जलील। ये दोनों सांसद, महिला आरक्षण में मुस्लिम महिलाओं के लिए अलग से कोटा देने की मांग कर रहे थे। वहीं, राज्यसभा में महिला आरक्षण के विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा, क्योंकि राज्यसभा में AIMIM का कोई सांसद नहीं है और बाकी सभी पार्टियों के तमाम सांसदों ने इस बिल का समर्थन किया तथा इसके पक्ष में वोट डाला। इसके बाद राज्यसभा में कांग्रेस की प्रमुख नेता सोनिया गांधी ने तो यहाँ तक कहा कि, ये बिल राजीव गांधी का सपना था और ये हमारा यानी कांग्रेस का बिल है। लोकसभा में सोनिया गांधी ने कहा कि, ''कांग्रेस पार्टी इस बिल का समर्थन करती है। इस बिल के पारित होने से हमें खुशी है।'' हालाँकि, कांग्रेस द्वारा इसका श्रेय लेने पर कुछ विरोधियों ने ये भी कहा था कि,यदि आप महिला आरक्षण लागू करना चाहते थे तो 2004 से 2014 तक आपकी सरकार रही, तब आपने ऐसा क्यों नहीं किया ? 

संसद में महिला आरक्षण का समर्थन, तो अब प्रेस वार्ता में विरोध क्यों?

ऊपर के घटनाक्रमों में आपने देखा कि, सभी सांसदों (2 को छोड़कर) ने पहली बार एकजुट होकर सरकार द्वारा लाए गए किसी बिल का समर्थन किया, जिसमे कांग्रेस भी शामिल थी। दोनों सदनों में नारी शक्ति वंदन अधिनियम पर घंटों तक चर्चा हुई, लेकिन तब भी किसी ने सरकार का विरोध नहीं किया, यदि कोई विरोध था तो संसद में किया जाना था। लेकिन वहां कांग्रेस ने इसका श्रेय लेने की पूरी कोशिश की और महिला आरक्षण को कांग्रेस की पहल बताया। दिलचस्प ये है कि, आज वही पार्टी देशभर में 21 स्थानों पर 21 महिला नेताओं को आगे कर महिला आरक्षण पर मोदी सरकार को बेनकाब करने जा रही है। लेकिन सवाल ये है कि, कांग्रेस को संसद में मोदी सरकार को बेनकाब करने से किसने रोका था ? जब घंटों तक बिल पर चर्चा चली, तब ये काम किया जा सकता था। या फिर अब चुनावी राजनीति के तहत सरकार को घेरने के लिए महिला आरक्षण की आड़ ली जा रही है ?  बहरहाल, ये देखना भी दिलचस्प होगा कि आज प्रेस वार्ताओं में कांग्रेस की महिला नेता क्या दलीलें देती हैं, जो पार्टी संसद में नहीं दे सकी ?

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