चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आजादी के बाद बने, भारत के पहले गवर्नर
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आजादी के बाद बने, भारत के पहले गवर्नर
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कांग्रेस पार्टी के एक समय के प्रमुख नेताओं में गिने जाने वाले और महात्मा गांधी के काफी करीबी माने जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम के अहम क्रांतिकारी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की आज जयंती है. वैष्णव ब्राह्मण परिवार में 10 दिसंबर, 1878 को जन्मे राजगोपालचारी को लोग “राजाजी” के नाम से बुलाते थे.राजगोपालाचारी ने पढ़ाई की शुरूआत होसुर के सरकारी स्कूल से शुरू की. कॉलेज के लिए वो फिर बैंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज गए जहां से ग्रेजुएशन कर उन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से लॉ की पढ़ाई के लिए दाखिला करवाया था.

जात-पात के आडंबर के खिलाफ आजीवन लड़े: जानकारी मिली है कि राजगोपालचारी ने कॉलेज के दिनों से ही भारतीय समाज में फैले जात-पात के आडंबर के खिलाफ मुखर होकर बोलते रहे. समाज में जहां मंदिरों में दलितों को जाना मना था वहां उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए डटकर विरोध किया. इसके अलावा उन्होंने किसानों के लिए 1938 में एग्रीकल्चर डेट रिलीफ एक्ट कानून के लिए भी अभियान चलाया.

भारत के पहले गवर्नर जनरल: राजनीति के लक्षण राजगोपालाचारी में कॉलेज के दिनों से ही दिखने लगे. साल 1904 में राजनीति में वो कांग्रेस में शामिल होकर उतरे. साल 1946 में बनी प्रधानमंत्री नेहरू की अंतरिम सरकार उनको उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके अलावा आजादी मिलने के बाद राजगोपालाचारी को भारत का पहला गवर्नर जनरल बनाया गया.

वहीं अपने राजनैतिक सफर में वो 1952 में मद्रास के मुख्यमंत्री भी बने. स्वतंत्रता संग्राम से लेकर राजनीति के जरिए देश सेवा के लिए आगे चलकर भारत का सर्वश्रेष्ठ नागरिक पुरस्कार भारत रत्न 1954 में दिया गया. हालांकि कांग्रेस में काफी समय तक काम करने के बाद उनके नेहरू से कुछ वैचारिक मतभेद भी देखे जाने लगे. कुछ समय बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. आगे चलकर राजगोपालाचारी ने अपनी अलग ‘एंटी कांग्रेस स्वतंत्र पार्टी’ का गठन किया.

लेखन का था शौक: हम बता दें कि राजनीतिक और क्रांतिकारी होने के साथ-साथ राजगोपालाचारी लेखन में भी शौक रखते थे. उन्होंने रामायण, महाभारत और गीता का अनुवाद अपनी भाषा में किया. इसके अलावा कई मौलिक कहानियां भी लिखी. साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें पुस्तक ‘चक्रवर्ती थिरुमगम्’ पर सम्मान भी मिला. तमिल भाषा में काफी अच्छी पकड़ रखने वाले राजगोपालचारी ने रामायण का तमिल में अनुवाद भी किया. जेल के दौरान उन्होंने ‘मेडिटेशन इन जेल’ नाम से अपनी किताब भी लिखी. 92 साल की उम्र में 25 दिसंबर 1972 को चेन्नई में राजगोपालाचारी ने आखिरी सांस ली.

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