चंबल के बीहड़ों में सबसे ख़तरनाक डाकू मानी जाती थीं फूलन देवी
चंबल के बीहड़ों में सबसे ख़तरनाक डाकू मानी जाती थीं फूलन देवी
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फूलन देवी 1980 के दशक के शुरुआत में चंबल के बीहड़ों में सबसे ख़तरनाक डाकू मानी जाती थीं। इनका जन्म 10 अगस्त 1963 को  उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव गोरहा में हुआ था यहाँ वह अपने मां-बाप और बहनों के साथ रहती थी। कानपुर के पास स्थित इस गांव में फूलन के परिवार को मल्लाह होने के चलते ऊंची जातियों के लोग घृणा की दृष्टि से देखते थे। इनके साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया जाता था। और फूलन के पिता की सारी जमीन उसके भाई के साथ झगड़े में छिन ली गई थी। और ऐसे ही जमीन को वापिस छुड़ाने में सारी कमाई चली जाती थी।

जब फूलन 11 साल की हुई, तो उसके चचेरे भाई मायादिन ने उसको गांव से बाहर निकालने के लिए उसकी शादी पुट्टी लाल नाम के बूढ़े आदमी से करवा दी। फूलन के पति ने शादी के तुरंत बाद ही उसका बलात्कार किया और उसे प्रताडित करने लगा। परेशान होकर फूलन पति का घर छोड़कर वापस अपने मां-बाप के पास आकर रहने लगी। अब यहां पर फूलन ने अपने परिवार के साथ मजदूरी करना शुरू कर दिया। एक बार तो जब एक आदमी ने फूलन को मकान बनाने में की गई मजदूरी का मेहनताना देने से मना कर दिया, तो उसने रात को उस आदमी के मकान को ही कचरे के ढेर में बदल दिया। और यहीं से लोगों को फूलन के विद्रोही स्वभाव के नजारे देखने को मिले।

एक बार गांव के दबंगों ने एक दस्यु गैंग को कहकर फूलन का अपहरण करवा दिया। बस यहीं से शुरू हुआ फूलन के डकैत बनने की कहानी और उसने 14 फ़रवरी 1981 को बहमई में 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दी। इस घटना ने फूलन देवी का नाम बच्चे की ज़ुबान पर ला दिया था। फूलन देवी का कहना था उन्होंने ये हत्याएं बदला लेने के लिए की थीं। उनका कहना था कि ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था जिसका बदला लेने के लिए ही उन्होंने ये हत्याएं कीं।

काफी समय के चलते चंबल के बीहड़ों में पुलिस और ठाकुरों से बचते-बचते शायद वह थक गईं थीं इसलिए उन्होंने हथियार डालने का मन बना लिया। लेकिन आत्मसमर्पण का भी रास्ता इतना आसान नहीं था। फूलन देवी को शक था कि यूपी पुलिस उन्हें समर्पण के बाद किसी ना किसी तरीक़े से मार देगी इसलिए उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के सामने हथियार डालने के लिए सौदेबाज़ी की। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने फूलन देवी ने एक समारोह में हथियार डाले और उस समय उनकी एक झलक पाने के लिए हज़ारों लोगों की भीड़ जमा थी। 1994 में जेल से रिहा होने के बाद वे 1996 में सांसद चुनी गईं। समाजवादी पार्टी ने जब उन्हें लोक सभा का चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया तो काफ़ी हो हल्ला हुआ कि एक डाकू को संसद में पहुँचाने का रास्ता दिखाया जा रहा है। वह दो बार लोकसभा के लिए चुनी गईं। लेकिन 2001 में केवल 38 साल की उम्र में दिल्ली में उनके घर के सामने फूलन देवी की हत्या कर दी गई थी।

1994 में उनके जीवन पर शेखर कपूर ने 'बैंडिट क्वीन' नाम से फ़िल्म बनाई जिसे पूरे यूरोप में ख़ासी लोकप्रियता मिली। फिल्म अपने कुछ दृश्यों और फूलन देवी की भाषा को लेकर काफ़ी विवादों में भी रही।

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