सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- नफरत मत फैलाओ ! लेकिन नहीं माने उदयनिधि, अब CJI के पास पहुंची कई जजों और IAS की शिकायत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- नफरत मत फैलाओ ! लेकिन नहीं माने उदयनिधि, अब CJI के पास पहुंची कई जजों और IAS की शिकायत
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नई दिल्ली: हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों और नौकरशाहों सहित लगभग 262 प्रतिष्ठित नागरिकों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को पत्र लिखकर DMK नेता और तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के उस भाषण पर ध्यान देने को कहा है, जिसमें उन्होंने (उदयनिधि ने) कहा था कि सनातन धर्म सामाजिक न्याय के खिलाफ है और इसे पूरी तरह ख़त्म किया जाना चाहिए। पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं ने शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने सरकारों और पुलिस अधिकारियों को औपचारिक शिकायतों के दर्ज होने की प्रतीक्षा किए बिना ऐसे मामलों में स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।

रिपोर्ट के अनुसार, इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में तेलंगाना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के श्रीधर राव, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा, योगेन्द्र नारायण (आईएएस) और अन्य प्रमुख नागरिक शामिल हैं। पत्र में कहा गया है कि, "हम, हस्ताक्षरकर्ता, आपका ध्यान एक हालिया घटनाक्रम की ओर आकर्षित करने के लिए लिख रहे हैं, जिसने भारत के आम नागरिकों और विशेष रूप से सनातन धर्म में विश्वास करने वालों के दिल और दिमाग में बहुत पीड़ा पैदा की है।" पत्र में आगे कहा गया है कि, 'कुछ दिन पहले, तमिलनाडु राज्य सरकार में एक सेवारत मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने चेन्नई में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था, ‘कुछ चीजों का विरोध नहीं किया जा सकता है, उन्हें समाप्त कर दिया जाना चाहिए। हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते, हमें इन्हें ख़त्म करना है। इसी तरह, हमें सनातन धर्म का विरोध करने के बजाय उसे खत्म करना होगा।' हस्ताक्षरकर्ताओं ने आगे कहा कि तमिलनाडु के उस मंत्री ने जानबूझकर कहा कि सनातन धर्म महिलाओं को गुलाम बनाता है और उन्हें अपने घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं देता है।

पत्र में आगे कहा गया है कि, 'शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ और अन्य [रिट याचिका (सिविल) संख्या 940/2022)] के मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब तक विभिन्न धार्मिक समुदाय आपसी सद्भाव से रहने के लिए सक्षम नहीं होंगे, तब तक भाईचारा नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने देश में नफरत फैलाने वाले भाषणों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है और सरकारों और पुलिस अधिकारियों को औपचारिक शिकायत दर्ज होने का इंतजार किए बिना ऐसे मामलों में स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने के लिए ऐसी कार्रवाई की आवश्यकता है।' 

पत्र में हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा, 'बहुत गंभीर मुद्दों' पर कार्रवाई करने में प्रशासन की ओर से कोई भी देरी अदालत की अवमानना को आमंत्रित करेगी।' उन्होंने कहा कि जूनियर स्टालिन ने न केवल नफरत भरा भाषण दिया बल्कि उन्होंने अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगने से भी इनकार कर दिया है। पत्र में कहा गया है कि, "बल्कि उन्होंने अपनी टिप्पणी के संदर्भ में, "मैं यह लगातार कहूंगा" कहकर खुद को उचित ठहराया कि सनातन धर्म को खत्म किया जाना चाहिए। उन्होंने दोहराया कि वह अपनी टिप्पणियों पर कायम हैं और उन्होंने अस्पष्टताएं और बारीकियां पेश कीं, जिससे लोगों द्वारा उठाई गई चिंताओं का समाधान नहीं हुआ।'' 

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