दुनिया को बड़ी संख्या में भारतीय प्रतिभाओं की जरूरत

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उज्जैन। कृष्णा बसन्ती संस्था द्वारा महर्षि पाणिनि संस्कृत और वैदिक विश्वविद्यालय के सहयोग से दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी उज्जैन में सम्पन्न हुई। यह संगोष्ठी  वैश्विक परिप्रेक्ष्य में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिवर्तन: चुनौतियां और सम्भावनाएँ विषय पर केंद्रित थी।

संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य अतिथि ओरिएण्टल यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ के एल  ठकराल थे। अध्यक्षता पूर्व कमिश्नर एवं महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ मोहन गुप्त ने की। संगोष्ठी की उपलब्धियों पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने प्रकाश डाला। 

श्री ठकराल ने अपने उद्बोधन में कहा कि दुनिया को आज बड़ी संख्या में भारत की युवा प्रतिभाओं की जरूरत है। भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी ने अपने मन, वचन और कर्म की एकता से नया मोड़ उपस्थित किया। आज इस देश को उनसे प्रेरणा लेने की जरूरत है। डॉ मोहन गुप्त ने अपने उद्बोधन में कहा कि परिवार समाज की कोशिका है। बगैर परस्पर अवलम्ब के पारिवारिक जीवन नहीं चल सकता है। पीढ़ियों का टकराव आज नई चुनौतियाँ दे रहा है।

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि विकास के नए प्रतिमान हमारी शाश्वत मूल्य दृष्टि और पर्यावरणीय सरोकारों को बेदखल कर रहे हैं। एक समय प्रकृति के साथ मनुष्य का सहज संबंध बना हुआ था। वह अब तेजी से निस्तेज हो रहा है। नवपूंजीवाद, उदारवाद और उपभोक्तावाद के रहते आज सब कुछ भौतिकता की तराजू पर तोला जा रहा है। ऐसे में मानवीय संबंधों के सामने कई चुनौतियां हैं। यह समस्या जितनी आर्थिक है, उससे अधिक मनोवैज्ञानिक और मूल्यपरक है।

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