वैलेंटाइन डे पर जानिए भारत की सबसे अनमोल और अनोखी श्री कृष्णा और मीरा की प्रेमकहानी
वैलेंटाइन डे पर जानिए भारत की सबसे अनमोल और अनोखी श्री कृष्णा और मीरा की प्रेमकहानी
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आज दुनियाभर में वैलेंटाइन डे मनाया जा रहा हैं और यह दिन कपल्स के लिए ख़ास माना जाता हैं। यह दिन लव कपल्स के लिए विशेष होता है। ऐसे में आज हम बताने जा रहे है श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की प्रेम कहानी... बता दें कि मीराबाई अपनी भक्ति और प्रेम के लिए जानी जाती हैं। ऐसे में आइये बताते है श्रीकृष्ण और मीरा की अनोखी प्रेम कहानी...

मीरा भगवान श्रीकृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थीं- आपको बता दें कि मीराबाई का जन्म 1498 में राजस्थान के एक राजपूत घराने में हुआ था। वहीं उनके पिता का नाम रतन सिंह और मां का नाम वीर कुमारी था। आरम्भ से ही मीरा भगवान श्रीकृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थीं तथा जब वह 4 वर्ष की थी तब उन्होंने अपने घर के पास हो रहे एक विवाह को देखकर बेहद मासूमियत के साथ अपनी मां से पूछा था कि उनका दूल्हा कौन होगा? मीरा के इस प्रश्न पर उनकी मां ने श्रीकृष्ण की प्रतिमा की ओर इशारा करते हुए कहा था कि वही उनके वर होंगे। इसके बाद से ही मीरा श्रीकृष्ण को अपना पति मानकर उनके प्रेम में खो गईं। कहा जाता हैं जब मीरा बड़ी हुईं तो उनके मन में ये विश्वास था कि श्रीकृष्ण उनसे शादी जरूर करेंगे। वहीं मीरा बहुत ही खूबसूरत थीं और स्वभाव से बहुत ही शांत थीं। इसी के साथ उनकी आवाज बहुत अच्छी थी और वह मधुर आवाज में गाना गाती थीं किन्तु मीरा की शादी मेवार के महाराणा सांगा के पुत्र राणा सांगा से कर दी गई। उस समय मीरा ये शादी नहीं करना चाहती थीं मगर परिवार के जोर देने पर उन्हें ये शादी करनी पड़ी थी। कहा जाता हैं शादी के बाद भी मीरा का प्रेम कृष्ण के लिए बिल्कुल भी कम नहीं हुआ। वहीं अपनी विदाई के वक़्त श्रीकृष्ण की वही प्रतिमा मीरा अपने साथ लेकर गईं, जिसे उनकी मां ने उनका दूल्हा बताया था। तत्पश्चात, मीरा ससुराल के कामकाज पूरे करने बाद रोज कृष्ण के मंदिर जाया करती थीं और वहां जाकर वह श्रीकृष्ण की प्रतिमा की पूजा करती थीं। उनके लिए मधुर आवाज में भजन भी गाती थीं। मीरा का कृष्ण के लिए ये प्रेम उनके ससुराल वालों को बिल्कुल पसंद नहीं था तथा उनकी सास ने उन्हें दुर्गा मां की आराधना करने पर जोर दिया क्योंकि उनके ससुराल के लोग दुर्गा देवी की पूजा अर्चना करते थे मगर मीरा ने ऐसा नहीं किया। उस दौरान उन्होंने ससुराल वालों से साफ कह दिया कि वह पहले ही अपना जीवन श्रीकृष्ण के नाम कर चुकी हैं। फिर मीरा के ससुराल वालों ने उन्हें बदनाम करने का प्रयास किया एवं मीरा की ननद उदाबाई ने अपने भाई राणा से कहा कि ''मीरा का किसी के साथ प्रेम संबंध है एवं उसने मीरा को उस व्यक्ति के साथ देखा है।'' ये सुनकर राणा बेहद क्रोधित हुए और आधी रात को ही बहन उदाबाई के साथ मंदिर जा पहुंचें।

मंदिर पहुंच कर उन्होंने मीरा को कृष्ण की प्रतिमा के साथ अकेले ही बाते करते हुए देखा। यह दृश्य देखने के बाद वह गुस्से से चिल्लाए और मीरा को आदेश दिया कि वह जिस प्रेमी से आधी रात में बातें करती हैं उसे सामने लेकर आए। इसके जवाब में मीरा ने श्रीकृष्ण की प्रतिमा की तरफ इशारा कर कहा कि वही मीरा के स्वामी हैं। उनके मीरा का विवाह हो चुका है। यह सुनने के पश्चात् राणा का दिल टूट गया। मीरा के देवर विक्रमादित्य को चितौड़गढ़ के नए राजा के रूप में चुना गया था। उनको कृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति और लोगों के साथ मीरा का मेल जोल बिल्कुल पसंद नहीं था। बोला जाता हैं उन्होंने मीरा को मारने के लिए फूलों के हार की एक टोकरी भेजी, जिसके अंदर जहरीला सांप रखा था। मीरा ने जैसे ही टोकरी खोल कर देखी तो उसमें श्रीकृष्ण की एक खूबसूरत प्रतिमा फूलों के हार के साथ मौजूद थी। तत्पश्चात, विक्रमादित्य ने मीरा को मारने के लिए प्रसाद में भी जहर मिलाया। मीरा जानती थीं कि उस प्रसाद में जहर है फिर भी मीरा ने वह जहरीला प्रसाद ग्रहण कर लिया क्योंकि उन्हें विश्वास था कि श्रीकृष्ण उनको जहर से बचा लेंगे। वही जब मीरा को मारने की कोशिशें हद से ज्यादा बढ़ गईं तो मीरा ने तुलसीदास को एक खत लिखकर उनसे इस बारे में राय मांगी। इसके बाद तुलसीदास ने जवाब में लिखा कि उन्हें त्याग दो, जो तुम्हें नहीं समझ सकते हैं। भगवान के लिए प्रेम ही सच्चा प्रेम होता है दूसरे रिश्ते झूठे होते हैं। मीरा का जीवन उस वक़्त पूरी तरह बदल गया जब अकबर और तानसेन वेश बदलकर मीरा के गाने सुनने चित्तौड़गढ़ के मंदिर आ पहुंचे। उन्होंने मीरा के पवित्र चरण छूकर कीमती हीरे-मोतियों की माला कृष्ण की प्रतिमा के आगे रख दी। जैसे ही राणा को ये खबर प्राप्त हुई वह बेहद क्रोधित हो गए, जिसके बाद उन्होंने गुस्से से मीरा को कहा कि जाकर डूब मरो और जीवन में कभी भी अपना चेहरा मत दिखाना। तुम्हारी वजह से मेरी और मेरे परिवार की बहुत बदनामी हो चुकी है। तुमने हमें लांछित कर दिया है।

तत्पश्चात, मीरा ने राणा की कही बातों का पालन किया और वह गोविंदा, गिरधारी, गोपाल जपत-जपते कृष्ण के ख्यालों में नाचते और गीत गाते हुए नदी की ओर बढ़ने लगीं। जैसे ही मीरा ने नदी में कूदने की कोशिश की पीछे से किसी ने उनके हाथ को थाम लिया और वह गिरने से बच गईं। मीरा ने मुड़कर देखा तो अपने प्रेमी श्रीकृष्ण को पाया और कृष्ण को अपने पास देखकर मीरा को भरोसा नहीं हुआ और वह कृष्ण की गोद में बेहोश होकर गिर पड़ीं। कहा जाता हैं इसके बाद कृष्ण ने मीरा के कान में कहा- 'मेरी प्यारी मीरा, तुम्हारा जीवन नश्वर रिश्तेदारों के साथ समाप्त हो चुका है। अब तुम आजाद हो। खुश रहो। तुम मेरी हो और हमेशा मेरी ही रहोगी।' इस घटना के बाद मीरा वृंदावन चली गईं। मीरा के वृंदावन चले जाने पर राणा ने वहां जाकर उनसे माफी मांगी और साथ चलने को कहा लेकिन मीरा ने साफ मना कर दिया। और उन्होंने कहा कि उनका जीवन श्रीकृष्ण से जुड़ा है। ये सुनने के बाद पहली बार राणा कृष्ण के प्रति मीरा के प्रेम की भावना को समझे और वृंदावन से लौट गए। वहीं कुछ वक़्त पश्चात् मीरा भी मेवाड़ गेन और अपने पति राणा से विनती की कि वह उन्हें कृष्ण के मंदिर में रहने की इजाजत दें। कहते हैं जन्माष्टमी के पर्व पर द्वारका में कृष्ण के मंदिर में मीरा कृष्ण से कहती हैं कि 'ओ गिरधारी क्या आप मुझे बुला रहे हैं, मैं आ रही हूं।' मीरा को ये कहते सुन राणा और वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह जाते हैं। उसके बाद कृष्ण को पुकारते ही मीरा में एक तरह का प्रकाश उत्पन्न हुआ और मंदिर के कपाट खुद से बंद हो गए। वहीं जब कपाट खुलते हैं तो मीरा की साड़ी कृष्ण भगवान की मूर्ति पर लिपटी हुई होती है मगर मंदिर में मीरा नहीं होती सिर्फ मीरा और उनकी बांसुरी की आवाज सुनाई देती है। कहते हैं कि मीरा कृष्ण की प्रतिमा में ही समा गई थीं।

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