नई दिल्ली : अब उर्दू के लेखकों को देश के खिलाफ कुछ लिखने की अनुमति नहीं होगी। यदि लेखक ऐसा कुछ लिखना चाहते हैं तो वे अपना प्रकाशन नहीं कर पाऐंगे। मिली जानकारी के अनुसार द नेशनल काउंसिल फाॅर प्रमोशन आॅफ उर्दू लैंग्वेज द्वारा हाल ही में इस मामले में फाॅर्म प्रस्तुत किया है, जिसमें यह दर्शाया गया है कि लेखकों को प्रतिवर्ष यह बताना होगा कि उनकी किताब की विषय वस्तु सरकार और देश के विरूद्ध नहीं है। इस तरह के फाॅर्मों को लेखकों को दे दिया गया है। इस फाॅर्म में लेखकों को ऐसे गवाह भी देने होंगे जो यह कह सकें कि पुस्तकों में इस तरह का प्रकाशन नहीं है।
मिली जानकारी के अनुसार यदि लेखक ऐसा नहीं करते हैं तो उनके विरूद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इस मामले में वित्तीय सहायता को भी वापस लिया जा सकता है। दरअसल इसके अभाव में लेखकों को सरकार से आर्थिक सहायता नहीं मिल पाएगी। कुछ लेखकों द्वारा इस तरह के नियम को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन भी माना गया है।
दूसरी ओर एनसीपीयूएल के निदेशक इंतेज़ा करीम ने कहा कि एनसीपीयूएल एक सरकारी संगठन है। वे एक सरकारी कर्मचारी हैं। उन्होंने कहा कि वे स्वाभाविकतौर पर सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचेंगे।