आज है उत्पन्ना एकादशी, जानिए व्रत विधि, शुभ मुहूर्त और कथा
आज है उत्पन्ना एकादशी, जानिए व्रत विधि, शुभ मुहूर्त और कथा
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आप सभी को बता दें कि आज एकादशी है और इस दिन के व्रत की बड़ी महिमा कही है. ऐसे में हर महीने में 2 बार एकादशी पड़ती हैं, लेकिन मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का बड़ा महत्व बताया जाता है. आपको बता दें कि आज उत्पन्ना एकादशी है और आज हम आपको बताने जा रहे हैं इसकी पूजा विधि, मुहूर्त और कथा.

उत्पन्ना एकादशी व्रत पूजा विधि-
इस व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर व्रत करने का संकल्प लें और इसके बाद भगवान विष्णु को अक्षत, दीपक, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री से विधि विधान पूजा करें. अब एकादशी के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें, उसकी जड़ में कच्चा दूध चढ़ाएं और घी का दीपक भी जलाएं. पूजा के दौरान ॐ नमो भगवत वासुदेवाय मंत्र का जाप करते रहें और इस दिन भगवान विष्णु को फलों का और तुलसी के पत्ते मिलाकर खीर का भोग लगाएं. इस दिन आप ब्राह्मणों को भोजन भी करवा सकते हैं.

उत्पन्ना एकादशी की कथा :
सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ. वह बड़ा बलवान और भयानक था. उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया. तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले हे कैलाशपति! मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्यु लोक में फिर रहे हैं. तब भगवान शिव ने कहा, हे देवताओं! तीनों लोकों के स्वामी, भक्तों के दु:खों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ.

वे ही तुम्हारे दु:खों को दूर कर सकते हैं. शिवजी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुंचे और कहा कि हे! मधुसूदन आप हमारी रक्षा करें. कहा कि हे भगवन, दैत्यों ने हमको जीतकर स्वर्ग से निकाल दिया है, आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें. इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि हे इंद्र, ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहां है? यह सब मुझसे कहो. यह सुनकर इंद्र बोले, भगवन!

प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था उसके महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ. उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है. उसी ने सब देवताओं को स्वर्ग से निकालकर वहां अपना अधिकार जमा लिया है. उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है. सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है. स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है. हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए.

यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा. तुम चंद्रावती नगरी जाओ. इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया. उस समय दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था. जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े तो विष्णु ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से बींध डाला. बहुत-से दैत्य मारे गए. केवल मुर बचा रहा. वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा. भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता. उसका शरीर छिन्न-भिन्न हो गर्या किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा. दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ. 10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा लेकिन मुर नहीं हारा. थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए. वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए. यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था. विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए.

मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ, तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई. देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया. श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी. आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं.


23 नवम्बर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 01:12 PM से 03:19 PM
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय – 11:44 AM
एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 22, 2019 को 09:01 AM बजे से
एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 23, 2019 को 06:24 AM बजे तक

गौण उत्पन्ना एकादशी शनिवार, नवम्बर 23, 2019 को
24वाँ नवम्बर को, गौण एकादशी के लिए पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 06:51 AM से 08:58 AM
पारण के दिन द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगी.
एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 22, 2019 को 09:01 AM बजे
एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 23, 2019 को 06:24 AM बजे

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